राह पर मैं अन्मनीसी चल रही थी...
एक दिन .
बिखरे पड़े पत्थरों से एक पत्थर लिया बिन,
घर ला उसे पूजा देवता माना...
दीवानी थी निर्बल को सबल माना ...
बहुत उम्मीद और आशाएं थी बंधी उससे...
यही मेरा साथी...
यही राह......
यही मंजिल होगी
सुख में....दुःख में... जीवन के हर आते पल में ,
मेरी उम्मीद की आखरी किरण होगी ...
फिर एक बार...
वह दिन भी आया ,
पुकारा अपने वांछित भगवन को ......
......कोई होता तो सुनता !!
मूरत की जगह एक कंकर पाया,
खुद को असहाय ...अकेला पाया..
नाथ लुप्त थे ,
शेष थी उस निर्बल पत्थर की ही काया.
और फिर बहुत रोई ..पछताई ...
वह पत्थर फिर वहीँ छोड़ आयी .
अब वही मैं हूँ,
वही राह,
वही पत्थर ढेरों......
बस वह श्रद्धा नहीं ,
शेष है तो एक विश्वास टूटा!!!!!!!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteभाव युक्त प्रस्तुति |
ReplyDeleteविश्वास टूटे तो जुड़ता नहीं है ... इसलिए किसी भी पत्थर पे विश्वास आसानी से नहीं होना जरूरी है ... होने पे टूटना भी न जरूरी है ऐसे ही ...
ReplyDeleteभावों का समीकरण है आपकी रचना ...
सच सरस जी !श्रद्धा और विश्वास बनाते समय हम कितना उत्साह, कितनी उमंगें रखते हैं दिल में और जब यह विश्वास टूटता है तो कितनी पीड़ा दे जाता है !
ReplyDeleteभावपूर्ण सुंदर अभिव्यक्ति !
इस अप्रतिम रचना के लिए बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteनीरज
अब वही मैं हूँ,
ReplyDeleteवही राह,
वही पत्थर ढेरों......
बस वह श्रद्धा नहीं ,
शेष है तो एक विश्वास टूटा!!!!!!!
जब विश्वास टूटता है तो कभी नही जुडता………उम्दा प्रस्तुति।
विश्वास है तो पत्थर भी भगवान बन जाता है .... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteसादर
सच है........
ReplyDeleteपाहन पूजें हरी मिलें..तो मैं पूजूं पहाड़....
बहुत अच्छी रचना.
सच है........
ReplyDeleteपाहन पूजें हरी मिलें..तो मैं पूजूं पहाड़....
बहुत अच्छी रचना.
अब वही मैं हूँ,
ReplyDeleteवही राह,
वही पत्थर ढेरों......
बस वह श्रद्धा नहीं ,
शेष है तो एक विश्वास टूटा!!!!!!!... अक्सर यही सार रह जाता है
वही राह,
ReplyDeleteवही पत्थर ढेरों......
बस वह श्रद्धा नहीं ,
शेष है तो एक विश्वास टूटा!!!!!!!
...bahut hi sunder abhivyakti ,badhai .
विशवास जब टूटता है तो अंतस में कुछ चटक सा जाता है..... बहुत ही सुंदरता से आपने इस व्यथा को अभिव्यक्ति दी है .
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर पहली बार आई हूँ....
ReplyDeleteविचारों की बहुत ही भावयुक्त और सरल-सहज अभिव्यक्ति.....
शुभकामनाएं......
शेष है तो एक विश्वास टूटा....sundar pakti ke sath kavy ka kalatmak aant...aur behad hi saarpurn kavita..
ReplyDeleteविस्वास एक बार टूटा तो जोड़ना बड़ा मुश्किल होता है .....पर ये एक मनस्थिति
ReplyDeleteहै वक्त के साथ ...सब कुछ बदलता है
टूटता विश्वास फिर श्रद्धा है क्या और आस्था क्या...वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteपत्थर तो भगवान बन जाता है, पर मन ... ? पत्थर?
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ReplyDelete♥
बहुत सुंदर रचना है ...
बधाई !
बहुत खूबसूरत !
बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन सटीक रचना,......
ReplyDeletemy resent post
काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.
मन चाहे तो पत्थर भी भगवान बन् जाता है बशर्ते विश्वास कायम रहे..बहुत सुंदर प्रस्तुति...
ReplyDeleteआपकी भाषा और शब्दों पर पकड़ बेहतरीन है......चुने हुए और कम शब्दों में गहरी बात करती......बहुत दुःख होता है जब विश्वास टूटता है और बहुत ही मुश्किल होता है उसे दुबारा से जोड़ पाना ।
ReplyDeleteअब वही मैं हूँ,
ReplyDeleteवही राह,
वही पत्थर ढेरों......
बस वह श्रद्धा नहीं ,
शेष है तो एक विश्वास टूटा!!!!!!!... wah.......
simply wah!
bahut khoobsurat....hindi abhi bhi hai, achha laga dekhkar :)
ReplyDeletekeep writing
saras ji maine apki do rachnao ko padha abhi ,bahut khub darshan hai apke antah karan ka ,sundar rachnaye
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