Wednesday, January 30, 2013

सुदामा तुम कहाँ हो ....




तुमहीसे सीखा प्यार लेना नहीं देना है -
प्रेम अपेक्षा नहीं त्याग है -
उस मुट्ठीभर चावल का मोल -
मेरे सारे कोषसे कहीं ज्यादा था -
वह उपहार तुम्हारे लिए तुच्छ था-
इसीलिए छिपाया था -
आज दुनिया का छल और स्वार्थ देख-
ह्रदय फिर भर आया है -
सुदामा तुम कहाँ हो.....!

जिस युग में द्रुपद और द्रोण
मित्र कहलाते थे -
द्रोण भी मित्र द्रुपद के घर पधारे थे -
वहीँ द्रोण का हुआ भयंकर अपमान !
मित्र का रक्खा - तनिक भी मान !
आज उन्हीं दृपदों का चहुँ और देख वास  -
अश्रु रहित नेत्रों से बही रक्त की धारा है -
सुदामा तुम कहाँ हो...!!!

24 comments:

  1. सुदामा उस चने के स्नेहिल स्वाद की मुझे ज़रूर है ....तुम जहाँ भी हो आ जाओ

    ReplyDelete
    Replies
    1. ऐसा प्यार करने वाला ...और ऐसा निभाने वाला ...दोनों की ही दरकार है ...तभी तो सुदामा का मोल होगा

      Delete
  2. आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 02/02/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. रचना के चयन के लिए आपका हार्दिक आभार यशोदाजी

      Delete
  3. बहुत सुन्दर बेहतरीन रचना...आभार

    ReplyDelete
  4. मैं भी सुदामा बन जाऊं जो कृष्ण कहीं मिल जाए यदि :)
    सुन्दर भावपूर्ण कविता.

    ReplyDelete
    Replies
    1. कृष्ण तो खुद सुदामा की तलाश में हैं.....छूटते ही पहुँच जायेंगे ...प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार शिखा

      Delete
  5. अनुपम भाव ... लिये उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति

    सादर

    ReplyDelete
  6. सुदामा हम सब के अन्दर कहीं है ...
    उसे जीवित रखना जरुरी है ....

    बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति ...!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. वही तो इंसानियत का एकमात्र अंश रह गया है भीतर......प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार हीर जी

      Delete
  7. बहुत भावपूर्ण .....बहुत सशक्त सुंदर खोज ......अन्तर्मन को सकारात्मक आवाज़ देती हुई .....
    बहुत अच्छी लगी आपकी रचना ....सरस जी ....

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका यह प्रोत्साहन बहुत अच्छा लगा ...आभार

      Delete
  8. सीख तो मिलती है पर जीवन में कहाँ उतर पाती है. गहन भाव...

    तुमहीसे सीखा प्यार लेना नहीं देना है -
    प्रेम अपेक्षा नहीं त्याग है -

    सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई स्वीकारें.

    ReplyDelete
    Replies
    1. हाँ आजकल के परिवेश्में शायद यह मुमकिन न हो .......प्रोत्साहन के लिए आभार

      Delete
  9. भावो का सुन्दर समायोजन......

    ReplyDelete
  10. बहुत सुन्दर ,,,
    बेहतरीन भाव

    ReplyDelete
  11. हीर जी सही कह रही है ....बस जान लो ...पहचान लो !

    ReplyDelete
    Replies
    1. हमने भी गाँठ बाँध ली...:) .....आभार !

      Delete
  12. कहाँ कहीं नज़र आती है, अब कृष्ण और सुदामा की वो निश्छल दोस्ती ,
    स्वार्थ से भर गयी है दुनिया,
    मार्मिक कविता

    ReplyDelete
  13. प्रेम अपेक्षा नहीं त्याग है - कितनी सटीक अभिव्यक्ति है. बहुत अच्छा लगा पढ़कर.

    ReplyDelete
  14. उऋण हो गये सुदामा -मित्र के हिस्से के चने स्वयं चबा गये थे वही उधार इस रूप में चुकता हुआ और भाग्य के कपाट खुल गये ऍ

    ReplyDelete
  15. सुदामा जैसे स्वार्थरहित मित्र आज कहाँ ? द्रुपद और द्रोण की बहुत सुंदर उपमाएँ दी हैं ... सुंदर अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  16. कहाँ वो सुदामा आज, कहाँ वो कृष्ण हैं ... बहुत सुन्दर भावों से भरी प्रस्तुति!

    ReplyDelete