जब पहली बार चला था वह-
घुटने घुटने -
एक आज़ादी का अनुभव किया था उसने -
पालने की क़ैद से निकलकर-
ठन्डे फर्श का स्पर्श !
और माँ बाबू के दिल में उठती -
ख़ुशी की हिलोरों का स्पर्श !
कितना सुखद था सब -
फिर दौड़ते भागते
गिरते पड़ते -
चुटहिल घुटनों पर
माँ का वात्सल्य भरा स्पर्श
सारी पीड़ा हर लेता ...
माँ के पास समय का आभाव अक्सर रहता
घरों का झूठा बासन जो निबटाना था -
घुटनों का टूटना -
माँ का कुछ समय उसकी झोली में डाल जाता !
फिर माँ चल बसी -
उन्ही घुटनों में सर छिपा
घंटों रोया था वह !
अब तो उन्ही का सहारा था -
शीत की ठिठुरती रातों में
इन्हीं घुटनों से पेट ढक सोया था -
और भींच उन्हें अपनी आँतों से
बिताईं थीं अनगिनत भूख से कुलबुलाती रातें
बोझा ढोते हुए
इन्हीं घुटनों ने अक्सर
कन्धों को आश्वस्त किया था !
पर आज -
उम्र के आखिरी पड़ाव पर
इन्हीं टीसते घुटनों को
जीवन का अभिशाप बताता है वह !!
बहुत ही मर्मस्पर्शी कविता
ReplyDeleteसादर
माँ का वात्सल्य भरा स्पर्श
ReplyDeleteसारी पीड़ा हर लेता ...
maa ko to beyan kiya hi nahin ja sakta.
apni is panchi to bhi apna ashish dijiye. aapka intzaar hai meri nayi post par
चार दिन ज़िन्दगी के .......
बस यूँ ही चलते जाना है !!
वक्त बदलता है और हम भी...हालात भी ...बयान भी.....
ReplyDeleteक्या करें..मजबूर हैं...
बहुत सुन्दर रचना..
मर्मस्पर्शी...
सादर
अनु
marmik....
ReplyDeleteटीसता है तो क्या हुआ घुटना फिर भी पेट की तरफ ही झुकता है, उम्र के आखिरी पड़ाव पर भी सहारा देता है... मार्मिक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी भाव लिए रचना...
ReplyDeleteगहन अभिवयक्ति......
ReplyDeleteपर आज -
ReplyDeleteउम्र के आखिरी पड़ाव पर
इन्हीं टीसते घुटनों को
जीवन का अभिशाप बताता है वह !!
....बहुत मर्मस्पर्शी...निशब्द कर दिया ...
वक्त अपने साथ कितने दर्द कितने टीस दे जाता है......बहुत मर्मस्पर्शी..सरस जी..आभार
ReplyDeleteबचपन, माँ का प्यार और छुटता माँ का साथ, खुद पर ऐतबार, अकेलापन, मायूसी, और समय के थपेड़े में जूझता जीवन, कितने मार्मिक ढंग से आपने लेखनी में पिरो दिया एक के बाद एक .
ReplyDeleteबहुत ही मर्मस्पर्शी .....
घुटनों का दर्द बहुत सालता है, खासकर जब उम्र अपने अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ रहा हो।
ReplyDeleteपर आज -
ReplyDeleteउम्र के आखिरी पड़ाव पर
इन्हीं टीसते घुटनों को
जीवन का अभिशाप बताता है वह !!
वो साथ जो नहीं देते अब ... हर भाव मन को छूता हुआ
सादर
bahut hi marmik....
ReplyDeleteएक संवेदनशील मन की सच्ची अभिव्यक्ति है आपकी यह रचना। बधाई सरस जी।
ReplyDeleteघुटने आखिर कब तक संभाले रखें .... थरथराते घुटनों की व्यथा !
ReplyDeleteआँखे नम कर देने वाली कविता...
ReplyDeleteबहुत गहन और सशक्त पोस्ट।
ReplyDeleteजिंदगी के इतने करीब की सोच आप ही लिख सकती हैं .....बहुत खूब
ReplyDeleteमन को छू गई यह अद्भुत एवं प्यारी सी रचना.
ReplyDeleteउफ़ ...हालात और मजबूरी ..बेहद मर्मस्पर्शी .
ReplyDeleteसशक्त ह्रदय को छूती निशब्द करती रचना,,,,बधाई सरस जी,,,,
ReplyDeleteRECENT POST LINK...: खता,,,
घुटनों का सफ़र... कहाँ से कहाँ तक.... :((
ReplyDeleteमार्मिक रचना !
uff....aarambh se ant tak ghutno ka kaarykaal....kya jabardast prastuti hai.
ReplyDeleteइन पंक्तियों में कितनी करुणासमा दी है आपने - मन बरबस द्रवित हो गया !
ReplyDelete