Monday, March 5, 2012

मन वृन्दावन!



अगहन की बिखरी दोपहर में
लॉन में कुर्सी डाले बैठी हूँ ....
मुलायम धूप का अनुभव
कमरे से आती जलती अगरबत्ती की खुशबू -
सब मुझे छूकर गुज़रते जा रहे हैं
                                                                                   
लहलहाते सुरु की सबसे ऊँची डालपर-
 बैठी एक चिड़िया,
                झोके खा रही है
-शायद यही उसका स्वर्ग है !                      

नारियल के ऊँचे झुके हुए पत्ते
किसी उन्मत्त हाथी की तरह
 झूम रहे हैं-
एक मकड़ी अपने जाले के
 बीचों बीच बैठी -
शिकार का इंतज़ार कर रही है .

यहाँ बैठे , दो पहर बीत चुके हैं ,
धूप ढल चुकी है -
जली हुई अगरबत्ती की भभूत
मंदिर के सामने इकट्ठी हो गयी है .
झूमते हुए वे हाथी -
अब कहीं दिखाई नहीं देते !
चिड़िया - अब बसेरा ले चुकी है ,
                      हवा - शांत है ,
मकड़ी भी शिकार कर सो चुकी है !
लेकिन मैं जडवत हूँ
और मेरे साथ है -
मेरा एकान्तिक अस्तित्व!

19 comments:

  1. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ...

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  2. नारियल के ऊँचे झुके हुए पत्ते
    किसी उन्मत्त हाथी की तरह
    झूम रहे हैं-
    एक मकड़ी अपने जाले के
    बीचों बीच बैठी -
    शिकार का इंतज़ार कर रही है
    Bahut Umda

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  3. वाह!!!
    सुन्दर सरस प्रस्तुति....

    बधाई.

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  4. मन वृन्दावन हो गया रचना पढ़ कर...

    सुन्दर...
    होली शुभ हो.....

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  5. लेकिन मैं जडवत हूँ
    और मेरे साथ है -
    मेरा एकान्तिक अस्तित्व!... जड़ में ही चेतन का अस्तित्व सुगबुगाता है

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  6. दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
    dineshkidillagi.blogspot.com
    होली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।
    कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।

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  7. सुन्दर प्रस्तुति !
    होली की ढेर साडी शुभकामनायें !

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  8. एकान्तिक अस्तित्व बहुत ही मुखरता से अभिव्यक्‍त हुआ है। आपकी लेखनी पाठक को बाँधती चली जाती है और अंतिम पंक्‍तियाँ तो बहुत ही सुंदर बन पड़ी हैं।

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  9. बेहतरीन प्रस्तुति,सुंदर भाव अभिव्यक्ति....
    होली की बहुत२ बधाई शुभकामनाए...

    RECENT POST...काव्यान्जलि ...रंग रंगीली होली आई,

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  10. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति .होली की शुभकामनायें !..

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  11. गतिमय रचना..होली की शुभकामनायें !

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  12. .

    "मेरे साथ है -
    मेरा एकान्तिक अस्तित्व!"

    बहुत सुंदर कविता है …
    आपकी कुछ पुरानी पोस्ट्स भी देखी … अच्छी रचनाएं हैं …
    आभार और साधुवाद !

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    ♥ होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार ! ♥
    ♥ मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !! ♥



    आपको सपरिवार
    होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
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  14. मकड़ी भी शिकार कर सो चुकी है !
    लेकिन मैं जडवत हूँ
    और मेरे साथ है -
    मेरा एकान्तिक अस्तित्व!
    man khush ho gaya yahan aakar bahut hi sundar ,holi ki dhero badhai aapko

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  15. bahut hi kammal ka likhti hain aap......

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  16. गहन चिंतन को समेटे सारे शब्द भावनाओं से अभिभूत ...आपके ब्लॉग पर आकार अच्छा लगा

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  17. बहुत ही सुन्दर रचना

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