५४ साल लम्बी यादें........उतार चढ़ावों से भरीं, जिसमें बहुत कुछ बीता.....
कुछ फाँस सा असहनीय पीड़ा दे गया ....
कुछ अनायास ही खिल आनेवाली मुस्कराहट का सबब बन गया....
कुछ एक कविता बन मुखरित हो गया...
कुछ , बस यूहीं धूप में छाँव सा ठंडक पहुंचा गया ......
और यादों का यह काफिला , पृष्ट दर पृष्ट पूरा जीवन बन गया
जिसमें गाहे बगाहे, कुछ सुरीले, सुखद क्षण,
.....मेरे हिस्से की धूप बन गए.....
Friday, April 27, 2012
-मेरे हिस्से की धूप -
जब मनको धुंध ने घेरा हो - बोझिल ठंडक का डेरा हो - जब भीतर सब कुछ जड़वत हो - और बहता सिर्फ उच्छवास हो- ता हलके से कोई मुझे बुलाता - हौले से कन्धा थपथपाता- भीतर की ठंडक पिघलाकर- जीवन की ऊष्मा भर जाता - है उसका चिर परिचित सा रूप - यह है मेरे हिस्से की धूप ...!
रोशनी है, धुन्ध भी है और थोड़ा जल भी है ये अजब मौसम है जिसमें धूप भी बादल भी है, चाहे जितना भी हरा जंगल दिखाई दे हमें उसमें है लेकिन छुपा चुपचाप दावानल भी है; एक–सा होता नहीं है जिन्दगी का रास्ता वो कहीं ऊँचा, कहीं नीचा, कहीं समतल भी है''...|
बहिर्जगत और अंतर्जगत! दोनों ही छेत्र में भाव पूर्ण अभिव्यक्ति देने वाली मित्र को हमारा शत-शत नमन !अनुभव और अभिव्यक्ति दोनों ही दृष्टि में आप की पकड़ उत्तम है,यही नहीं बल्कि आपकी कवितायेँ मानव मन की गहराईयों के मौन को प्रस्तुत करती हैं! आप जीवन के सत्यो का आकलन कर, उनमे से चिरंतन पक्छ को ग्रहण और आत्मसात करती हैं,जो एक कलाकार का परम उदेश्य है मित्र !आपका बहुत बहुत आभार!
bdhai sarthak lekhan ke liye .apne hisse ki dhoop se jivan ushma sanchit kar yun hi likhteen rhen yahi shubhkamnayen haeh|
ReplyDeletesunder .....
ReplyDeleteprabhu ki upasthiti darshati hui prabal aastha ....
shubhkamnayen ...!!
बहुत सुंदर भाव ... यह धूप हमेशा बनी रहे
ReplyDeleteaapke hisse ki dhup aapko yun hi milti rahe.
ReplyDeleteमनोभावों की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!...सुन्दर रचना...आभार!
ReplyDeleteभावमय करते शब्दों का संगम ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर............
ReplyDeleteयूँ ही गुनगुनी धूप का डेरा रहे आपके अंगना.....
यूँ कारवां चलता रहे ये कश्तियाँ पतवार हों,
ReplyDeleteहम रहें या ना रहें ये भंवर न मंझधार हों ..
गुनगुनी धूप, सुन्दर भावों के लीये बधाई
सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteआभार ।।
वह .... धूप है, छाया है , वह सब जो चाहिए
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर पुन: आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा। धन्यवाद ।
ReplyDeleteवाह ! सुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति ...लाजवाब .
ReplyDeletebahut sundar aur gahri rachna hai. Badhai aapko....! ab aksar aapke blog par dastak deti rahungi, nayi rachnaon se milti rahungi...........!!
ReplyDeletebahut sundar kavita...apne hisse ki dhoop sabhi ko mile isi aasha ke sath....
ReplyDeleteमत भेद न बने मन भेद- A post for all bloggers
शब्दों में ढले सुंदर अहसास ! लुभाते, होठों पे हँसी लाती सुंदर अभिवयक्ति ! बधाई सरस जी !
ReplyDeleteमन के भावों को बड़े सुन्दर शब्दों से सजाया आपने -------बहुत सुन्दर रचना |
ReplyDeleteबरकरार रहे यह धूप
ReplyDeleteइस धूप को अंजुरी में भर दिल के किसी कोने में रख लें।
ReplyDeleteसबकी यही चाहत...अपने हिस्से की धूप..अच्छी लगी रचना..
ReplyDeleteरोशनी है, धुन्ध भी है और थोड़ा जल भी है
ReplyDeleteये अजब मौसम है जिसमें धूप भी बादल भी
है, चाहे जितना भी हरा जंगल दिखाई दे हमें
उसमें है लेकिन छुपा चुपचाप दावानल भी है;
एक–सा होता नहीं है जिन्दगी का रास्ता
वो कहीं ऊँचा, कहीं नीचा, कहीं समतल भी
है''...|
बहिर्जगत और अंतर्जगत! दोनों ही छेत्र में भाव पूर्ण अभिव्यक्ति देने वाली मित्र को हमारा शत-शत नमन !अनुभव और अभिव्यक्ति दोनों ही दृष्टि में आप की पकड़ उत्तम है,यही नहीं बल्कि आपकी कवितायेँ मानव मन की गहराईयों के मौन को प्रस्तुत करती हैं! आप जीवन के सत्यो का आकलन कर, उनमे से चिरंतन पक्छ को ग्रहण और आत्मसात करती हैं,जो एक कलाकार का परम उदेश्य है मित्र !आपका बहुत बहुत आभार!
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