Saturday, October 27, 2012

घुटने-




जब पहली बार चला था वह-
घुटने घुटने -
एक आज़ादी का अनुभव किया था उसने -
पालने की क़ैद से निकलकर-
ठन्डे फर्श का स्पर्श !
और माँ बाबू के दिल में उठती -
ख़ुशी की हिलोरों का स्पर्श !
कितना सुखद था सब -

फिर दौड़ते भागते
गिरते पड़ते -
चुटहिल घुटनों पर
माँ का वात्सल्य भरा स्पर्श
सारी पीड़ा हर लेता ...
माँ के पास समय का आभाव अक्सर रहता
घरों का झूठा बासन जो निबटाना था -
घुटनों का टूटना -
माँ का कुछ समय उसकी झोली में डाल जाता !

फिर माँ चल बसी -
उन्ही घुटनों में सर छिपा
घंटों रोया था वह !
अब तो उन्ही का सहारा था -

शीत की ठिठुरती रातों में
इन्हीं घुटनों से पेट ढक सोया था -
और भींच उन्हें अपनी आँतों से
बिताईं थीं अनगिनत भूख से कुलबुलाती रातें
बोझा ढोते हुए
इन्हीं घुटनों ने अक्सर
कन्धों को आश्वस्त किया था !

पर आज -
उम्र के आखिरी पड़ाव पर
इन्हीं टीसते घुटनों को
जीवन का अभिशाप बताता है वह !!



24 comments:

  1. बहुत ही मर्मस्पर्शी कविता


    सादर

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  2. माँ का वात्सल्य भरा स्पर्श
    सारी पीड़ा हर लेता ...

    maa ko to beyan kiya hi nahin ja sakta.

    apni is panchi to bhi apna ashish dijiye. aapka intzaar hai meri nayi post par

    चार दिन ज़िन्दगी के .......
    बस यूँ ही चलते जाना है !!

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  3. वक्त बदलता है और हम भी...हालात भी ...बयान भी.....
    क्या करें..मजबूर हैं...

    बहुत सुन्दर रचना..
    मर्मस्पर्शी...
    सादर
    अनु

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  4. टीसता है तो क्या हुआ घुटना फिर भी पेट की तरफ ही झुकता है, उम्र के आखिरी पड़ाव पर भी सहारा देता है... मार्मिक अभिव्यक्ति

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  5. मर्मस्पर्शी भाव लिए रचना...

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  6. गहन अभिवयक्ति......

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  7. पर आज -
    उम्र के आखिरी पड़ाव पर
    इन्हीं टीसते घुटनों को
    जीवन का अभिशाप बताता है वह !!

    ....बहुत मर्मस्पर्शी...निशब्द कर दिया ...

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  8. वक्त अपने साथ कितने दर्द कितने टीस दे जाता है......बहुत मर्मस्पर्शी..सरस जी..आभार

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  9. बचपन, माँ का प्यार और छुटता माँ का साथ, खुद पर ऐतबार, अकेलापन, मायूसी, और समय के थपेड़े में जूझता जीवन, कितने मार्मिक ढंग से आपने लेखनी में पिरो दिया एक के बाद एक .
    बहुत ही मर्मस्पर्शी .....

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  10. घुटनों का दर्द बहुत सालता है, खासकर जब उम्र अपने अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ रहा हो।

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  11. पर आज -
    उम्र के आखिरी पड़ाव पर
    इन्हीं टीसते घुटनों को
    जीवन का अभिशाप बताता है वह !!
    वो साथ जो नहीं देते अब ... हर भाव मन को छूता हुआ
    सादर

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  12. एक संवेदनशील मन की सच्ची अभिव्यक्ति है आपकी यह रचना। बधाई सरस जी।

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  13. घुटने आखिर कब तक संभाले रखें .... थरथराते घुटनों की व्यथा !

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  14. आँखे नम कर देने वाली कविता...

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  15. बहुत गहन और सशक्त पोस्ट।

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  16. जिंदगी के इतने करीब की सोच आप ही लिख सकती हैं .....बहुत खूब

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  17. मन को छू गई यह अद्भुत एवं प्यारी सी रचना.

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  18. उफ़ ...हालात और मजबूरी ..बेहद मर्मस्पर्शी .

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  19. सशक्त ह्रदय को छूती निशब्द करती रचना,,,,बधाई सरस जी,,,,

    RECENT POST LINK...: खता,,,

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  20. घुटनों का सफ़र... कहाँ से कहाँ तक.... :((
    मार्मिक रचना !

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  21. uff....aarambh se ant tak ghutno ka kaarykaal....kya jabardast prastuti hai.

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  22. इन पंक्तियों में कितनी करुणासमा दी है आपने - मन बरबस द्रवित हो गया !

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