बरसों से इसी तरह ज़मीन में धंसी हुई -
श्रापग्रस्त -
तुम्हारी बाट जोती हुई -मैं !
और तुम ...!!!
मुझसे विमुख -
रुष्ट -
असंतुष्ट -
मेरी पहुँच से कोसों दूर !!!!!
मेरे राम ...
क्यों नहीं विध्वंस कर जला देते -
श्रापग्रस्त स्म्रितियोंको -
.....जो कुरूप हैं ....
और जिला देते .
वह जो सुन्दर है ...
जो परिस्तिथियोंसे-
अभिशप्त नहीं ......
वाह....................
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...
सरस जी नमन करती हूँ आपकी भावाव्यक्ति को...
कितनी सहज,सरल और गहन.................
सस्नेह.
अप्रतिम ...सरस ...सकारात्मक ...खिली खिली .....एक हलकी मुस्कान पाने की मन कि ख्वाइश...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ....!!
शुभकामनायें ...सरस जी ...
प्रतीक्षा की तयशुदा अवधि ... व्याकुल करती है , पर प्रभु का आना होता है
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया आंटी!
ReplyDeleteसादर
मेरे राम ...
ReplyDeleteक्यों नहीं विध्वंस कर जला देते -
श्रापग्रस्त स्म्रितियोंको -
जो कुरूप हैं ....
बहुत सुंदर रचना...अच्छे भाव,..सरस जी
.
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
प्रतीक्षा ... और प्रतीक्षा
ReplyDeleteप्रतीक्षा और यह सरल सुन्दर अभिव्यक्ति ..बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteश्राप ग्रसित स्मृतियाँ प्रतीक्षा में राम की ... बहुत सुंदर भाव
ReplyDeleteऔर जिला देते .
ReplyDeleteवह जो सुन्दर है ...
जो परिस्तिथियोंसे-
अभिशप्त नहीं ......waah...
बहुत सुंदर भाव....
ReplyDeleteमेरे राम ...
ReplyDeleteक्यों नहीं विध्वंस कर जला देते -
श्रापग्रस्त स्म्रितियोंको -
.....जो कुरूप हैं ....
और जिला देते .
वह जो सुन्दर है ...
जो परिस्तिथियोंसे-
अभिशप्त नहीं ......
SO SO SO BEAUTIFUL LINES TO SAY AND THINK 1000 TIMES .
I CAN SAY PRANAM PRANAM TO YOU AND YOUR NICE THOUGHT.
सुंदर अतिसुन्दर सारगर्भित रचना , बधाई
ReplyDeleteबरसों से इसी तरह ज़मीन में धंसी हुई -
ReplyDeleteश्रापग्रस्त -
तुम्हारी बाट जोती हुई -मैं !
और तुम ...!!!
मुझसे विमुख -
रुष्ट -
असंतुष्ट -
मेरी पहुँच से कोसों दूर !!!!!अति सुन्दर , कृपया इसका अवलोकन करें vijay9: आधे अधूरे सच के साथ .....
यह बेजोड़ रचना है .........इसे कहते हैं कविता ........बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteभाव बहुत सुन्दर हैं .
ReplyDeleteधैर्य ही प्रतीक्षा का स्थाई संबल है . सुँदर रचना .
ReplyDeletedard ki parakashtha.......
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति .......
ReplyDeletehttp://naritusradhahai.blogspot.in/
इस ब्लॉग पर नारी से सम्बन्धित उसके विचारों को प्रस्तुत करने की आज़ादी जिसमे नारी की सोंच विचार उसकी खुशियाँ,घुटन और समाज से क्या लिया इन सभी को अपनी रचनाओं यथा कविता ,ग़ज़ल, कहानी, लेखों के जरिये लिख सकती हैं (सकते) हैं नारी मन का विश्लेषण एक नारी अच्छी तरह कर सकती है फिर भी आप जो भी लिखें वो महिला को आहत करनेवाले रचनाएँ ना हों , ना ही भद्दे शब्दों से बंधे जो महिला की छवि को ख़राब करते हों......आपके विचारों की प्रतीक्षा सादर .............रजनी नैय्यर मल्होत्रा
अनुपम भाव संयोजन लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteइतने कम शब्द और इतनी गहरे बहुत ही सुन्दर ।
ReplyDelete. गहन सोच .. सुन्दर अभिव्यक्ति .
ReplyDeletekya kahun,aap ki is rachna ne to nishbd kar diya,bahut hi unda rachna hai saras ji
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव और उतनी ही पूर्ण अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteअपने कर्मों का भोग तो सभी कों भोगना है ... यही एक जरिया भी है उसको याद करने का ... नहीं तो उसको कौन माने ...
ReplyDeleteससार गर्भित लेखन और इस सुंदर प्रस्तुति के लिये बहुत बधाई. गागर में सागर भर दिया है आपने.
ReplyDeletesaar garbhit sundar rachana
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति.....
ReplyDeletesunder bhav ...
ReplyDeleteयादेँ!ही तो जीवन-मरण के बीच की डोर है ....
ReplyDeleteचाही-अनचाही ,अच्छी-बुरी .....
शुभकामनाएँ!
kash kadvi yaadon ko bhula pana sab ke liye sambhav hota...sundar rachna
ReplyDeleteBahut sundar bhav......
ReplyDeleteकविता में भावों का जो कन्ट्रास्ट है वह विचलित करता है।
ReplyDeleteसुंदर भाव, गहरी सोच.
ReplyDeleteसुन्दर भाव-अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteशुभकामनायें.
मेरे राम ...
ReplyDeleteक्यों नहीं विध्वंस कर जला देते -
श्रापग्रस्त स्म्रितियोंको -
.....जो कुरूप हैं ....
sarthak pahal ke sath hi ak prabhavshali rachana
बेहतरीन रचना..
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