स्पर्श -
अहसासों से भरा वह शब्द
जो रिश्तों की ऊँगली पकड़
खुद अपनी पहचान बनाता है .....
- हर रिश्ते का अपना अनुभव -
जहाँ पिता का आश्वस्त करता स्पर्श -
अपूर्व विश्वास भर जाता है-
वहीँ भ्राता का रक्षा भरा स्पर्श ,
भयमुक्त कर जाता है -
पति या प्रेमी का सिहरन भरा स्पर्श -
असंख्य सितारों की मादकता भर जाता है -
तो वहीँ भीड़ की आड़ लेते लिजलिजे अजनबिओंका घिनोना ,
और अनचाहे रिश्तेदारों का मौका परस्त स्पर्श -
शरीर पर लाखों छिपकलीओं की रेंगन भर जाता है -
- सभी स्पर्श !
लेकिन कितने भिन्न !!!
और इनकी सही पहचान -
ही हमारा सुरक्षा कवच है ...
हमारा "सिक्स्त सेन्स" !!!!!!!
सच है! हमारा ये सिक्स्थ सेन्स स्पर्श क्या नज़रों तक को पढ़ लेता है....
ReplyDeleteसचेत कर देता है......
sahi bat ......sparshon ki bhi apni bhasha aur apna apnapan hai.....
ReplyDeleteसिक्स्थ सेन्स .... यह अद्वितीय अविश्वसनीय होता है , पर यही कवच है , यही बन्द रास्तों को खोलता है
ReplyDeleteसिक्स्थ सेन्स सही में कवच का काम करता है ... स्पर्श के भिन्न भिन्न अनुभव सही दर्शाये हैं
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया आंटी!
ReplyDeleteसादर
बहुत बढ़िया बात कही .सिक्स्थ सेन्स वाकई काम करता है.
ReplyDeleteसभी स्पर्श भिन्न ....सही विश्लेषण ...
ReplyDeleteभिन्न स्पर्शों में भेद करती बहुत ही सटीक और शानदार अभिव्यक्ति एक सन्देश भी देती है....बहुत ही सुन्दर।
ReplyDeletesixth sense ! anupam prastuti !
ReplyDeleteस्पर्श के भिन्न भिन्न अनुभव और अहसासो का बहुत ही सुन्दर और.सही विश्लेषण ...
ReplyDelete- सभी स्पर्श !
ReplyDeleteलेकिन कितने भिन्न !!!
और इनकी सही पहचान -
ही हमारा सुरक्षा कवच है ..
निश्चित रूप से ... सही पहचान करती है यह इन्द्रिय ...
उत्कृष्ट प्रस्तुति
sarthak tatha antardvand ko paribhashit karti post aabhar.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...बहुत ही सुन्दर इतना सटीक लेखन ..बधाई
ReplyDeleteसच में यह स्पर्श ....इसकी अनुभूति हर स्तर पर अलग अलग होती है ....जिस तरह का भाव व्यक्ति से जुड़ा होता है उसी तरह की भावनाएं अभिव्यक्ति होती है ...!
ReplyDeleteसचमुच स्पर्श एक लेकिन अहसास अलग -अलग ... पहचान लेता है इसे हमारा सिक्स्थ सेन्स... एक अलग से अनुभव से भरी सुन्दर अभिव्यक्ति... आभार
ReplyDeleteविलक्षण रचना, वाह !!!!
ReplyDeleteवाह!!!बेहतरीन भाव पुर्ण बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,लाजबाब प्रस्तुति,....
ReplyDeleteRECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
जरूरी नहीं सब में ये सेन्स मुखर हो ... पर प्यार का स्पर्श हो हर कोई समझ ही जाता है ...
ReplyDeleteआपका सिक्स्त सेन्स तो कमाल का है . सुन्दर शब्द दिया है ..वाह !
ReplyDeletebahut hi pyaari rachna hai ,jwaab nahin aap ki"सिक्स्त सेन्स" ka
ReplyDeleteपति या प्रेमी का सिहरन भरा स्पर्श -
ReplyDeleteअसंख्य सितारों की मादकता भर जाता है
jeevant chitran ....yatharth ki anubhuti se paripoorn ...badhai sweearen
स्पर्श और उसके विभिन्न पहलुओं पर आपने बहुत गहन विवेचना की है इस कविता के माध्यम से। एक शे’र इस रचना को समर्पित है :
ReplyDeleteतमाम उम्र हथेलियों में सनसनाता है
जब हाथ किसी का हाथ में आकर छूट जाता है।
छठी इन्द्रिय बहुत काम की चीज़ है . सुँदर विवेचन
ReplyDeleteवाह अतिउत्तम लाजबाब भाव सिक्स सेन्स एक सुरक्षा कवच की तरह है जिसने इसको समझा उसी ने अपने को बचाया और स्पर्श तो मस्तिष्क से सीधा कनेक्शन रखता है
ReplyDeleteजहाँ पिता का आश्वस्त करता स्पर्श -
ReplyDeleteअपूर्व विश्वास भर जाता है-
वहीँ भ्राता का रक्षा भरा स्पर्श ,
भयमुक्त कर जाता है -
सचमुच स्पर्श एक लेकिन अहसास अलग -अलग
बड़ी बारीकी से हर स्पर्श की व्याख्या की है..
ReplyDeleteसिक्स्थ सेन्स यही तो है...सुन्दर कविता
व्यस्तता के चलते देर से आपके ब्लॉग पर आना हुआ सरस जी। किंतु "सिक्स्थ सैंस" पढकर मन प्रसन्न हो गया। सच! हमारा रक्षा कवच ही तो है हमारी सिक्स्थ सैंस!
ReplyDeleteगहन सोच और सुंदर अभिव्यक्ति!
काफी दिनों से आपके ब्लॉग पर रचनाएँ पढने के बारे में सोच रही थी . आपकी रचनाओं को पढ़कर एक बात ज़रूर कहना चाहूंगी की आज के इस दौर में इतनी संवेदनशीलता बनाये रखना न केवल स्तुत्य है बल्कि यह काफी विरल भी है. आपकी यह रचना आपके नाम की तरह सरस, सहज, किन्तु भावनाओं के स्तर पर अत्यंत गूढ़ भी है. जिस सरलता से आपने इतनी सरल किन्तु दुष्कर बात को चित्रित किया है वह बहुत सधे हुए लेखन का परिचायक है. आपके ब्लॉग पर आकर बहुत प्रसन्नता हुई. आपकी लेखनी ऐसे ही सृजन करती रहे. सादर शुभकामनायें.
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