Sunday, September 2, 2012

आर्तनाद





कुछ ही दिन हुए ….वह पल अब भी याद है
कोर थे भीगे हुए ......दिल से लगाया आपने
छाँव में आपकी ....कितने सुखद थे बीते क्षण
हाथ सरंक्षण भरा , था सर पे फेरा आपने .

फिर पहली बार ..जब मैंने थी स्कूल की सीढ़ी चढ़ी ...
निर्भीक और साहसी बनो ..यह ग़ुर सिखाया आपने
कल्पनाओं में भी गरथा धर दबोचा डर ने जब
कितनी सहजता से उसे .....जड़ से उखाड़ा आपने

जीवन के दुर्गम ....मोड़ पर ...जब जब भी विपदा से घिरे
एक ढाल बनकर ही सदाउससे बचाया आपने ..
एक मित्र की जब जब कमी… महसूस की मैंने कभी
एक दोस्त बनकर ही सदा ...कन्धा बढाया आपने !

फिर आज क्योंकर दूरसे ही देखते रहते हैं आप
धुंधला गया सब कुछ ...धुंए की ओट में रहते हैं आप
मन आज भी अधीर है ...उस सुख, उस संरक्षण के लिए
फिर क्यों नहीं बढ़कर लगा लेते....मुझे सीने से आप ..

ऊँगली पकड़कर हर कदम, चलना सिखाया था मुझे -
निर्भीकता साहस से लड़ना -यह बताया था मुझे -
फिर कौनसा डर...कौनसा भय ...है दबोचे मन को आज
की चाहकर भी , पास पाते नहीं, अपनों के आप.....

झूठे सहारे छोड़करउस ओर  से जाइये ...
उस ओट में दुश्वारियां ..बीमारियाँ ही हैं खड़ी
उस ओट से आता धुआं ,है लील जाता हर ख़ुशी -
फिर क्यों उसे बैसाखियाँ बना बैठे हैं आप....

जाईये इस पार फिर.... झूठे सहारे छोड़कर
पैरों में ताक़त लाइए.....बैसाखियों को तोड़कर !
इस पार जीवन है -वे सारे सुख हैं ...जो थे अपने कभी -
उस पार तो सिर्फ मौत है ...
मुँह बाए जो ...... कबसे खड़ी .....!!!!!




19 comments:

  1. काश के उस पार से इस पार वापस आना संभव होता....

    बहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी रचना...
    सादर
    अनु

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    1. ऐसा हो पाता तो कितने ही परिवार बच जाते...कितनी ही जिंदगियां बन जातीं...आभार अनुजी

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  2. झूठे सहारे छोड़कर, उस ओर से आ जाइये ...
    उस ओट में दुश्वारियां ..बीमारियाँ ही हैं खड़ी
    उस ओट से आता धुआं ,है लील जाता हर ख़ुशी -
    फिर क्यों उसे बैसाखियाँ बना बैठे हैं आप....
    sunder bhav kash aesa hi ho
    rachana

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    1. पोस्ट पर आपका आना बहुत अच्छा लगा ...ह्रदय से आभार...!

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  3. bahut sarthak aur sargarbhit rachna Saras ji ....!!

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  4. आ जाईये इस पार फिर.... झूठे सहारे छोड़कर
    पैरों में ताक़त लाइए.....बैसाखियों को तोड़कर !
    इस पार जीवन है -वे सारे सुख हैं ...जो थे अपने कभी -
    उस पार तो सिर्फ मौत है ...
    मुँह बाए जो ...... कबसे खड़ी .

    साहस प्रेम समर्पण और त्याग के साथ विश्वास की दास्तान

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    1. बहुत सुन्दर विश्लेषण किया आपने ...आभार !

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  5. इस पुकार में कितनी आतुरता , विह्वलता है...

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    1. दिल से जो निकली है ...!!!
      बहुत बहुत आभार रश्मिजी

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  6. फिर आज क्योंकर दूरसे ही देखते रहते हैं आप
    धुंधला गया सब कुछ ...धुंए की ओट में रहते हैं आप
    मन आज भी अधीर है ...उस सुख, उस संरक्षण के लिए
    फिर क्यों नहीं बढ़कर लगा लेते....मुझे सीने से आप ..

    बहुत मर्मस्पर्शी गुहार ...

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  7. सही कहा दिव्या ...लेकिन एक गुहार तो ज़रूरी थी ...शायद..!!!!!!
    तुम्हारा पोस्ट पर आना अच्छा लगा

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  8. आपका ह्रदय से आभार संगीताजी

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  9. शानदार और गहन अभिव्यक्ति।

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  10. आ जाईये इस पार फिर.... झूठे सहारे छोड़कर
    पैरों में ताक़त लाइए.....बैसाखियों को तोड़कर !
    इस पार जीवन है -वे सारे सुख हैं ...जो थे अपने कभी -
    उस पार तो सिर्फ मौत है ...
    मुँह बाए जो ...... कबसे खड़ी .....!!!
    ...सुख दुःख की बीच जिंदगी यूँ ही झूलते झालते मौत की और बढ जाती है पता ही नहीं चल पाता...
    बहुत बढ़िया जीवन मंथन कराती प्रस्तुति

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    1. ....कितना ही अच्छा हो ...हम अपनों के बारे में भी सोचें ....उनकी खुशियों को अपनी खुशियाँ बनाएं ...आभार कविताजी

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  11. मर्मस्पर्शी प्रस्तुति

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  12. मिश्रित सा भाव उठा रहा है ..कई बिम्बों के साथ..स्पष्ट तो आप ही कर सकती हैं..

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