मौन के इस विस्तार में-
डूबते उतराते न जाने कितने प्रश्न-
अपने निरुत्तर होने का बोझ ढो रहे हैं...
यह अनगिनत त्रिशंकु -
हमारे इर्द गिर्द इसी इंतज़ार में मंडराते हुए...
की कब कोई आह ...कोई सिसकी, इन्हें बींधे ..
और इन्हें मिल जाये एक आसमान.. या फिर एक ज़मीन ..
---जिसकी जो नियति हो!
और हम -
हर ख़ुशी, घंटों.... इसी मुद्रा में गवां देते हैं -
पल..घंटों में...
घंटे प्रहारों में..
और प्रहर...दिनों... हफ़्तों ...महीनों में
परिवर्तित हो जाते हैं...
लेकिन यह मौन..
जस का तस-
बींधे जाने के इंतज़ार में-
और विस्तार पाता जाता है.
वाह....
ReplyDeleteअदभुद भावनाएं.....
सुन्दर...
बड़ा खतरनाक होता है ये मौन.....
ReplyDeleteभावपूर्ण प्रस्तुति..
बहुत बढ़िया भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,..
ReplyDeleteNEW POST...फिर से आई होली...
लेकिन यह मौन..
ReplyDeleteजस का तस-
बींधे जाने के इंतज़ार में-
और विस्तार पाता जाता है.
EACH AND EVERY LINE SAYS
SO SILENT SPEAKS.
मौन के इस सागर में सब कुछ लील जाता है ...
ReplyDeleteइसे तोडना ही बेहतर होता है ...
sahi kaha mam...wo maun maun hi rah jaata hai..
ReplyDeleteलेकिन यह मौन..
ReplyDeleteजस का तस-
बींधे जाने के इंतज़ार में-
और विस्तार पाता जाता है.
लगता है अब तो संवाद ज़रूरी है .... :):) गहन अभिव्यक्ति ॥
mon sbhi bhavon ko sanjaye rahta hae.sundar rachna hae.......
ReplyDeleteबहुत सही कहा है आपने |अच्छी प्रस्तुति |होली पर हार्दिक शुभ कामनाएं |
ReplyDeleteआशा
कम शब्द गहरे भाव
ReplyDelete"लेकिन यह मौन..
ReplyDeleteजस का तस-
बींधे जाने के इंतज़ार में-
और विस्तार पाता जाता है."
बहुत गहरी बात जो सीधी दिल तक पहुँची, अपनी सी लगी!
बहुत सुंदर सरस जी
मौन के इस विस्तार में-
ReplyDeleteडूबते उतराते न जाने कितने प्रश्न-
अपने निरुत्तर होने का बोझ ढो रहे हैं...
ANTAS TAK UTARTI RACHNA ...
BAHUT SUNDER ....
:) i think i got the gist. the feeling is introspective, the thought... exquisite!
ReplyDeleteसुन्दर शब्द व भावों का सुन्दरतम संयोजन..
ReplyDeleteहम लोगो की सोच पर मौन ही तो हावी हैं ...मौन की भाषा को पढ़ना अच्छा लगा
ReplyDeleteहोली की बहुत बहुत शुभकामनएं
बहुत खुबसूरत लगी पोस्ट। आपको होली की शुभकामनायें।
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता| होली की शुभकामनाएं।
ReplyDeleteसुंदर रचना !
ReplyDeleteआभार ब्लॉग पर आने का,
होली की आपको भी हार्दिक शुभकामनाएं !
मौन के इस विस्तार में-
ReplyDeleteडूबते उतराते न जाने कितने प्रश्न-
अपने निरुत्तर होने का बोझ ढो रहे हैं...
.भाव का विरेचन करती रचना .होली मुबारक .
सुंदर चित्रण है ...
ReplyDeleteरंगोत्सव की शुभकामनायें स्वीकार करें !