Monday, October 8, 2012

क्षणिकाएँ -



 बड़प्पन

लोग भी नासमझ होते है -
बड़ा बनने की होड़ में
अक्सर कभी छोटी कभी ओछी बातें कर बैठते हैं ..
काश यह जाना होता कि
बड़ा बनने के लिए
सिर्फ एक लकीर खींचनी होती है -
दूसरे के व्यक्तित्व के आगे -
अपने व्यक्तित्व कि एक छोटी लकीर ...!


ज़रुरत

सुना था कभी -
शरीर के अनावश्यक अंग झड जाते हैं -
और जिन्हें इस्तेमाल करो -
वे हृष्ट पुष्ट हो जाते हैं ....
मैंने हाल ही में-
दीवारों के कान उगते देखे हैं !

28 comments:

  1. दीवारों के कान तो पहले से थे पर दिखते नहीं थे ॥ अब हृष्ट पुष्ट हो दिखने भी लगे :) गहन क्षणिकाएं

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  2. सुना था कभी -
    शरीर के अनावश्यक अंग झड जाते हैं -
    और जिन्हें इस्तेमाल करो -
    वे हृष्ट पुष्ट हो जाते हैं ....
    मैंने हाल ही में-
    दीवारों के कान उगते देखे हैं !
    क्‍या बात है ... बहुत ही बढिया।

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  3. बहुत बढ़िया.....सरस जी...
    ज्यों दीवारों के कान उग आये हैं,वैसे कहीं इंसानों के दिल न झड जाएं किसी रोज..
    लाजवाब क्षणिकाएं...

    सादर
    अनु

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  4. बहुत अच्छी रचना
    क्या कहने

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  5. :) बढ़िया और गहरे अर्थ लिए हैं क्षणिकाएं :)

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  6. वाह वाह दोनों ही ज़बरदस्त

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  7. बड़प्पन एक हल्की लकीर में - संस्कार
    दीवारों में उगते कान देखना - जीवन अनुभव

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  8. १ - संस्कार व्योहार बोलचाल से ही बड़प्पन झलकता,,,,,है
    २ - दीवारों के कान होते है,उगते नही देखा,,,,बहुत अच्छी दोनों क्षणिकाएँ,,,,,,,

    RECENT POST: तेरी फितरत के लोग,

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  9. लाजवाब क्षणिकाएं...

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  10. बात तो गहरी है पर सरल जो आसानी से समझी जाये शानदार बहव और मोहक पोस्ट .स्वागत है मेरे ब्लॉग पर|

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  11. संक्षेप में बहुत कह दिया आपने |
    आशा

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  12. लोग भी नासमझ होते है -........hain हैं
    बड़ा बनने की होड़ में
    अक्सर कभी छोटी कभी ओछी बातें कर बैठते हैं ..
    काश यह जाना होता कि
    बड़ा बनने के लिए
    सिर्फ एक लकीर खींचनी होती है -
    दूसरे के व्यक्तित्व के आगे -
    अपने व्यक्तित्व कि एक छोटी लकीर ...!............अपने व्यक्तित्व .......की ....एक छोटी लकीर

    .सुना था कभी -
    शरीर के अनावश्यक अंग झड जाते हैं -.....झड़ ...........
    और जिन्हें इस्तेमाल करो -
    वे हृष्ट पुष्ट हो जाते हैं ....
    मैंने हाल ही में-
    दीवारों के कान उगते देखे हैं !

    बढ़िया प्रस्तुति .

    बड़े बड़ाई न करें ,बड़े न बोलें बोल ,

    रहिमन हीरा कब कहे लाख टका मेरा मोल .

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  13. मेरी रचना को 'चर्चा मंच' पर स्थान देने के लिए ह्रदय से आभार

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  14. कम शब्दों में बड़ी बात वाह बहुत खूब लगा अंदाज़ |

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  15. वाह दीवारें तो बहुत काम कर रही हैं :)

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  16. बेहतरीन गहन भाव लिए क्षणिकाएं...
    :-)

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  17. सुना था कभी -
    शरीर के अनावश्यक अंग झड जाते हैं -
    और जिन्हें इस्तेमाल करो -
    वे हृष्ट पुष्ट हो जाते हैं ....
    मैंने हाल ही में-
    दीवारों के कान उगते देखे हैं !

    क्या बात है ....
    बहुत khoob ...!!

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  18. बढ़िया सन्देश देती रचनाएं ...
    आभार आपका !

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  19. दीवारों के कान वास्तव में सशक्त होते जा रहें हैं.

    बहुत उम्दा क्षणिकाएँ.

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  20. बहुत खूब | नया सा कुछ |

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  21. सिर्फ एक लकीर खींचनी होती है -
    दूसरे के व्यक्तित्व के आगे -
    अपने व्यक्तित्व की एक छोटी लकीर ...!

    ....दीवारों के कान उगते देखे हैं !

    बहुत उम्दा क्षणिकाएँ।

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  22. दूसरे के व्यक्तित्व के आगे -
    अपने व्यक्तित्व कि एक छोटी लकीर ...!
    bahut sundar ...

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  23. दीवारों के कान उगते देखे हैं !... सच है दीवारों के सिर्फ कान ही उग कर बचे रहते हैं. दोनों क्षणिकाएँ सारगर्भित, बधाई.

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  24. आपकी सोच को सलाम!

    --
    ए फीलिंग कॉल्ड.....

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  25. सुन्दर, विद्वता भरी क्षणिकाएं..
    सादर

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