वह पेड़ देख रहे हो
उसे कई बार भींचकर जोर से चीखी हूँ ख्यालों में ...
डरती हूँ ...
किसीने देख लिया तो -
कैसे छिपा पाऊँगी वह दर्द-
किसीने सुन लिया तो -
कहाँ छिपा पाऊँगी-
गूँज, उस चीख की जो मेरे भीतर पैठी है ...
कैसे बता पाऊँगी -
की मैं भी जीती हूँ -
तुम्हारे समक्ष एक बौना अस्तित्व लिए जीती रही मैं
लहु लुहान हो गिरती रही उन टीलों पर-
जो तुम्हारे अहंकार ने खड़े किये .
तौलते रहे तुम -
हमेशा -
मेरे शब्दों को -
मेरी मंशाओं को -
और मैं , डरी सहमी जीती रही
तुम्हारे मापदंडों पर कमतर न होने के भय से..
कभी बोल न सकी वह , जो मेरे मन ने कहा ..
छोटी इच्छाएं मारीं -
एक बड़ी ख़ुशी के लिए ..
जो मिलीं , पर टुकड़ों में-
हर दो टुकड़ों के बीच , एक लम्बी यातना -
एक असह्य पीड़ा उन टीलों को तोड़ते हुए होती -
जो तुम्हारी ग़लतफ़हमियों ने खड़े किये थे -
सच जानते हुए ..उसे सदा नाकारा
एक झूठ का जाल बुनकर -
उलझते गए....जकड़ते गए ...
फिर उस जाल को काटने का एक और सिलसिला -
जो अविरल चलता ....
फिर टूटते, बिखरते समटते हुए खुदको
फिर लहूलुहान होती तुम्हारे तानों कटाक्षोंसे ......
बस यूहीं-
वर्षों से चलते आ रहे इस घटनाक्रम में
कुछ हिस्से छूटते गए --
और मैं अधूरी होती गयी...
और अधूरी .......
और अधूरी ....!
पढ़ते हुए हर शब्द मन को छूता बस छूता चला गया ...
ReplyDeleteजीवन के घटनाक्रम को बखूबी उकेरा है।
ReplyDeleteजीवन के अहसासों को बड़ी खूबसूरती से प्रस्तुति किया है,,,बेहतरीन,
ReplyDeleteअपने अधूरेपन में खुद को पूरा करने का प्रयास पतली रस्सी पर नट की तरह चलना लगा ...
ReplyDeletewaah.. bahut sundaar kavymay parstiti..
ReplyDeleteतौलते रहे तुम -
हमेशा -
मेरे शब्दों को -
मेरी मंशाओं को -
और मैं , डरी सहमी जीती रही..finest line..
कहाँ छिपा पाऊँगी-
ReplyDeleteगूँज, उस चीख की जो मेरे भीतर पैठी है ...
कैसे बता पाऊँगी -
की मैं भी जीती हूँ -
नारी हृदय की वेदना को बखूबी उकेरा है ।
बस यूहीं-
ReplyDeleteवर्षों से चलते आ रहे इस घटनाक्रम में
कुछ हिस्से छूटते गए --
और मैं अधूरी होती गयी...
और अधूरी .......
और अधूरी ....!
आदरणीया सरस जी नारी की यही सहनशीलता उसे सदैव विश्ववन्द्य बनाती है, कुछ है जिसे पूर्णता देना है . यह अतिश्योक्ति नहीं ध्रुव सत्य है की नारी का जन्म देने के लिए है धरा और नारी की सहनशीलता की समानता की जाती है लेकिन पीड़ा भी हमारे जीवन का अनमोल हिस्सा जान पड़ता है .
नारी हृदय की वेदना को बहुत सुन्दरता से व्यक्त किया है..सरस जी
ReplyDeleteवर्षों से चलते आ रहे इस घटनाक्रम में
ReplyDeleteकुछ हिस्से छूटते गए --
और मैं अधूरी होती गयी...
बहुत भावनात्मक सीधे दिलसे निकलते शब्द.
सुंदर प्रस्तुति के लिये बधाइयाँ.
कविता के भाव एवं शब्द का समावेश बहुत ही प्रशंसनीय है। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।
ReplyDeleteबस यूहीं-
ReplyDeleteवर्षों से चलते आ रहे इस घटनाक्रम में
कुछ हिस्से छूटते गए --
और मैं अधूरी होती गयी...
और अधूरी .......
और अधूरी ....!
.....दिल को छूती रचना...बहुत मर्मस्पर्शी...
भाव, भाषा एवं अभिव्यक्ति सराहनीय है। मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteनारी पीड़ा को बखूबी शब्द दिए है आपने . हर पंक्ति अहसासों को झकझोरती है और सोचने को बाध्य करती है . बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteभीतर तक छू गई यह रचना ! जैसे हर नारी आपकी लेखनी के माध्यम से जीवित हो उठी हो !
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
लहु लुहान हो गिरती रही उन टीलों पर-
ReplyDeleteजो तुम्हारे अहंकार ने खड़े किये .
तौलते रहे तुम -
हमेशा -
मेरे शब्दों को -
मेरी मंशाओं को -
और मैं , डरी सहमी जीती रही........
अंतर्मन के गहरे भाव .........बखूबी बयां किये हैं आपने ....
एक एक कतरे से जैसे दर्द टपकता हुआ..
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक रचना
अधूरेपन और जीवन के विघटन को सहेजती समेटती भाव-भरी रचना।
ReplyDeleteएक आह निकल कर रह गयी ...
ReplyDeleteरिश्तों को गलतफहमियों का घुन लग जाये तो यही व्यथा होती है !
नारी मन के अधूरेपन की मार्मिक प्रस्तुति !
धुआँ ....धुआँ ...... और .. धुआँ। इस धुयें ने तो सिसकियों का भी गला घोट दिया। इस घुटन में भी जीने की विवशता ....भारतीय उपमहाद्वीप की आधी दुनिया इतनी श्रापित क्यों है?
ReplyDeleteधुआँ ....धुआँ ...... और .. धुआँ। इस धुयें ने तो सिसकियों का भी गला घोट दिया। इस घुटन में भी जीने की विवशता ....भारतीय उपमहाद्वीप की आधी दुनिया इतनी श्रापित क्यों है?
ReplyDeleteहर नारी के मन की टीसती रग को छू लिया है सरस जी आपकी रचना ने ! शायद स्त्री के प्रारब्ध में इसी तरह टुकड़े-टुकड़े होकर अपने अधूरेपन को सहेजना ही लिखा है ! हर शब्द आँख नम कर गया !
ReplyDeleteहर शब्द शब्द की अपनी अपनी पहचान बहुत खूब
ReplyDeleteमेरी नई रचना
खुशबू
प्रेमविरह
बहुत बढ़िया ....आपको धन्यवाद ............
ReplyDeleteआप भी पधारो आपका स्वागत है ....pankajkrsah.blogspot.com
बहुत मार्मिक प्रस्तुति .........नारी के मन की विवशता ....
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