इक्षा हूँ मैं -
एक सपना-
एक मृगतृष्णा -
एक सीमाहीन विस्तार -
विभिन्न रंग ...रूप ....आकार...!
उगती हूँ.... अंत:स की गहराईयों में -
खोजती हूँ उजाले -
उम्मीदों के -
संभावनाओं के -
विस्थापना का डर घेरे रहता है
आशंकाएँ सुगबुगाती हैं भीतर ...
लेकिन आस फिर भी जीता रखती है मुझे ...
जानती हूँ ...
अभी और तपना है ...
निखरना है ...
कसौटी पर खरा उतरना है
सिद्ध करना है स्वयं को
ताकि न्यायसंगत हो सके मेरा वजूद
अकाल मृत्यु का डर मझे नहीं
जब तक मनुष्य रहेगा -
कुछ पाने की होड़ रहेगी -
सपने देखने की कूवत रहेगी -
एक मरणासन की आखरी उम्मीद बनकर भी
जीवित रहूंगी मैं ....!
bahut sundar soch ...bahut sarthak rachna Saras ji ....
ReplyDeleteप्रोत्साहन के लिए आभार अनुपमाजी
Deleteखोजती हूँ उजाले -
ReplyDeleteउम्मीदों के -
संभावनाओं के -
विस्थापना का डर घेरे रहता है
आशंकाएँ सुगबुगाती हैं भीतर ...
कोई लाइन नहीं जिस की कमी पर कुछ भी कहा जाये कि इस लाइन ने मन के भावों को उजागर नहीं किया .मुझे आपके लेखनी को पढ़कर कभी कभी खुद पर सोचना पड़ता है कि इतनी सूक्ष्म विवेचना जीवन कि मैं क्यों नहीं कर पाता तब खट से मन कहता है .तुम सरस दरबारी नहीं हो फिर कहाँ ये सब लिख पाओगे . शत शत नमन .
एक मरणासन की आखरी उम्मीद बनकर भी
ReplyDeleteजीवित रहूंगी मैं ....!
जीवित hoonरहूंगी मैं ....!
मृगतृष्णा कहो या तृष्णा
ReplyDeleteउपलब्धि मानो या घाटे का सबब
मैं हूँ और रहूंगी....क्योंकि सृष्टि मुझसे है
और मैं कर्त्तव्य से अलग न थी न हूँ न हो सकती हूँ ...
सर पर एक हाथ हो-एक छोटी सी उम्मीद
महँगी तो नहीं ...
man ko bhedti si pratit hoti hai .....aapki yh rachna ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सरस जी.....
ReplyDeleteविस्थापना का डर घेरे रहता है
आशंकाएँ सुगबुगाती हैं भीतर ...
लेकिन आस फिर भी जीता रखती है मुझे ...
जब तलक सांस है...ये आस न टूटे...
सादर
अनु
जब तक मनुष्य रहेगा -
ReplyDeleteकुछ पाने की होड़ रहेगी -
सपने देखने की कूवत रहेगी -
एक मरणासन की आखरी उम्मीद बनकर भी
जीवित रहूंगी मैं ....!
और यही उम्मेद जीने को प्रेरित करती रहेगी :) ... सुंदर और गहन अभिव्यक्ति
kya keh diya hai .....
ReplyDeleteऐसे जज्बे को ही दिल सलाम करता है..बहुत सुन्दर कहा है...
ReplyDeletehttp://vyakhyaa.blogspot.in/2012/09/blog-post_16.html
ReplyDeleteखोजती हूँ उजाले -
ReplyDeleteउम्मीदों के -
संभावनाओं के -
ये उजाले हमेशा खोजने के बाद साथ रखने चाहियें ... उम्मीद बनी रहनी जरूरी है ... संभावनाएं तब तक रहनी चाहियें जब तक ये संसार है ...
एक मरणासन की आखरी उम्मीद बनकर भी
ReplyDeleteजीवित रहूंगी मैं ....!बेहद गहन विवेचन
अभी और तपना है ...
ReplyDeleteनिखरना है ...
कसौटी पर खरा उतरना है
सिद्ध करना है स्वयं को
ताकि न्यायसंगत हो सके मेरा वजूद .
ये कमोबेश हर नारी को सिद्ध करना ही पड़ा है , भले ही उसका स्वरूप कुछ भी हो. बहुत सुंदर भावों को शब्दों में ढाला है.
एक मरणासन की आखरी उम्मीद बनकर भी
ReplyDeleteजीवित रहूंगी मैं ..वाह: यही भाव जीने को हमेशा प्रेरित करती है....बहुत सुन्दर ..सरस जी..
लेकिन आस फिर भी जीता रखती है मुझे ...
ReplyDeleteजानती हूँ ...
अभी और तपना है ...
निखरना है ...
कसौटी पर खरा उतरना है
यही जीवन का सार है...बहुत सुन्दर कविता
isi mrig-trishna me jee rahe:)
ReplyDeleteजब तक मनुष्य रहेगा -
ReplyDeleteकुछ पाने की होड़ रहेगी -
सपने देखने की कूवत रहेगी -
एक मरणासन की आखरी उम्मीद बनकर भी
जीवित रहूंगी मैं ....!
वाह बहुत ही सुन्दर.....माफ़ कीजिये मैं 'इक्षा' का मतलब नहीं समझा.....क्या ये 'इच्छा' है?
कसौटी पर खरा उतरना है
ReplyDeleteसिद्ध करना है स्वयं को
ताकि न्यायसंगत हो सके मेरा वजूद
अकाल मृत्यु का डर मझे नहीं
जब तक मनुष्य रहेगा -
बहुत सुंदर। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
इसीलिए जीवन यूं डोलता रहता है |
ReplyDeleteजीवित तो रहना ही है तो एक उम्मीद के सहारे क्योंनही..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव.
विपरीत हालातों में कोई हो न हो साथ गर हौसला साथ हो तो हालातों से निजात मिल ही जाती हैं
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ..
ek chhote se shabd ka itna vistar aur us par aapki shabdaawali ka kamaal...bahut khoob. ummeed iski khaad hai jisse ye amar rahti hai.
ReplyDeleteमनुष्य के भीतर कि जिजीविषा का सुन्दर व सार्थक वर्णन .... शब्द चयन अद्भुत बन पड़ा है... बहुत खूब!
ReplyDeleteबेहद सशक्त भाव
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और प्रभावी रचना...
ReplyDeleteप्रेरणा भरती और आत्म विश्वास जगाती सुन्दर रचना
ReplyDeleteसादर
मधुरेश
जब तक मनुष्य रहेगा -
ReplyDeleteकुछ पाने की होड़ रहेगी -
सपने देखने की कूवत रहेगी -
एक मरणासन की आखरी उम्मीद बनकर भी
जीवित रहूंगी मैं ....!
aadhyatmik bhav
rachana
बहुत खूब ....
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत भाव
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