रे मन तू तो एक तितली है,
कब किसके हाथ है आ पाया ...
किसने जानी महिमा तेरी ,
कौन है तुझको समझ पाया...
पल भर में सागर लांघ के तू,
है क्षितिज पार पहुँच जाता ..
और स्पर्श उसे कर , झट से तू
कल्पना में मेरी समां जाता ...
फिर नभ में दूर उड़ते पंछी-
के पंखों को जा सहला आता ...
और भीगे बादल का एक टुकड़ा
कन्धों पर मेरे रख जाता .
हे रंगों की प्रतिमा फिरसे
एक और भ्रमण करके आओ
कोयल की बोली...
भ्रमरों के गीत ...
का अर्थ मुझे समझा जाओ !!!
सुन्दर!
ReplyDeleteकोयल की बोली...
ReplyDeleteभ्रमरों के गीत ...
का अर्थ मुझे समझा जाओ !!!
I ALWAYS WAIT TO PUT FEW ADVERSE REMARK IN YOUR POST.
BUT IT IS VERY MUCH DIFFICULT TO SAY A WORD IN ANY LINE.
NO THANKS JUST PRANAM TO YOU.
बहुत सुन्दर सरस जी...
ReplyDeleteमन न कभी बंधा है न इसकी थाह कोई खोज पाया...
सादर.
बहुत सुंदर सरस रचना, बेहतरीन प्रस्तुति.......
ReplyDeleteMY RESENT POST ...काव्यान्जलि ...:बसंती रंग छा गया,...
मन तो न जाने कहाँ कहाँ भ्रमण कर आता है ... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteमन की चपलता का सुन्दर , रंग भरा वर्णन ..... बहत खूब!]
ReplyDeleteबेहतरीन।
ReplyDeleteसादर
कल 12/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
मन तितली की चंचल गति को कौन पहचान पाया है ...
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति !
और स्पर्श उसे कर , झट से तू
ReplyDeleteकल्पना में मेरी समां जाता ...
फिर नभ में दूर उड़ते पंछी-
के पंखों को जा सहला आता ...
और भीगे बादल का एक टुकड़ा
कन्धों पर मेरे रख जाता .
हे रंगों की प्रतिमा फिरसे
एक और भ्रमण करके आओ
कोयल की बोली...
भ्रमरों के गीत ...
का अर्थ मुझे समझा जाओ !!!waah! saras ji bahut manbhavan rahna hai,acha lga padh kar
फिर नभ में दूर उड़ते पंछी-
ReplyDeleteके पंखों को जा सहला आता ...
और भीगे बादल का एक टुकड़ा
कन्धों पर मेरे रख जाता ....Behad umda!
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteशुभकामनाएँ
वाह ...बहुत ही बढि़या।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति...वाह!
ReplyDeleteati sundar bhav ke sath sundar rachana pr hardik badhai saras ji .
ReplyDeletebahut sunder
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