कुछ ही दिन हुए ….वह पल अब भी याद है
कोर थे भीगे हुए ......दिल से लगाया आपने
छाँव में आपकी ....कितने सुखद थे बीते क्षण
हाथ सरंक्षण भरा , था सर पे फेरा आपने .
फिर पहली बार ..जब मैंने थी स्कूल की सीढ़ी चढ़ी ...
निर्भीक और साहसी बनो ..यह ग़ुर सिखाया आपने
कल्पनाओं में भी गर, था धर दबोचा डर ने जब
कितनी सहजता से उसे .....जड़ से उखाड़ा आपने
जीवन के दुर्गम ....मोड़ पर ...जब जब भी विपदा से घिरे
एक ढाल बनकर ही सदा …उससे बचाया आपने ..
एक मित्र की जब जब कमी… महसूस की मैंने कभी
एक दोस्त बनकर ही सदा ...कन्धा बढाया आपने !
फिर आज क्योंकर दूरसे ही देखते रहते हैं आप
धुंधला गया सब कुछ ...धुंए की ओट में रहते हैं आप
मन आज भी अधीर है ...उस सुख, उस संरक्षण के लिए
फिर क्यों नहीं बढ़कर लगा लेते....मुझे सीने से आप ..
ऊँगली पकड़कर हर कदम, चलना सिखाया था मुझे -
निर्भीकता साहस से लड़ना -यह बताया था मुझे -
फिर कौनसा डर...कौनसा भय ...है दबोचे मन को आज
की चाहकर भी , पास आ पाते नहीं, अपनों के आप.....
झूठे सहारे छोड़कर, उस ओर से आ जाइये ...
उस ओट में दुश्वारियां ..बीमारियाँ ही हैं खड़ी
उस ओट से आता धुआं ,है लील जाता हर ख़ुशी -
फिर क्यों उसे बैसाखियाँ बना बैठे हैं आप....
आ जाईये इस पार फिर.... झूठे सहारे छोड़कर
पैरों में ताक़त लाइए.....बैसाखियों को तोड़कर !
इस पार जीवन है -वे सारे सुख हैं ...जो थे अपने कभी -
उस पार तो सिर्फ मौत है ...
मुँह बाए जो ...... कबसे खड़ी .....!!!!!
काश के उस पार से इस पार वापस आना संभव होता....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी रचना...
सादर
अनु
ऐसा हो पाता तो कितने ही परिवार बच जाते...कितनी ही जिंदगियां बन जातीं...आभार अनुजी
Deleteझूठे सहारे छोड़कर, उस ओर से आ जाइये ...
ReplyDeleteउस ओट में दुश्वारियां ..बीमारियाँ ही हैं खड़ी
उस ओट से आता धुआं ,है लील जाता हर ख़ुशी -
फिर क्यों उसे बैसाखियाँ बना बैठे हैं आप....
sunder bhav kash aesa hi ho
rachana
पोस्ट पर आपका आना बहुत अच्छा लगा ...ह्रदय से आभार...!
Deletebahut sarthak aur sargarbhit rachna Saras ji ....!!
ReplyDeleteआ जाईये इस पार फिर.... झूठे सहारे छोड़कर
ReplyDeleteपैरों में ताक़त लाइए.....बैसाखियों को तोड़कर !
इस पार जीवन है -वे सारे सुख हैं ...जो थे अपने कभी -
उस पार तो सिर्फ मौत है ...
मुँह बाए जो ...... कबसे खड़ी .
साहस प्रेम समर्पण और त्याग के साथ विश्वास की दास्तान
बहुत सुन्दर विश्लेषण किया आपने ...आभार !
Deleteइस पुकार में कितनी आतुरता , विह्वलता है...
ReplyDeleteदिल से जो निकली है ...!!!
Deleteबहुत बहुत आभार रश्मिजी
फिर आज क्योंकर दूरसे ही देखते रहते हैं आप
ReplyDeleteधुंधला गया सब कुछ ...धुंए की ओट में रहते हैं आप
मन आज भी अधीर है ...उस सुख, उस संरक्षण के लिए
फिर क्यों नहीं बढ़कर लगा लेते....मुझे सीने से आप ..
बहुत मर्मस्पर्शी गुहार ...
सही कहा दिव्या ...लेकिन एक गुहार तो ज़रूरी थी ...शायद..!!!!!!
ReplyDeleteतुम्हारा पोस्ट पर आना अच्छा लगा
आपका ह्रदय से आभार संगीताजी
ReplyDeleteशानदार और गहन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआ जाईये इस पार फिर.... झूठे सहारे छोड़कर
ReplyDeleteपैरों में ताक़त लाइए.....बैसाखियों को तोड़कर !
इस पार जीवन है -वे सारे सुख हैं ...जो थे अपने कभी -
उस पार तो सिर्फ मौत है ...
मुँह बाए जो ...... कबसे खड़ी .....!!!
...सुख दुःख की बीच जिंदगी यूँ ही झूलते झालते मौत की और बढ जाती है पता ही नहीं चल पाता...
बहुत बढ़िया जीवन मंथन कराती प्रस्तुति
....कितना ही अच्छा हो ...हम अपनों के बारे में भी सोचें ....उनकी खुशियों को अपनी खुशियाँ बनाएं ...आभार कविताजी
Deleteमर्मस्पर्शी प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार आशाजी
Deletehaedya ko sparsh karti rachna
ReplyDeleteमिश्रित सा भाव उठा रहा है ..कई बिम्बों के साथ..स्पष्ट तो आप ही कर सकती हैं..
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