Thursday, April 5, 2012

माँ.... मैं दूध न पी पाऊँगी!

कई बार बच्चों की कोमल  सच्ची  भावनाएं हमें  जीवन  के भूले   हुए पाठ याद दिला जाती हैं


आज अचानक खेल अधूरा
छोडके वह बैठी
आँचल के छोरसे पोंछके आंसू
औंधे मूंह जा लेटी 
पूछा मैंने जाकर उससे
"अरे क्या हुआ है तुझको "
रोते रोते बोली -
"माँ ..अब दूध पीना मुझको "
बहला फुसलाकर मैंने फिर जब उससे कारण पूछा
आंसू का रेला उमड़ा ...
और दर्द उसका बह निकला  ....
"माँ, वह ग्वाला कितना गन्दा !.....
बछड़ा भूखा रोता था , था पड़ा गले रस्सी का फंदा
ग्वालेने जैसे ही फंदा , गले से निकाला
भूखा बछड़ा दौड़ता हुआ , माँ के पास था आया ....
थोडासा ही दूध अभी वह बछड़ा था पी पाया ...
ग्वालेने झटसे खींच के उसको
माँ से दूर भगाया ......!
बछड़ा दूर बंधा हुआ , था अपनी बारी जोहता
उतने में वह गन्दा ग्वाला ,
सारा दूध था दोहता ...
सारा दूध निकाल ग्वाला,
 लोगों में बाँट आया !
जब बछड़े की बारी आयी ,
उसने कुछ पाया.!!!  

माँ क्या ऐसा रोज़ है होता ?
रोज़ वह बछड़ा भूखा रोता ?
माँ उसका हक छीनकर
कैसे मैं खुश रह पाऊँगी
मेरी प्यारी अम्मा....
अब मैं दूध कभी पी पाऊँगी  !"

21 comments:

  1. सच में किसी का हक़ छीन कर सच्ची खुशी नहीं मिल सकती....बहुत मर्मस्पर्शी और सार्थक अभिव्यक्ति...

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  2. हक छीन कर कोई सुखी नही रह सकता,
    बढ़िया रचना,बहुत सुंदर भाव प्रस्तुति,बेहतरीन पोस्ट,....

    MY RECENT POST...फुहार....: दो क्षणिकाऐ,...

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  3. अच्‍छे शब्‍द संयोजन के साथ बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्‍यक्ति।

    संजय भास्कर
    आदत....मुस्कुराने की
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  4. इस दर्द को मैंने महसूस किया और अन्दर कुछ उमड़ा

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  5. इस रचना को पढते हुए विस्मय और रोमांच सा महसूस हुआ. एक बच्ची के मन में कितनी संवेदना. बहुत भावमय और संदेशप्रद रचना, बधाई.

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  6. निः शब्द!

    इस पोस्ट की तारीफ मे जो कहा जाए कम ही होंगा ।


    सादर

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  7. balak ke dwara bahut sunder bhav ki rachna ki hai .......

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  8. बहुत कोमल भाव... मर्मस्पर्शी रचना...

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  9. बहुत सुन्दर.................
    बच्चों के मन सी कोमल रचना....दिल को हौले से छू गयी.....

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  10. आह .... जब जब एक बछड़े को देखूंगी यही ख़याल मन में आएगा. क्या कहूँ इस कविता के लिए तो शब्द ही नहीं हैं.

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  11. माँ क्या ऐसा रोज़ है होता ?
    रोज़ वह बछड़ा भूखा रोता ?
    न माँ उसका हक छीनकर
    कैसे मैं खुश रह पाऊँगी
    मेरी प्यारी अम्मा....
    अब मैं दूध कभी न पी पाऊँगी !"

    भावमय और संदेशप्रद रचना,

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  12. बच्चों के मन के कोमल भाव को बहुत ही मासूमियत से उकेरा है..मन को छू गई सरस जी....

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  13. कल 07/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  14. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  15. संवेदनशीलता ही मानवीयता की शक्ति है ...
    शुभकामनायें आपको !

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  16. कोमल,संवेदनशील रचना..

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  17. आह कितनी गहरी संवेदनाओं को आपने कुशलता और सहजता से उकेरा है. आज के इस दौर में जहाँ इंसानी रिश्तों में भी आपस में संवेदन शुन्यता हावी हो रही है वहां पर एक निरीह पशु के लिए ऐसी संवेदना, यह तो मानवीय नहीं बल्कि ईश्वरीय संवेदना का उदहारण है. साधुवाद स्वीकार करें इतनी सुन्दर संवेदनशील रचना के लिए.

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  18. बहुत ही प्यारी रचना,आप की रचनाएं निशब्द कर देती है सरस जी

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