हाइकू - मृगतृष्णा
क्यूँ मृगतृष्णा
भटकाए वनों में
बढ़ाये आस !
क्यूँ मृगतृष्णा
सदैव मिलन की
जगाये आस !
क्यूँ मृगतृष्णा
अंतिम उम्मीद की
जिलाए आस !
क्यूँ मृगतृष्णा
जीने की हरदम
आखरी आस !
क्यूँ मृगतृष्णा
मंजिल को पाने की
जगाये आस !
क्यूँ मृगतृष्णा
तरसा तरसा के
हराए आस !
सच बात है ...दोनों भाव जुड़े हैं मृगतृष्णा से ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर और गहन हाइकु सरस जी ...!!
सभी हाईकु बहुत उम्दा बन पड़े है..बहुत सुन्दर.. मेरी नई पोस्ट में आप का स्वागत है..
ReplyDeleteसिर्फ मृगतृष्णा ही ....बंधाए मन की आस ....
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
क्यूँ मृगतृष्णा
ReplyDeleteसबकुछ देकर
विस्मित कर जाए ...
सभी हाइकू एक से बढ़कर एक ... इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए आभार
ReplyDeleteप्रभावित करती प्रस्तुति .
ReplyDeleteशानदार हाइकू।
ReplyDeleteक्यूँ मृगतृष्णा
ReplyDeleteमंजिल को पाने की
जगाये आस !
खुबसूरत हाइकू. मृगतृष्णा को बहुआयामी रंग दिया
sunder pastuti aur chit bhi kamal hai
ReplyDeletebadhai
rachana
बहुत सुन्दर सरस जी....
ReplyDeleteप्यास बढ़ गयी.....और लिखिए जल्दी.
सादर
अनु
तृष्णा... आपको और अधिक पढ़ने की जागते ...अद्भुत!
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बहुत उम्दा हायकू और बेहद भावपूर्ण अर्थपूर्ण.
ReplyDeleteisko kya kahenge Saras jee
ReplyDeletesaare hayku hain par
par sabko ek saath kar den
to ek purn kavita..
aap behtareen ho:)
Not that appealing what i am looking for... i am looking for such Mrigtrishna that brings tears in my eyes ��
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