Friday, July 31, 2020

त्राण- लघुकथा



वह एक डरावनी रात थी। दूर से फौजी जूतों की पास आती ध्वनि, पूरे मोहल्ले में मृत्यु का आतंक फैला रही थी। देश के तानाशाह ने एक नया फरमान जारी किया था। एक विशेष समुदाय के लोगों को खोज खोजकर कोण्सेंट्रेशन कॅम्पस में ठूँसा जा रहा था। प्रतिरोध करने वालों को तुरंत मौत के घाट उतार देने का फरमान था। लोग छिपते फिर रहे थे। घरों के दरवाजे तोड़कर लोगों को तहखानों से घसीट घसीटकर लाया जा रहा था।
धर्म, मानवता, संवेदनशीलता कूड़े के ढेर पर दम तोड़ रहे थे। मनुष्य बेबसी से उन्हें मरते देख रहा था। 
दया, क्षमा, की संभावनाएँ ध्वस्त हो चुकी थीं। अब तो केवल प्रतीक्षा थी, पल पल पास आती मृत्यु की, जो आज या कुछ दिनों, महीनों बाद कॅम्पस में अनिवार्य थी। एल्ली अपनी तीन बहनों के साथ तहखाने में छिपी थी। एक एककर घर के सदस्य मारे जा चुके थे। आज इनकी बारी थी। वह चारों एक दूसरे के कंधों पर बाहें डाल, एक घेरा बनाकर खड़ी हो गईं। 
“मरना तो हमें है ही। क्यों न हम इन अंतिम पलों को खुशी खुशी गुजारें। पास आती मृत्यु के अस्तित्व को ही हम क्यों न कुछ पलों के लिए नकार दें। चलो हम सब मिलकर खूब नाचें गाएँ। ताकि मौत की अनिवार्यता में साथ बिताए यह खुशी के कुछ पल, उसकी भयावहता को कम कर दें। ताकि काल कोठरियों की उस नश्वरता  में जब हम  एक दूसरे को याद करें, तो हम सबका हँसता हुआ चेहरा आँखों के सामने उभरे, मृत्यु की विभीषिका से आतंकित चेहरा नहीं।” 
और वह सभी बहनें गाने लगीं, नाचने लगीं। उन्होने ऊँचे बर्फीले पहाड़ों से बहते झरनों के, बागों के खिलते सुंदर फूलों के, समुंदर के , आसमानों में उड़ते स्वतंत्र पंछियों के गीत गाये। उन्होने इन स्वप्नों के गीत गाये, जो पूरे न हो सके, उन्होने आश्वासनों के गीत गाये, कि वह पूरे होंगें। अगले जन्म में ही सही। वे नाचती रहीं, गातीं रहीं, खिलखिलाती रहीं। मौत की आहट पास आती गई। 
फौजी जूतों की निकट आती ध्वनि के साथ, उनके गीतों और नृत्य की गति तेज़ होती गई। 
वह दंड, अत्याचार और मृत्यु के भय से कहीं ऊपर उठ चुकीं थीं।

सरस दरबारी      

 

24 comments:

  1. आप बहुत अच्छा लिखतीं है ।बहुत अच्छी लगी मुझे यह रचना ।शुभकामनाएँ,

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार मधुलिका जी ...:)

      Delete
  2. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार(07-08-2020) को "राम देखै है ,राम न्याय करेगा" (चर्चा अंक-3786) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.

    "मीना भारद्वाज"

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार मीना जी ...:)

      Delete
  3. सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर रचना ।
    सादर ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार आदरणीय

      Delete
  5. Replies
    1. शुक्रिया अनुराधा जी

      Delete
  6. "मौत तो शाश्वत सत्य हैं इससे क्या आतंकित होना,ख़ुशी से भरपूर दो पल का जीवन भी अनमोल है "नकारत्मकता में भी साकारात्मक सोच की ओर अग्रसर करती कथा,बहुत ही सुंदर ,सादर नमन

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार कामिनी जी

      Delete
  7. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया अनीता जी

      Delete
  8. बहुत ही सुंदर

    ReplyDelete
  9. संवेदनाओं से भरी ये रचना रौंगटे खड़े कर गई! कहानी मे भीगी हैं जो वो सच्चाई की बूंदें हैं! इसलिये मै और गहराई से जुड़ाव मह्सूस कर पा रही हूँ! बधाई ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी टिप्पणी ने आपने हमारा मनोबल बढ़ाया...!
      बहुत बहुत शुक्रिया सुनीतामोहन जी

      Delete
  10. Replies
    1. शुक्रिया जेनी जी

      Delete