अगहन की बिखरी दोपहर में
लॉन में कुर्सी डाले बैठी हूँ ....
मुलायम धूप का अनुभव
कमरे से आती जलती अगरबत्ती की खुशबू -
सब मुझे छूकर गुज़रते जा रहे हैं
लहलहाते सुरु की सबसे ऊँची डालपर-
बैठी एक चिड़िया,
झोके खा रही है
-शायद यही उसका स्वर्ग है !
नारियल के ऊँचे झुके हुए पत्ते
किसी उन्मत्त हाथी की तरह
झूम रहे हैं-
एक मकड़ी अपने जाले के
बीचों बीच बैठी -
शिकार का इंतज़ार कर रही है .
यहाँ बैठे , दो पहर बीत चुके हैं ,
धूप ढल चुकी है -
जली हुई अगरबत्ती की भभूत
मंदिर के सामने इकट्ठी हो गयी है .
झूमते हुए वे हाथी -
अब कहीं दिखाई नहीं देते !
चिड़िया - अब बसेरा ले चुकी है ,
हवा - शांत है ,
मकड़ी भी शिकार कर सो चुकी है !
लेकिन मैं जडवत हूँ
और मेरे साथ है -
मेरा एकान्तिक अस्तित्व!
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ...
ReplyDeleteनारियल के ऊँचे झुके हुए पत्ते
ReplyDeleteकिसी उन्मत्त हाथी की तरह
झूम रहे हैं-
एक मकड़ी अपने जाले के
बीचों बीच बैठी -
शिकार का इंतज़ार कर रही है
Bahut Umda
वाह!!!
ReplyDeleteसुन्दर सरस प्रस्तुति....
बधाई.
मन वृन्दावन हो गया रचना पढ़ कर...
ReplyDeleteसुन्दर...
होली शुभ हो.....
लेकिन मैं जडवत हूँ
ReplyDeleteऔर मेरे साथ है -
मेरा एकान्तिक अस्तित्व!... जड़ में ही चेतन का अस्तित्व सुगबुगाता है
दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
ReplyDeletedineshkidillagi.blogspot.com
होली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।
कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।
सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteहोली की ढेर साडी शुभकामनायें !
एकान्तिक अस्तित्व बहुत ही मुखरता से अभिव्यक्त हुआ है। आपकी लेखनी पाठक को बाँधती चली जाती है और अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही सुंदर बन पड़ी हैं।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति,सुंदर भाव अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteहोली की बहुत२ बधाई शुभकामनाए...
RECENT POST...काव्यान्जलि ...रंग रंगीली होली आई,
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति .होली की शुभकामनायें !..
ReplyDeleteगतिमय रचना..होली की शुभकामनायें !
ReplyDelete.
ReplyDelete"मेरे साथ है -
मेरा एकान्तिक अस्तित्व!"
बहुत सुंदर कविता है …
आपकी कुछ पुरानी पोस्ट्स भी देखी … अच्छी रचनाएं हैं …
आभार और साधुवाद !
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♥ होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार ! ♥
♥ मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !! ♥
आपको सपरिवार
होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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मकड़ी भी शिकार कर सो चुकी है !
ReplyDeleteलेकिन मैं जडवत हूँ
और मेरे साथ है -
मेरा एकान्तिक अस्तित्व!
man khush ho gaya yahan aakar bahut hi sundar ,holi ki dhero badhai aapko
Gahari Abhivykti....
ReplyDeletebahut hi kammal ka likhti hain aap......
ReplyDeleteगहन चिंतन को समेटे सारे शब्द भावनाओं से अभिभूत ...आपके ब्लॉग पर आकार अच्छा लगा
ReplyDeleteumda rachna
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना
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