Saturday, July 11, 2020

हदें तै करनी होंगी


हदें तै करनी होंगी  
अभी हाल ही में एक खबर पढ़ी। एक युवती के पास एक फोन आया। लाइन पर कोई पुरुष था। बहुत ही घबराया हुआ। मैंने एक खून होते हुए देखा है और उसे अपने फोन पर उसका विडियो बना लिया है, और अब वह लोग मेरी जान के पीछे पड़ गए हैं।कहकर उसने घबराकर फोन रख दिया। युवती के हाथ पाँव फूल गए। उसने तुरंत पुलिस को फोन मिलाया, और पूरी वारदात उन्हें बता दी, कि एक बहुत ही घबराए हुए शक्स का फोन आया था , और वह ऐसा कह रहा था। जब उसने इस बात का ज़िक्र अपनी एक सहेली से किया, तो उसने बताया कि उसके पास भी ऐसा ही एक फोन आया था, और उसने भी घबराकर अपने दोस्तों से ज़िक्र किया, तो उन्होने बताया कि उस इंसान ने उससे आगे कहा, कि इसके बाद क्या हुआ यह जानने के लिए देखिये, फलाँ चैनल का फलाँ शो। वह बिफर गई जब उसने जाना कि यह सिर्फ इस टीवी चैनल का प्रोमोशनल  गिमिक था। वे अपने आनेवाला शो को प्रोमोट करने के लिए, ऐसे झूठे कॉल कर रहे थे। उसने एक मशहूर सोश्ल नेटवर्किंग साइट पर उस चैनल की जमकर भर्तस्ना की।
इस चैनल के ऍड कॅम्पेन वालों का दिमाग खराब है, या इनकी मति मारी गई है ? इन्होने कभी यह सोचा, कि उनकी इस हरकत से किसी कमजोर हृदय वाले की जान भी जा सकती है। आखिर कोई तो लक्ष्मण रेखा होनी चाहिए, जो आपकी हद निर्धारित कर सके। उसके लिए उस चैनल के सेल्स मैनेजर की जवाबदेही है। उसपर मानसिक उत्पीड़न ( मेंटल हरासमेंट) के लिए मुकदमा चलाना चाहिए।
जब बहुत शोर शराबा हो गया, तो चैनल ने उसी सोश्ल साइट पर सबसे माफी माँगी और असुविधा के लिए खेद प्रकट कर दिया। क्या उनकी ज़िम्मेदारी यहाँ खत्म हो जाती है। अगर खुदा न खासता, कोई हादसा हो जाता और कोई अपनी जान से हाथ धो बैठता, तो क्या वह चैनल इसकी भरपाई करता।
भेड़िया आया, भेड़िया आया की झूठी खबर वाकई सच्ची हो गई, तो कोई ज़रूरतमन्द बेमौत मारा जाएगा। उसके कॉल पर लोग यही समझेंगे, कि फिर कोई प्रोमोशनल गिमिक है, और कोई उसकी सहायता को आगे नहीं आएगा।
एडवर्टाइजिंग और प्रमोशन, बाजारवाद की एक अहम ज़रूरत है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। पर ऐसा करते हुए, प्रोमोटेर्स को अपना विवेक अपना संयम, अपनी सूझ बूझ से काम लेना होगा। अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने की होड में अपनी उड़ान पर अंकुश लगाना होगा। ऐसा न हो इस अंधी दौड़ में उनसे कोई ऐसी भूल हो जाए, जिसकी वजह से उनकी साख मिट्टी में मिल जाये, और वह फिर लीपा पोती करते फिरें

सरस दरबारी     



2 comments:

  1. एक मुकम्मल शिकायत , इनकी इस सारी धूर्तता की सज़ा दिलवा देती इनको | आज समाज में पत्तन का जो स्तर देखें को मिल रहा है ऐसे में अब यही सब देखने सुनने और पढ़ने को मिलेगा | अफसोसजनक स्थति है

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  2. एक शिकायत जरूरी थी, फिलहाल राजस्थान में तो 'लाखों के ईनाम आपके नाम खुले हैं' यहीं तक कॉल्स आते हैं।
    एक लम्बे अरसे के बाद ब्लॉग की दुनियाँ में आना और सरस जी आपको पढ़ना बहुत सुखद लग रहा है। 😊

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