Friday, September 7, 2012

हाइकु- परछाइयाँ




देती हैं साथ
रौशनी में ही सिर्फ
परछाइयाँ

कहलाती हैं
सच्ची दोस्त फिर भी
परछाइयाँ

तेज धूप में
सिकुड़ जाती हैं ये
परछाइयाँ

पर फैलती
सुबह शाम यह
परछाइयां

दुःख में कम
सुख में अधिक ये
परछाइयाँ

कहलाती हैं
हमदर्द फिर भी
परछाइयां

छूना चाहो तो
हाथ नहीं आती ये
परछाइयाँ

साथ होने का
दावा क्यों करती ये
परछाइयाँ

17 comments:

  1. adbhut soch ...
    bahut sundar haiku ...
    shubhkamnayen Saras ji ..

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  2. सचमुच बहुत सुंदर प्रसंसनीय हाइकू,,,,सरस जी बधाई,,,

    RECENT POST,तुम जो मुस्करा दो,

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  3. खेलती हैं संग मेरे परछाइयां
    आंखमिचौली में गुम होती परछाइयां
    अपनी लगती हैं ये परछाइयां
    जाने कितनी आकृतियाँ दे जाती हैं परछाइयां

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  4. ....साथ होने का
    दावा क्यों करती ये
    परछाइयाँ

    सही सवाल..
    .जब अँधेरे में साथ छोड़ जाती है,परछाइयां

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  5. अंधेरे में ये
    साथ छोड़ देती हैं
    परछाइयाँ

    खूबसूरत हाइकु

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  6. छूना चाहो तो
    हाथ नहीं आती ये
    परछाइयाँ

    साथ होने का
    दावा क्यों करती ये
    परछाइयाँ

    beautiful :) :)

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  7. सुना है दुःख में
    साथ छोड़ जाती है
    परछाइयाँ...
    बहुत सुंदर हाइकू...

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  8. बहुत खूब ... ये परछाइयां ...
    बहुत खूबसूरत हाइकू हैं सभी इन परछाइयों के साथ ...

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  9. दुःख में कम
    सुख में अधिक ये
    परछाइयाँ

    कहलाती हैं
    हमदर्द फिर भी
    परछाइयां
    bilkul sch aur sateek ....badhai saras ji

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  10. सभी सुन्दर हैं....परछाईंयां

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  11. खूबसूरत ...परछाईयाँ

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  12. har hal men khoobsurat hoti hai ye parcchaiyan ...

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  13. छूना चाहो तो
    हाथ नहीं आती ये
    परछाइयाँ

    साथ होने का
    दावा क्यों करती ये
    परछाइयाँ
    वाह ... बेहद सशक्‍त पंक्तियां ...आभार

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  14. छूना चाहो तो
    हाथ नहीं आती ये
    परछाइयाँ

    साथ होने का
    दावा क्यों करती ये
    परछाइयाँ...

    .....खूबसूरत परछाईया!

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  15. Superb!!
    har ek haiku behtreen hai!!

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  16. कमाल का हाइकू लिखती हैं आप..

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