Wednesday, April 25, 2012

बहुत सोचती हो माँ ...




बहुत सोचती हो माँ
बेटे के यह शब्द
पुन: उधेड़ देते हैं वह सच
जो ढक मूंदकर  रखा था अब  तक....

हाँ सोचती हूँ -
हफ़्तों महीनों के बाद मिले उन दिनों को -
जो हमने आज की कल्पना में काटे थे !

सोचती हूँ उन पलों को -
जो हमने -
"बस थोड़ी सी देर और " की ललक में
चुराए थे !
उस छटपटाहट  को जो हमारे "कल" में थी
हमारे "आज" के लिए ......

फिर सोचती हूँ वह आज -
जब नींद में छुआ हाथ,
तुम बेरुखिसे खींच लेते हो -
और महसूस होता है उन झरोखों का पट जाना-
जहाँ से एक दूसरे की आत्मा में झांकते थे कभी ....

क्या यही था वह आज !!!!!

.....फिर -
-यह बेरुखी -
-यह अजनबीपन -
-यह बर्फ-
कैसे घुल गयी हमारे रिश्ते में -
-शायद तुम ही बता सको....!!!!!

17 comments:

  1. क्या तब मैं नहीं सोचती थी और आज .... !!!

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    1. सोचना ....इस सिलसिले से न हम कभी मुक्त हो पाए थे न हो पाएंगे ! यह तो हमारे साथ हर पल जुड़ा है....

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  2. कैसे घुल गयी हमारे रिश्ते में -
    -शायद तुम ही बता सको....!!!!!
    its a feeling smoetimes we can express through
    our emotions but sometimes it is very difficult
    to express in any way.
    nice lines and beautiful expression. thanks .

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  3. जहाँ से एक दूसरे की आत्मा में झांकते थे कभी ....
    क्या यही था वह आज !!!!!

    भावमय शब्‍द संयोजन ...

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  4. ...फिर -
    -यह बेरुखी -
    -यह अजनबीपन -
    -यह बर्फ-
    कैसे घुल गयी हमारे रिश्ते में -
    -शायद तुम ही बता सको....!!!!! beautiful expression

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  5. ................
    मुझे नहीं लगता तुम भी बता सकते हो............
    कुछ बातें अकारण ही होती हैं शायद................या बहुत से कारण होते हो!!!!!

    सस्नेह.

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  6. ..फिर -
    -यह बेरुखी -
    -यह अजनबीपन -
    -यह बर्फ-
    कैसे घुल गयी हमारे रिश्ते में -
    -शायद तुम ही बता सको..

    उफ़ …………अब क्या कहूँ ?

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  7. .....फिर -
    -यह बेरुखी -
    -यह अजनबीपन -
    -यह बर्फ-
    कैसे घुल गयी हमारे रिश्ते में -
    -शायद तुम ही बता सको....!!!!

    वाह!!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति,..,..

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....

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  8. ये 'सोच' हम पर किस क़दर हावी है कभी लगता है की हम 'सोचते' हैं या हम सिर्फ 'सोच' मात्र ही हैं......बेहतरीन पोस्ट है कहीं कुछ बहुत नाज़ुक सा होता है रिश्तों के दरमियाँ वो चटक कर टूटता है तो लाख जोड़ने पर भी कसक नहीं जा पाती ।

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  9. कश्मकश और अंतर्द्वंद
    बेहतरीन

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  10. hmesha ki tarah behad khubsurat rachna

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  11. hmesha ki tarah behad khubsurat rachna

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  12. ह्र्दय से निकले भावों को सुंदर शब्दों में उकेरने के लिए बधाई सरस जी !

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  13. प्रवाहमयी...अति सुन्दर रचना..

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  14. Wonderful worth remembering.Pasts are the days.......and this is passing.....

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  15. माँ तो माँ है ...उस में बदलाव की संभावना नहीं होती ...

    खूबसूरत अहसास ...

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