Thursday, March 15, 2012

रिश्ते

नए चेहरे -
नए लोग-
नए नाम-
लेकिन घूम फिरकर वही सम्बन्ध,
जो चेहरों पर चिपक गए हैं
हमारे बर्ताव बन गए हैं -
फिर ऐसे संबंधों को
जीता रखने में
सबके योगदान का हिसाब क्यों?
वह तो स्वार्थ पर निर्भर है,
जो जंगली घास की तरह,
हर जगह फूट पड़ता है.
माँ भी तो बच्चे से मुआवजा मांगती है
कुंती ने भी कुछ ऐसा ही किया था...
फिर यह तो सम्बोधान्मात्र हैं .
पर हाँ ....
अपने ही जाये यह सम्बन्ध
कुछ क्षण तो देते हैं ..
जिनकी बुनियाद पर --
फिर नए सम्बन्ध जन्म ले लेते हैं.

20 comments:

  1. छीजते जा रहे संबंधों के इस भयावह समय में संबंधों पर सटीक टिप्पणी करती यह रचना अंत में इस बात का ऐलान करती सी लगती है कि कोई आस अब भी जीवित है कि नए संबंध फिर जन्म लेंगे, इन दुरूह स्थितियों में भी । बहुत अछी अभिव्यक्ति के लिए मेरी बधाई स्वीकारें। सचमुच एक अच्छी रचना।

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर...
    दिल को छूने वाली रचना...

    ReplyDelete
  3. नए रिश्ते बनाते ही सारे समीकरण भी बादल जाते हैं ... सुंदर रचना

    ReplyDelete
  4. पर हाँ ....
    अपने ही जाये यह सम्बन्ध
    कुछ क्षण तो देते हैं ..
    जिनकी बुनियाद पर --
    फिर नए सम्बन्ध जन्म ले लेते हैं.
    बहुत बढ़िया भावपूर्ण सुंदर रचना,...

    RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...

    ReplyDelete
  5. पर हाँ ....
    अपने ही जाये यह सम्बन्ध
    कुछ क्षण तो देते हैं ..
    जिनकी बुनियाद पर --
    फिर नए सम्बन्ध जन्म ले लेते हैं.
    sambandhon ki anyonnyashritata humen ek dusare se jode
    rakhati hai. yahi hamara mul hai .aapane sudar saral sahaj
    tarike se nibaha .pranam aapake lekhani ko aapake sath.

    ReplyDelete
  6. पर हाँ ....
    अपने ही जाये यह सम्बन्ध
    कुछ क्षण तो देते हैं ..
    जिनकी बुनियाद पर --
    फिर नए सम्बन्ध जन्म ले लेते हैं

    जी हाँ बिलकुल सही कहा है आपने.

    ReplyDelete
  7. संबंधों का ये सिलसिला यूं ही चलता रहे।

    ReplyDelete
  8. are wah sambandhon pr sunder rachna
    rachana

    ReplyDelete
  9. इस पंक्तियों के पीछे कोई गहरा आघात झलक रहा है सरस जी ....

    यूँ ही नहीं निकलते ऐसे शब्द .....

    रब्ब खैर करे ....

    ReplyDelete
  10. इस पंक्तियों के पीछे कोई गहरा आघात झलक रहा है सरस जी ....

    यूँ ही नहीं निकलते ऐसे शब्द .....

    रब्ब खैर करे ....

    ReplyDelete
  11. पर हाँ ....
    अपने ही जाये यह सम्बन्ध
    कुछ क्षण तो देते हैं ..
    जिनकी बुनियाद पर --
    फिर नए सम्बन्ध जन्म ले लेते हैं....atulnatmak shabd

    ReplyDelete
  12. बहुत ही बढ़िया

    सादर

    ReplyDelete
  13. बहुत ही उम्दा रचना!

    ReplyDelete
  14. बहुत सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  15. बहुत सुन्दर ..........

    ReplyDelete
  16. नए चेहरे -
    नए लोग-
    नए नाम-
    लेकिन घूम फिरकर वही सम्बन्ध,
    जो चेहरों पर चिपक गए हैं.................sunder rachna .

    ReplyDelete
  17. क्षणिक सुख भी संतोष देते हैं।

    ReplyDelete
  18. संबंधों का ये अनवरत सिलसिला यूँ ही चलता रहता है वक्त के साथ और भी जुडता चलता है. बहुत अच्छी रचना, मन के गहन भाव, बधाई.

    ReplyDelete