लहरों को देखकर
अक्सर मन में
कई विचार कौंधते
हैं .....
समंदर के किनारे बैठे
कभी लहरों को गौर
से देखा है
एक दूसरे से होड़
लगाते हुए ..
हर लहर तेज़ी
से बढ़कर ...
कोई छोर छूने की
पुरजोर कोशिश करती
फेनिल सपनों के निशाँ
छोड़ -
लौट आती -
और आती हुई
लहर दूने जोश
से
उसे काटती हुई आगे
बढ़ जाती
लेकिन यथा शक्ति
प्रयत्न के बाद
वह भी थककर
लौट आती
.......बिलकुल
हमारी बहस की
तरह !!!!!
(२)
कभी शोर सुना
है लहरों का
....
दो छोटी छोटी
लहरें -
हाथों में हाथ
डाले -
ज्यूँ ही सागर
से दूर जाने
की
कोशिश करती हैं-
गरजती हुई बड़ी
लहरें
उनका पीछा करती
हुई
दौड़ी आती हैं
-
और उन्हें नेस्तनाबूत कर
लौट जाती हैं
-
बस किनारे पर रह
जाते हैं -
सपने-
ख्वाईशें -
और जिद्द-
साथ रहने की
....
फेन की शक्ल
में ...!!!!!
(३ )
लहरों को मान
मुनव्वल करते देखा
है कभी !
एक लहर जैसे
ही रूठकर आगे
बढ़ती है
वैसे ही दूसरी
लहर
दौड़ी दौड़ी
उसे मनाने पहुँच जाती
है
फिर दोनों ही मुस्कुराकर
-
अपनी फेनिल ख़ुशी
किनारे पर छोड़ते
हुए
साथ लौट आते
हैं
दो प्रेमियों की तरह....!!!!!
( ४ )
कभी कभी लहरें
-
अल्हड़ युवतियों सी
एक स्वछन्द वातावरण में
विचरने निकल पड़तीं
हैं ---
घर से दूर
-
एल अनजान छोर पर
!
तभी बड़ी लहरें
माता पिता की
चिंताएं -
पुकारती हुई
बढ़ती आती हैं
...
देखना बच्चों संभलकर
यह दुनिया बहुत बुरी
है
कहीं खो न
जाना
अपना ख़याल रखना
-
लगभग चीखती हुई सी
वह बड़ी लहर
उनके पीछे पीछे
भागती है ...
लेकिन तब तक
-
किनारे की रेत
-
सोख चुकी होती
है उन्हें -
बस रह जाते
हैं कुछ फेनिल
अवशेष
यादें बन .....
आंसू बन ......
तथाकथित कलंक बन
....!!!!!
सरस दरबारी
वह बड़ी लहर उनके पीछे पीछे भागती है ...
ReplyDeleteलेकिन तब तक -
किनारे की रेत -
सोख चुकी होती है उन्हें -
बस रह जाते हैं कुछ फेनिल अवशेष
यादें बन .....
आंसू बन ......
तथाकथित कलंक बन ....!!!!!
प्रतीक रुपमे माँ बाप की चिंताएं दर्शाती सुन्दर रचना !
नई पोस्ट काम अधुरा है
भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
ReplyDeleteकितने बिम्ब लहरों के.....
ReplyDeleteकितना कुछ कह जाती हैं लहरें और उनके फेनिल अवशेष.....
बहुत सुन्दर सरस दी!!
सादर
अनु
अद्भुत. जिस नज़रिए से आपने इन लहरों को देखा है वह वाकई लाजवाब है. बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteसुन्दर रचना-
ReplyDeleteआभार आपका आदरेया-
लहरों ने तो खुद में ही डुबो लिया..बहुत सुन्दर लिखा है..
ReplyDeleteशुक्रिया अमृताजी
Deleteवाह! से निकली ....आह! से पिघली !
ReplyDeleteशुभकामनायें!
वाह ! बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..!
ReplyDeleteRECENT POST -: कामयाबी.
शानदार.
ReplyDeleteलहरों के साथ बुना सांस लेता ताना बाना ... कितनी अलग अलग मूड में उतारा है इन लहरों को ... बहुत खूब ...
ReplyDeleteवाह वाह वाह ! ........सभी एक से बढ़कर एक कितने ख्याल लहरों को बांधने कि कोशिश में |
ReplyDeleteओफ्फो ... इन लहरों में न जाने क्या क्या देख लेती हैं ये निगाहें.
ReplyDeleteअद्भुत है सच्ची...
अल्हड युवतियां -सी , माता पिता- सी , सखियों -सी लहरें !
ReplyDeleteबेहतरीन है लहरों का मनोविज्ञान आपकी कविताओं में !
आभार वाणीजी
Deleteसरस जी,
ReplyDeleteलहरों पर कितने सुन्दर भाव चित्र उकेरे है आपने
वाकई बहुत सुन्दर लगे मुझे, खास कर यह क्षणिका
समंदर के किनारे बैठे
कभी लहरों को गौर से देखा है
एक दूसरे से होड़ लगाते हुए ..
हर लहर तेज़ी से बढ़कर ...
कोई छोर छूने की पुरजोर कोशिश करती
फेनिल सपनों के निशाँ छोड़ -
लौट आती -
और आती हुई लहर दूने जोश से
उसे काटती हुई आगे बढ़ जाती
लेकिन यथा शक्ति प्रयत्न के बाद
वह भी थककर लौट आती
.......बिलकुल हमारी बहस की तरह !!!!!
बहुत सुन्दर चारों क्षणिकाएँ !
शुक्रिया सुमनजी ....अच्छा लगा पढ़कर ..
Deleteadbhut ....bas ...kya kahun...
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार शारदाजी
Deleteबहुत सुन्दर रचना . लहरों को अलग अलग दृष्टि से देखना सचमुच अद्भुत है ..
ReplyDeleteआभार नीरजजी
Deleteबहुत ही बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteलाजवाब...
:-)
शुक्रिया रीना
Deleteसुन्दर रचना सरस जी
ReplyDeleteबेहद ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteआभार प्रमोद कुमारजी
Deleteराजीवजी रचना को "हिंदी ब्लोग्गेर्स चौपाल" पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार
ReplyDeleteहार्दिक आभार राजेशजी "चर्चा मंच" पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए
ReplyDeleteलहरों को देखकर बहुत अद्भुत एहसास होता है. बहुत खूबसूरती से इन एहसासों को उतारा है आपने, बधाई.
ReplyDeletelajbab prastuti .....abhar.
ReplyDeleteलहरों के आगे पीछे
ReplyDeleteसोच की कई लहरें
दिखा रही हैं
ज़िंदगी के फलसफे को
होड करती सी
एक दूसरे से
तो कभी बाहों में
बाहें डाले
बन जाती हैं ईर्ष्या कारण
अद्भुत सोच उतारी है लहरों में .... बहुत सुंदर ।