कभी कभी विचलित मन:स्तिथि और अवरुद्ध कंठ से निकलते निकलते परिभाषाएं बदल जाती है ....
ऐसे ही एक पल की सोच ...
ज़िन्दगी
एक अँधा कुआँ -
जिसमें चीखनेवाले कि आवाज़
पलटकर नहीं लौटती -
वह राह-
जहाँ तपते पथरों और पिघलते कोलतार के दरिया हैं -
वह सफ़र-
जिसे तनहा ही काटना है
वह जुआ -
जिसे हारते हुए भी खेलते जाना है
वह नदी
जिसमें तैरा नहीं जाता ..सिर्फ बहा जाता है
वह पहेली -
जिसके अनेक जवाब हैं ...सब सही !
वह अभिशाप-
जिससे सब ग्रस्त हैं
वह नेयमत-
जो मांगनेसे नहीं मिलती
वह विडम्बना -
जिससे झूझते जाना है
वह नेत्र -
जो हर आशा को ध्वस्त कर दे
वह तमपुन्ज-
जहाँ कष्ट, मृत्यु, भय पनपते हैं
वह आकर्षण-
जिसे सब अपनाना चाहें
वह त्रासदी -
जिससे कोई मुक्ति नहीं ....
......फिर भी ज़िन्दगी कहलाती है
और मौत !
कितनी सुन्दर शांत और स्थिर
माँ की गोद की तरह
उन थपकियों की तरह -
जो हर थकान को, निचोड़ फ़ेंक दे
उस लोरी की तरह -
जो विचलित मन को शांत कर दे
वह राहत-
जो जलती चोट पर , पानी की सी ठंडक पहुंचा दे
वह टिमटिमाती रौशनी -
जो हर ठोकर से बचा ले
वह खूबसूरत चाँद -
जिसकी चांदनी में शिथिल पड़ा शरीर
सभी सुख सुख से परे हो जाये -
-तकलीफों की एक सुन्दर इति -
सोच जब कई दिशाओं से गुजरती है , तभी कुछ मोती उसके हाथ लगते हैं . आपके एहसास उन मोतियों से लगते हैं , वरना ख्यालों की लहरें तो अनवरत शोर मचाती हैं
ReplyDeleteमौत कभी हश्र का मोहताज़ नहीं
ReplyDeleteमौत आगाज़ है अंजाम नहीं
बस ज़िन्दगी ज़िन्दगी है इसका अंदाज़ जुदा है
इसके जीने का बहाना और तरीका निराला है
जीना आ गया तो ठगते ठगाते कट जाती है
कुछ बाकि है कुछ गुजर गई कुछ और गुजर जायेगी
रपटीली राहों में साकी ज़िन्दगी बसर हो जाएगी
जीवन बस ऐसा ही है .
आपकी लाइन इतने सुन्दर और आपने लगे की कुछ कहने की
हिम्मत बनी .खुबसूरत शब्दों के लिए क्यों कहूँ धन्यवाद् .
jivan ke anubhavon ke motiyon ki sarthak mala .bdhai sveekaen.
ReplyDeletehttp://bulletinofblog.blogspot.in/2012/03/6.html
ReplyDeleteजिंदगी और मौत को आपने अच्छे से व्यक्त किया है....सुंदर कविता.
ReplyDeleteबहुत खूब आंटी!
ReplyDeleteसादर
बहुत ही सुन्दर ,,,गहन भाव अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteऔर मौत !
ReplyDeleteकितनी सुन्दर शांत और स्थिर
माँ की गोद की तरह
उन थपकियों की तरह -
जो हर थकान को, निचोड़ फ़ेंक दे
उस लोरी की तरह -
जो विचलित मन को शांत कर दे
वह राहत-...
जिन्दगी औरमौत की सच्चाई को सुन्दर शब्द दिए हैं आपने... सुन्दर रचना के लिए आभार
कितनी सुन्दर शांत और स्थिर
ReplyDeleteमाँ की गोद की तरह
उन थपकियों की तरह -
जो हर थकान को, निचोड़ फ़ेंक दे
बहुत ही सुन्दर..........
कृपया थपकते रहियेगा
सादर
यशोदा
"-तकलीफों की एक सुन्दर इति -"
ReplyDeleteताज्जुब है फिर भी कोई तकलीफ से मुक्ति नहीं पाना चाहता है...!
जीवन एक उलझाव है......और जान कर भी हम इसी में सुखी हैं....!!
सुन्दर रचना....!!
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है सरस जी, कभी कभी जिंदगी मौत से भी डरावनी प्रतीत होती है ....... अवसाद के उन पलों की मनः स्तिथि का सटीक चित्रण!
ReplyDeleteक्या बात है सरस जी............
ReplyDeleteजिंदगी पर मौत भारी पड़ गयी.....
मरने को जी चाहने लगा....
गहन भाव.....
सस्नेह.
बहुत सुन्दर बिंबों में जिन्दगी और मौत को दर्शाया है आपने..
ReplyDeleteस्थूल रूप को निहारता सूक्ष्म शरीर .खुद से गुफ्तु गु एक बार फिर कर ले .बन आदमी ज़रूर बन ..
ReplyDeleteयही तो भौतिक द्वंद्व है फिर भी आदमी मौत से डरता है ज़िन्दगी से नहीं ....
बहुत सुंदर रचना,......
ReplyDeleteकाव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.
ReplyDelete♥
आदरणीया सरस जी
सस्नेहाभिवादन !
ज़िंदगी और मौत की नई परिभाषा दी है आपने …
मौत !
कितनी सुन्दर शांत और स्थिर
माँ की गोद की तरह
उन थपकियों की तरह -
जो हर थकान को, निचोड़ फ़ेंक दे
उस लोरी की तरह -
जो विचलित मन को शांत कर दे
वह राहत-
जो जलती चोट पर , पानी की सी ठंडक पहुंचा दे
वह टिमटिमाती रौशनी -
जो हर ठोकर से बचा ले
वह खूबसूरत चाँद -
जिसकी चांदनी में शिथिल पड़ा शरीर
सभी सुख सुख से परे हो जाये -
-तकलीफों की एक सुन्दर इति -
…हां, यह भी एक दृष्टिकोण है …
लेकिन मेरा सविनय निवेदन है कि जीवन में हताशा - निराशा हावी न हो …ऐसे यत्न होते रहने चाहिए …
:)
~*~नवरात्रि और नव संवत्सर की बधाइयां शुभकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
कितनी सुन्दर शांत और स्थिर
ReplyDeleteमाँ की गोद की तरह bahut achchi prastuti....
और मौत !
ReplyDeleteकितनी सुन्दर शांत और स्थिर
माँ की गोद की तरह
उन थपकियों की तरह -
जो हर थकान को, निचोड़ फ़ेंक दे
उस लोरी की तरह -
जो विचलित मन को शांत कर दे
वह राहत-
अनुपम भावों को समेटे हुए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
जीवन और मौत ... दोनों को अपने ही अंदाज़ से लिखा है आपने ... बहुत खूब ...
ReplyDeleteजब जिंदगी में चारों तरफ प्रतिकूलताएं हों तो ऐसे में जिंदगी के मायने बदल जाते हैं. सच कहा मौत तकलीफों का अंत है. फिर भी जिंदगी ही चाहते हैं हमसभी क्योंकि मौत के बाद क्या होता कौन जाने. सारे बिम्ब जो जिंदगी के लिए हैं उनकी अनुभूति तो जीवित रहने में है मौत के बाद...
ReplyDeleteबहुत गहरे भाव, जीवन के करीब. बधाई सरस जी.
ज़िन्दगी के रंग कई रे साथ रे , ज़िन्दगी के रंग कई रे ..............
ReplyDeletei am totaly specchless for these graet post by you....amazing....haits off (Hatrik :-))
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति । धन्यवाद ।
ReplyDeletesundar,bahut sundar rachna,bahut acha likhti hai saras ji aap,bdhaai...
ReplyDeleteबहुत ही गहन और अत्यंत सुंदर अभिव्यक्ति ..बहुत चिंतन के फलस्वरूप रचित अत्यंत विचारणीय प्रस्तुति
ReplyDeleteKya likhu ... aapne to nishabd ker diya hai ...itna sunder likha hai ki bas keval ...WAH WAH aur WAH ....
ReplyDeleteजिंदगी और मौत दोनो को समझाया है आपने। मेरी समझ से ऐसा इसलिए लगता है कि जिंदगी हम जीते हैं और मौत हमने देखा नहीं। जिसे जाना नहीं वो खूबसूरत, जिसे भोगा वह दुखदायी लगती है। यही विरोधाभास है..यही सच है।
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