देखे हैं कई
समंदर
यादों के
-
प्यार के -
दुखों के -
रेत के -
और सामने दहाड़ता-
यह लहरों का समंदर
!
हर लहर दूसरे
पर हावी
पहले के अस्तित्व
को मिटाती हुई...
इन समन्दरों से डर
लगता है मुझे
.
जो अथाह है
वह डरावना क्यों हो
जाता है ?
अथाह प्यार-
अथाह दुःख-
अथाह अपनापन-
अथाह शिकायतें.......
इनमें डूबते ..उतराते -
सांस लेने की
कोशिश करते -
सतह पर हाथ
पैर मारते
रह जाते हैं
हम -
और यह सारे
समंदर
जैसे लीलने को तैयार
हावी होते रहते
हैं .
और हम बेबस,
थके हुए लाचार
से
छोड़ देते हैं
हर कोशिश
उबरने की
और तै करने
देते हैं
समन्दरों को ही
हमारा हश्र.....!!
बहुत गहन रचना है.....
ReplyDeleteसोच रही हूँ कि जीवन के इस अथाह समंदर में हम इतने निःशक्त और असहाय क्यूँ महसूस करते हैं.....
सादर
अनु
सुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीया-
बहुत सुंदर
ReplyDeleteतै करने देते हैं
ReplyDeleteसमन्दरों को ही
हमारा हश्र.....!! बिल्कुल सच कहा है इन पंक्तियों में
लहरों का ही खेल है...
ReplyDeleteकोई लहर किनारे भी लगाएगी....
बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteइनका रूप तो भयावह जरूर होता लेकिन ह्रदय में अंजनी-पुत्र वाला जज़्बा एक बार जाए तो फिर ये भी छोटे पड़ जाते हैं. सुन्दर रचना.
ReplyDeleteशुक्रिया राजीवजी
ReplyDeleteसब कुछ तो अथाह है हमारे पास ... पर हम ही शायद कम करके देखते हैं...
ReplyDeleteएक बेहतरीन पोस्ट..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...! सरस जी..
ReplyDeleteऔर हम बेबस, थके हुए लाचार से
ReplyDeleteछोड़ देते हैं हर कोशिश
उबरने की
और तै करने देते हैं
समन्दरों को ही
हमारा हश्र.....!!
सचमुच जब सारे प्रयास व्यर्थ हो जायें तो थक हार कर नियति पर ही छोड़ देना होता
बहुत ही गहरी रचना .
क्या कहूँ जो कुछ भी मैं कहना चाहती थी सभी ने कह दिया...सच तो यही है जब सारे प्रयास व्यर्थ हो जायें तो थक हार कर नियति पर ही छोड़ देना होता है। गहन भाव अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteछोटी चीज़ों पर हम आसानी से काबू पा लेते है इसीलिए शायद बढ़ी , अथाह पूर्ण चीज़े हमें डराती है , बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना आपकी ..
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर |
ReplyDeleteबेजोड़ भाव.....
ReplyDeleteऔर हम बेबस, थके हुए लाचार से
ReplyDeleteछोड़ देते हैं हर कोशिश
उबरने की
और तै करने देते हैं
समन्दरों को ही
हमारा हश्र.....!!
...कितना असमर्थ हो जाता है इंसान संसार सागर में हालात के हाथों...
इन समन्दरों से डर लगता है मुझे .
ReplyDeleteजो अथाह है
वह डरावना क्यों हो जाता है ?
अथाह प्यार-
अथाह दुःख-
अथाह अपनापन-
अथाह शिकायतें.......
जीवन के गहरेपन को उकेरती भावपूर्ण रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
...और एक दिन खुद में समा भी लेता है ये समंदर..
ReplyDeleteप्रेम गलघोंटू न हो , तो ही उचित है !
ReplyDeleteअथाह की थाह खूब अभिव्यक्त हुई !!
great symbolic expression waves and OCEAN WOW its so nice
ReplyDeleteइनमें डूबते ..उतराते -
ReplyDeleteसांस लेने की कोशिश करते -
सतह पर हाथ पैर मारते
रह जाते हैं हम -
और यह सारे समंदर
जैसे लीलने को तैयार
हावी होते रहते हैं .
bahut hi sunder panktiyan .
aap ne meri kavita ke lite jo kaha sach maniye bahut apna sa laga
dhnyavad
rachana
समंदर कितना ही अथाह क्यों न हो लहरों को बिना एक दूसरे पर
ReplyDeleteहावी हुए किनारे पहुँचने की कला तो सीखनी ही होगी !
बहुत सुन्दर भाव मुझे बहुत पसंद आयी रचना सरस जी, !
थाह पाने के लिए जब तक हो सके हाथ पैर मारते हैं ...पर जब वश नहीं चलता तो छोड़ देते हैं नितती पर और फिर समंदर ही तय करता है हश्र ..... बहुत सुंदर और गहन भाव ।
ReplyDeleteहर एक समंदर डराता है, झकझोरता है, कभी पार लगाता है, कभी डुबो देता है. उसकी मर्जी जो करे. भावपूर्ण रचना, बधाई.
ReplyDeleteतै करने देते हैं
ReplyDeleteसमन्दरों को ही
हमारा हश्र.....!!
..... सच है इन पंक्तियों में
बहुत सुंदर😍💓
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