नए चेहरे -
नए लोग-
नए नाम-
लेकिन घूम फिरकर वही सम्बन्ध,
जो चेहरों पर चिपक गए हैं
हमारे बर्ताव बन गए हैं -
फिर ऐसे संबंधों को
जीता रखने में
सबके योगदान का हिसाब क्यों?
वह तो स्वार्थ पर निर्भर है,
जो जंगली घास की तरह,
हर जगह फूट पड़ता है.
माँ भी तो बच्चे से मुआवजा मांगती है
कुंती ने भी कुछ ऐसा ही किया था...
फिर यह तो सम्बोधान्मात्र हैं .
पर हाँ ....
अपने ही जाये यह सम्बन्ध
कुछ क्षण तो देते हैं ..
जिनकी बुनियाद पर --
फिर नए सम्बन्ध जन्म ले लेते हैं.
नए लोग-
नए नाम-
लेकिन घूम फिरकर वही सम्बन्ध,
जो चेहरों पर चिपक गए हैं
हमारे बर्ताव बन गए हैं -
फिर ऐसे संबंधों को
जीता रखने में
सबके योगदान का हिसाब क्यों?
वह तो स्वार्थ पर निर्भर है,
जो जंगली घास की तरह,
हर जगह फूट पड़ता है.
माँ भी तो बच्चे से मुआवजा मांगती है
कुंती ने भी कुछ ऐसा ही किया था...
फिर यह तो सम्बोधान्मात्र हैं .
पर हाँ ....
अपने ही जाये यह सम्बन्ध
कुछ क्षण तो देते हैं ..
जिनकी बुनियाद पर --
फिर नए सम्बन्ध जन्म ले लेते हैं.
छीजते जा रहे संबंधों के इस भयावह समय में संबंधों पर सटीक टिप्पणी करती यह रचना अंत में इस बात का ऐलान करती सी लगती है कि कोई आस अब भी जीवित है कि नए संबंध फिर जन्म लेंगे, इन दुरूह स्थितियों में भी । बहुत अछी अभिव्यक्ति के लिए मेरी बधाई स्वीकारें। सचमुच एक अच्छी रचना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteदिल को छूने वाली रचना...
नए रिश्ते बनाते ही सारे समीकरण भी बादल जाते हैं ... सुंदर रचना
ReplyDeleteपर हाँ ....
ReplyDeleteअपने ही जाये यह सम्बन्ध
कुछ क्षण तो देते हैं ..
जिनकी बुनियाद पर --
फिर नए सम्बन्ध जन्म ले लेते हैं.
बहुत बढ़िया भावपूर्ण सुंदर रचना,...
RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...
पर हाँ ....
ReplyDeleteअपने ही जाये यह सम्बन्ध
कुछ क्षण तो देते हैं ..
जिनकी बुनियाद पर --
फिर नए सम्बन्ध जन्म ले लेते हैं.
sambandhon ki anyonnyashritata humen ek dusare se jode
rakhati hai. yahi hamara mul hai .aapane sudar saral sahaj
tarike se nibaha .pranam aapake lekhani ko aapake sath.
पर हाँ ....
ReplyDeleteअपने ही जाये यह सम्बन्ध
कुछ क्षण तो देते हैं ..
जिनकी बुनियाद पर --
फिर नए सम्बन्ध जन्म ले लेते हैं
जी हाँ बिलकुल सही कहा है आपने.
संबंधों का ये सिलसिला यूं ही चलता रहे।
ReplyDeleteare wah sambandhon pr sunder rachna
ReplyDeleterachana
इस पंक्तियों के पीछे कोई गहरा आघात झलक रहा है सरस जी ....
ReplyDeleteयूँ ही नहीं निकलते ऐसे शब्द .....
रब्ब खैर करे ....
इस पंक्तियों के पीछे कोई गहरा आघात झलक रहा है सरस जी ....
ReplyDeleteयूँ ही नहीं निकलते ऐसे शब्द .....
रब्ब खैर करे ....
पर हाँ ....
ReplyDeleteअपने ही जाये यह सम्बन्ध
कुछ क्षण तो देते हैं ..
जिनकी बुनियाद पर --
फिर नए सम्बन्ध जन्म ले लेते हैं....atulnatmak shabd
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
बहुत ही उम्दा रचना!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..........
ReplyDeleteसुन्दर रचना...
ReplyDeletebhavpoorna panktiyan
ReplyDeleteनए चेहरे -
ReplyDeleteनए लोग-
नए नाम-
लेकिन घूम फिरकर वही सम्बन्ध,
जो चेहरों पर चिपक गए हैं.................sunder rachna .
क्षणिक सुख भी संतोष देते हैं।
ReplyDeleteसंबंधों का ये अनवरत सिलसिला यूँ ही चलता रहता है वक्त के साथ और भी जुडता चलता है. बहुत अच्छी रचना, मन के गहन भाव, बधाई.
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