Friday, September 7, 2012

जीवन चक्र के अभिमन्यु -




अपने अपने धर्म युद्ध में लिप्त 
अक्सर देखा है उसे ...
परिस्थितियों के चक्रव्यूह 
भेदने की जद्दोजहद में .....

कभी 'वह' -
लगभग हारा हुआ सा 
उस युवा वर्ग का हिस्सा बन जाता है
जो रोज़, एक नौकरी ...एक ज़मीन की होड़ में 
नए हौसलों...नई उम्मीदों को साथ लिए निकलता है 
और हर शाम -
मायूसी से झुके कंधे का भार ढोता हुआ -
उन्ही तानों , तिरस्कार और हिकारत भरी 
नज़रों के बीच लौट आता है 
रोटी के ज़हर को लगभग निगलता हुआ ...
क्योंकि कल फिर एक और युद्ध लड़ने की ताक़त जुटानी है 
एक और चक्रव्यूह को भेदना है -

कभी 'वह '
एक युवती बन जाता है -
जो खूंखार इरादों,
बेबाक तानों और भेदती नज़रों के चक्रव्यूह के बीच
खुद को घिरा पाती है -
दहशत -
उस चक्रव्यूह के द्वार खोलती जाती है -
और वह उन्हें भेदती हुई -
और अधिक घिरती जाती है ....

कभी 'वह' 
एक विधवा रूप में पाया जाता है -
एक त्यक्ता, एक बोझ ...एक अपशकुन 
का पर्याय बन -
वह भी जीती जाती है,
भेदती हुई संवेदनाओं और कृपादृष्टि के चक्रव्यूह 
की शायद इन्हें भेदते हुए -
भेद दे कोई आत्मा -
और दर्द का एक सोता फूट पड़े -
जिससे कुछ हमदर्दी और अपनेपन के छींटे 
उस पर भी पड़ें -
और आकंठ डूब जाये 
वह उस कृपादृष्टि में 
जो भीख में ही सही -
मिली तो .....

न जाने ऐसे कितने असंख्य अभिमन्यु 
अपने अपने धर्म की लड़ाई लड़ते हुए 
जीवन के इस चक्रव्यूह की 
भेंट चढ़ते आ रहे हैं ....
और चढ़ते रहेंगे .......

21 comments:

  1. गहन सत्य को कहती गंभीर रचना ,

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  2. बेहतरीन और लाजवाब.....हैट्स ऑफ इसके लिए।

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  3. बेहद गंभीर और गहन रचना ।


    सादर

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  4. द्वापर में अभिमन्यु चक्रव्यूह को भेद गया शायद निकल भी जाता किन्तु तब महा योद्धा थे .आज अभिमन्यु व्यूह भी भेद लेगा और अपनी श्रेष्ठता भी सिद्ध कर लेगा . समय ने उसे सब कुछ सिखा दिया है .

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    1. समय और उसकी मांग, मनुष्य के सबसे बड़े गुरु होते है ...वह उसे सब कुछ सिखा देते हैं ....चक्रव्यूह भेदना भी ......aabhar!

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  5. गहन भाव लिए उत्‍कृष्‍ट लेखन ...आभार

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  6. जीवनचक्र और अभिमन्यु ... धर्म और अधर्म की खींचातानी

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    1. सही कहा रश्मिजी ...सबकी अपनी अपनी लड़ाई है ..कभी वह धर्म की तरफ होता है ..कभी अधर्म की आड़ में ...लेकिन चक्रव्यूह कर किसी को भेदना होता है ......

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  7. जीवन की कठिनाई कहती गहन अभिव्यक्ति... आभार

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  8. गहन भाव लिए उत्‍कृष्‍ट अभिव्यक्ति... आभार

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  9. बहुत सुन्दर सरस जी....
    कभी वो बुज़ुर्ग माँ बाप बन जाता है जो अपने ही घर में अपने ही बच्चों के बीच खुद को फंसा पाता है और छटपटाता है बाहर निकलने को..
    जाने कितने अभिमन्यु हैं यहाँ..

    सादर
    अनु

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    1. और हर कोई अपनी लड़ाई में लिप्त ....आभार अनुजी .

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  10. कभी 'वह '
    एक युवती बन जाता है -
    जो खूंखार इरादों,
    बेबाक तानों और भेदती नज़रों के चक्रव्यूह के बीच
    खुद को घिरा पाती है -
    दहशत -
    उस चक्रव्यूह के द्वार खोलती जाती है -
    और वह उन्हें भेदती हुई -
    और अधिक घिरती जाती है ....

    बहुत विस्तृत सोच है आपकी सरस जी ....!!
    गहन ...गंभीर और उत्कृष्ट रचना ....

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  11. बहुत ही बढ़िया उत्कृष्ट प्रस्तुति,,,,सरस जी,,,,

    RECENT POST,तुम जो मुस्करा दो,

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  12. हर दिन एक युद्ध ही तो है और इसे जीतने के लिए अभिमन्यु तो बनना ही पड़ता है | सामयिक रचना |

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    1. सही कहा अमितजी ....और जो नहीं लड़ना चाहते...वक़्त की मांग उन्हें भी इस युद्ध में झोंक देती है ....आपका पोस्ट पर आना अच्छा लगा ...

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  13. हजारों अभिमन्यु चक्रव्यूह में घिरे यहाँ -वहां

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    1. जी हाँ सही कहा आपने..और हर कोई अपनी अपनी लड़ाई में लिप्त....आभार पोस्ट पर आने के लिए ....

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  14. ना जाने कितने अभिमन्यु भेदते आ रहे है रोज़ इस जीवन चक्र को....बहुत ही अर्थपूर्ण रचना।

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  15. जीवन की जद्दोजहद को शिद्दत से कहती बहुत खूबसूरत रचना.

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  16. जीवन का पर्याय ही चक्रव्यूह हो गया है..अति सुन्दर रचना.

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