Sunday, November 10, 2013

लहरें ......

लहरों को देखकर अक्सर मन में कई विचार कौंधते हैं .....



समंदर के किनारे बैठे
कभी लहरों को गौर से देखा है
एक दूसरे से होड़ लगाते हुए ..
हर लहर तेज़ी से बढ़कर ...
कोई  छोर  छूने  की पुरजोर  कोशिश  करती 
फेनिल सपनों के निशाँ छोड़ -
लौट आती -
और आती हुई लहर दूने जोश से
उसे काटती हुई आगे बढ़ जाती
लेकिन यथा शक्ति प्रयत्न के बाद
वह भी थककर लौट आती
.......बिलकुल हमारी बहस की तरह !!!!!


             ()

कभी शोर सुना है लहरों का ....
दो छोटी छोटी लहरें -
हाथों में हाथ डाले -
ज्यूँ ही सागर से दूर जाने की
कोशिश करती हैं-
गरजती हुई बड़ी लहरें
उनका पीछा करती हुई
दौड़ी आती हैं -
और उन्हें नेस्तनाबूत कर
लौट जाती हैं -
बस किनारे पर रह जाते हैं -
सपने-
ख्वाईशें -
और जिद्द-
साथ रहने की ....
फेन की शक्ल में ...!!!!!

           ( )

लहरों को मान मुनव्वल करते देखा है कभी !
एक लहर जैसे ही रूठकर आगे बढ़ती है
वैसे ही दूसरी लहर
दौड़ी दौड़ी
उसे मनाने पहुँच जाती है
फिर दोनों ही मुस्कुराकर -
अपनी फेनिल ख़ुशी
किनारे पर छोड़ते हुए
साथ लौट आते हैं
दो प्रेमियों की तरह....!!!!!

                      ( )

कभी कभी लहरें -
अल्हड़ युवतियों सी
एक स्वछन्द वातावरण में
विचरने निकल पड़तीं हैं ---
घर से दूर -
एल अनजान छोर पर !
तभी बड़ी लहरें 
माता पिता की चिंताएं -
पुकारती हुई
बढ़ती आती हैं ...
देखना बच्चों संभलकर 
यह दुनिया बहुत बुरी है
कहीं खो जाना 
अपना ख़याल रखना -
लगभग चीखती हुई सी
वह बड़ी लहर उनके पीछे पीछे भागती है ...
लेकिन तब तक -
किनारे की रेत -
सोख चुकी होती है उन्हें -
बस रह जाते हैं कुछ फेनिल अवशेष 
यादें बन .....
आंसू बन ......
तथाकथित कलंक बन ....!!!!!  


       सरस दरबारी

31 comments:

  1. वह बड़ी लहर उनके पीछे पीछे भागती है ...
    लेकिन तब तक -
    किनारे की रेत -
    सोख चुकी होती है उन्हें -
    बस रह जाते हैं कुछ फेनिल अवशेष
    यादें बन .....
    आंसू बन ......
    तथाकथित कलंक बन ....!!!!!
    प्रतीक रुपमे माँ बाप की चिंताएं दर्शाती सुन्दर रचना !
    नई पोस्ट काम अधुरा है

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  2. भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....

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  3. कितने बिम्ब लहरों के.....
    कितना कुछ कह जाती हैं लहरें और उनके फेनिल अवशेष.....
    बहुत सुन्दर सरस दी!!
    सादर
    अनु

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  4. अद्भुत. जिस नज़रिए से आपने इन लहरों को देखा है वह वाकई लाजवाब है. बहुत अच्छा लगा.

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  5. सुन्दर रचना-
    आभार आपका आदरेया-

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  6. लहरों ने तो खुद में ही डुबो लिया..बहुत सुन्दर लिखा है..

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    1. शुक्रिया अमृताजी

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  7. वाह! से निकली ....आह! से पिघली !
    शुभकामनायें!

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  8. वाह ! बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..!

    RECENT POST -: कामयाबी.

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  9. लहरों के साथ बुना सांस लेता ताना बाना ... कितनी अलग अलग मूड में उतारा है इन लहरों को ... बहुत खूब ...

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  10. वाह वाह वाह ! ........सभी एक से बढ़कर एक कितने ख्याल लहरों को बांधने कि कोशिश में |

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  11. ओफ्फो ... इन लहरों में न जाने क्या क्या देख लेती हैं ये निगाहें.
    अद्भुत है सच्ची...

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  12. अल्हड युवतियां -सी , माता पिता- सी , सखियों -सी लहरें !
    बेहतरीन है लहरों का मनोविज्ञान आपकी कविताओं में !

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  13. सरस जी,
    लहरों पर कितने सुन्दर भाव चित्र उकेरे है आपने
    वाकई बहुत सुन्दर लगे मुझे, खास कर यह क्षणिका
    समंदर के किनारे बैठे
    कभी लहरों को गौर से देखा है
    एक दूसरे से होड़ लगाते हुए ..
    हर लहर तेज़ी से बढ़कर ...
    कोई छोर छूने की पुरजोर कोशिश करती
    फेनिल सपनों के निशाँ छोड़ -
    लौट आती -
    और आती हुई लहर दूने जोश से
    उसे काटती हुई आगे बढ़ जाती
    लेकिन यथा शक्ति प्रयत्न के बाद
    वह भी थककर लौट आती
    .......बिलकुल हमारी बहस की तरह !!!!!
    बहुत सुन्दर चारों क्षणिकाएँ !

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    1. शुक्रिया सुमनजी ....अच्छा लगा पढ़कर ..

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  14. Replies
    1. आपका बहुत बहुत आभार शारदाजी

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  15. बहुत सुन्दर रचना . लहरों को अलग अलग दृष्टि से देखना सचमुच अद्भुत है ..

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  16. बहुत ही बेहतरीन रचना....
    लाजवाब...
    :-)

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  17. बेहद ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति ...

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    1. आभार प्रमोद कुमारजी

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  18. राजीवजी रचना को "हिंदी ब्लोग्गेर्स चौपाल" पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार

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  19. हार्दिक आभार राजेशजी "चर्चा मंच" पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए

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  20. लहरों को देखकर बहुत अद्भुत एहसास होता है. बहुत खूबसूरती से इन एहसासों को उतारा है आपने, बधाई.

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  21. लहरों के आगे पीछे
    सोच की कई लहरें
    दिखा रही हैं
    ज़िंदगी के फलसफे को
    होड करती सी
    एक दूसरे से
    तो कभी बाहों में
    बाहें डाले
    बन जाती हैं ईर्ष्या कारण
    अद्भुत सोच उतारी है लहरों में .... बहुत सुंदर ।


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