Friday, April 27, 2012

-मेरे हिस्से की धूप -





जब मनको धुंध ने घेरा हो -
बोझिल ठंडक का डेरा हो -
जब भीतर सब कुछ जड़वत  हो -
और बहता सिर्फ उच्छवास हो-
ता हलके से कोई मुझे बुलाता -
हौले से कन्धा थपथपाता-
भीतर की ठंडक पिघलाकर-
जीवन की ऊष्मा भर जाता -
है उसका चिर परिचित सा रूप -
यह है मेरे हिस्से की धूप  ...!

22 comments:

  1. bdhai sarthak lekhan ke liye .apne hisse ki dhoop se jivan ushma sanchit kar yun hi likhteen rhen yahi shubhkamnayen haeh|

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  2. sunder .....
    prabhu ki upasthiti darshati hui prabal aastha ....
    shubhkamnayen ...!!

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  3. बहुत सुंदर भाव ... यह धूप हमेशा बनी रहे

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  4. aapke hisse ki dhup aapko yun hi milti rahe.

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  5. मनोभावों की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!...सुन्दर रचना...आभार!

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  6. भावमय करते शब्‍दों का संगम ।

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  7. बहुत सुंदर............

    यूँ ही गुनगुनी धूप का डेरा रहे आपके अंगना.....

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  8. यूँ कारवां चलता रहे ये कश्तियाँ पतवार हों,
    हम रहें या ना रहें ये भंवर न मंझधार हों ..

    गुनगुनी धूप, सुन्दर भावों के लीये बधाई

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  9. सुन्दर प्रस्तुति ।
    आभार ।।

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  10. वह .... धूप है, छाया है , वह सब जो चाहिए

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  11. लाजवाब प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर पुन: आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा। धन्यवाद ।

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  12. वाह ! सुन्दर प्रस्तुति |

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  13. सुन्दर प्रस्तुति ...लाजवाब .

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  14. bahut sundar aur gahri rachna hai. Badhai aapko....! ab aksar aapke blog par dastak deti rahungi, nayi rachnaon se milti rahungi...........!!

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  15. शब्दों में ढले सुंदर अहसास ! लुभाते, होठों पे हँसी लाती सुंदर अभिवयक्‍ति ! बधाई सरस जी !

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  16. मन के भावों को बड़े सुन्दर शब्दों से सजाया आपने -------बहुत सुन्दर रचना |

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  17. बरकरार रहे यह धूप

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  18. इस धूप को अंजुरी में भर दिल के किसी कोने में रख लें।

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  19. सबकी यही चाहत...अपने हिस्से की धूप..अच्छी लगी रचना..

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  20. रोशनी है, धुन्ध भी है और थोड़ा जल भी है
    ये अजब मौसम है जिसमें धूप भी बादल भी
    है, चाहे जितना भी हरा जंगल दिखाई दे हमें
    उसमें है लेकिन छुपा चुपचाप दावानल भी है;
    एक–सा होता नहीं है जिन्दगी का रास्ता
    वो कहीं ऊँचा, कहीं नीचा, कहीं समतल भी
    है''...|

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  21. बहिर्जगत और अंतर्जगत! दोनों ही छेत्र में भाव पूर्ण अभिव्यक्ति देने वाली मित्र को हमारा शत-शत नमन !अनुभव और अभिव्यक्ति दोनों ही दृष्टि में आप की पकड़ उत्तम है,यही नहीं बल्कि आपकी कवितायेँ मानव मन की गहराईयों के मौन को प्रस्तुत करती हैं! आप जीवन के सत्यो का आकलन कर, उनमे से चिरंतन पक्छ को ग्रहण और आत्मसात करती हैं,जो एक कलाकार का परम उदेश्य है मित्र !आपका बहुत बहुत आभार!

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