बड़प्पन
लोग भी नासमझ
होते है -
बड़ा बनने की
होड़ में
अक्सर कभी छोटी
कभी ओछी बातें
कर बैठते हैं
..
काश यह जाना
होता कि
बड़ा बनने के
लिए
सिर्फ एक लकीर
खींचनी होती है -
दूसरे के व्यक्तित्व
के आगे -
अपने व्यक्तित्व कि एक
छोटी लकीर ...!
ज़रुरत
सुना था कभी
-
शरीर के अनावश्यक
अंग झड जाते
हैं -
और जिन्हें इस्तेमाल करो
-
वे हृष्ट पुष्ट हो
जाते हैं ....
मैंने हाल ही
में-
दीवारों के कान
उगते देखे हैं
!
दीवारों के कान तो पहले से थे पर दिखते नहीं थे ॥ अब हृष्ट पुष्ट हो दिखने भी लगे :) गहन क्षणिकाएं
ReplyDeleteसुना था कभी -
ReplyDeleteशरीर के अनावश्यक अंग झड जाते हैं -
और जिन्हें इस्तेमाल करो -
वे हृष्ट पुष्ट हो जाते हैं ....
मैंने हाल ही में-
दीवारों के कान उगते देखे हैं !
क्या बात है ... बहुत ही बढिया।
बहुत बढ़िया.....सरस जी...
ReplyDeleteज्यों दीवारों के कान उग आये हैं,वैसे कहीं इंसानों के दिल न झड जाएं किसी रोज..
लाजवाब क्षणिकाएं...
सादर
अनु
बहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteक्या कहने
:) बढ़िया और गहरे अर्थ लिए हैं क्षणिकाएं :)
ReplyDeleteवाह वाह दोनों ही ज़बरदस्त
ReplyDeleteबड़प्पन एक हल्की लकीर में - संस्कार
ReplyDeleteदीवारों में उगते कान देखना - जीवन अनुभव
१ - संस्कार व्योहार बोलचाल से ही बड़प्पन झलकता,,,,,है
ReplyDelete२ - दीवारों के कान होते है,उगते नही देखा,,,,बहुत अच्छी दोनों क्षणिकाएँ,,,,,,,
RECENT POST: तेरी फितरत के लोग,
लाजवाब क्षणिकाएं...
ReplyDeleteबात तो गहरी है पर सरल जो आसानी से समझी जाये शानदार बहव और मोहक पोस्ट .स्वागत है मेरे ब्लॉग पर|
ReplyDeleteसंक्षेप में बहुत कह दिया आपने |
ReplyDeleteआशा
ReplyDeleteलोग भी नासमझ होते है -........hain हैं
बड़ा बनने की होड़ में
अक्सर कभी छोटी कभी ओछी बातें कर बैठते हैं ..
काश यह जाना होता कि
बड़ा बनने के लिए
सिर्फ एक लकीर खींचनी होती है -
दूसरे के व्यक्तित्व के आगे -
अपने व्यक्तित्व कि एक छोटी लकीर ...!............अपने व्यक्तित्व .......की ....एक छोटी लकीर
.सुना था कभी -
शरीर के अनावश्यक अंग झड जाते हैं -.....झड़ ...........
और जिन्हें इस्तेमाल करो -
वे हृष्ट पुष्ट हो जाते हैं ....
मैंने हाल ही में-
दीवारों के कान उगते देखे हैं !
बढ़िया प्रस्तुति .
बड़े बड़ाई न करें ,बड़े न बोलें बोल ,
रहिमन हीरा कब कहे लाख टका मेरा मोल .
मेरी रचना को 'चर्चा मंच' पर स्थान देने के लिए ह्रदय से आभार
ReplyDeleteकम शब्दों में बड़ी बात वाह बहुत खूब लगा अंदाज़ |
ReplyDeleteवाह दीवारें तो बहुत काम कर रही हैं :)
ReplyDeleteबेहतरीन गहन भाव लिए क्षणिकाएं...
ReplyDelete:-)
सुना था कभी -
ReplyDeleteशरीर के अनावश्यक अंग झड जाते हैं -
और जिन्हें इस्तेमाल करो -
वे हृष्ट पुष्ट हो जाते हैं ....
मैंने हाल ही में-
दीवारों के कान उगते देखे हैं !
क्या बात है ....
बहुत khoob ...!!
बढ़िया सन्देश देती रचनाएं ...
ReplyDeleteआभार आपका !
दीवारों के कान वास्तव में सशक्त होते जा रहें हैं.
ReplyDeleteबहुत उम्दा क्षणिकाएँ.
बहुत खूब | नया सा कुछ |
ReplyDeleteसिर्फ एक लकीर खींचनी होती है -
ReplyDeleteदूसरे के व्यक्तित्व के आगे -
अपने व्यक्तित्व की एक छोटी लकीर ...!
....दीवारों के कान उगते देखे हैं !
बहुत उम्दा क्षणिकाएँ।
दूसरे के व्यक्तित्व के आगे -
ReplyDeleteअपने व्यक्तित्व कि एक छोटी लकीर ...!
bahut sundar ...
दीवारों के कान उगते देखे हैं !... सच है दीवारों के सिर्फ कान ही उग कर बचे रहते हैं. दोनों क्षणिकाएँ सारगर्भित, बधाई.
ReplyDeleteआपकी सोच को सलाम!
ReplyDeleteढ़
--
ए फीलिंग कॉल्ड.....
waah .....bahut badhiya ....
ReplyDeleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteबहुत लाजबाब प्रस्तुति,,,,
ReplyDeleteRECENT POST LINK ...: विजयादशमी,,,
सुन्दर, विद्वता भरी क्षणिकाएं..
ReplyDeleteसादर