Sunday, September 8, 2013

समंदर




देखे हैं कई समंदर
यादों के  -
प्यार के -
दुखों के -
रेत के -
और सामने दहाड़ता-
यह लहरों का समंदर !
हर लहर दूसरे पर हावी
पहले के अस्तित्व को मिटाती हुई...

इन समन्दरों से डर लगता है मुझे .
जो अथाह है
वह डरावना क्यों हो जाता है ?
अथाह प्यार-
अथाह दुःख-
अथाह अपनापन-
अथाह शिकायतें.......

इनमें डूबते ..उतराते -
सांस लेने की कोशिश करते -
सतह पर हाथ पैर मारते
रह जाते हैं हम -
और यह सारे समंदर
जैसे लीलने को तैयार
हावी होते रहते हैं .

और हम बेबस, थके हुए लाचार से
छोड़ देते हैं हर कोशिश
उबरने की
और तै करने देते हैं
समन्दरों को ही
हमारा हश्र.....!!

         


22 comments:

  1. ये असल के समुंदर तो ललकारते हैं हमारे पौरुष को .... चुनौती देते हैं पार करने की ... लोहा लेने की ... पर यादों के समुंदर के आगे सब हार जाते हैं ...

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  2. आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [09.09.2013]
    चर्चामंच 1363 पर
    कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
    सादर
    सरिता भाटिया

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  3. जो अथाह है
    वह डरावना क्यों हो जाता है ?
    सच में ये कितना बड़ा सवाल है ? ये पोस्ट मुझे काफी अपने करीब लगा ...

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - सोमवार - 09/09/2013 को
    जाग उठा है हिन्दुस्तान ... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः15 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra





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  5. खुबसूरत एहसास ,गहरे भाव .....

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  6. सचमुच बहुत गहरे होते हैं ये समंदर , बहुत कठिन है इनसे पार पाना ...
    सुन्दर रचना

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  7. वाह .....गहरे भाव.........

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  8. समंदर सी गहराई लिए गहन भाव

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  9. गहन अनुभूति.. गणेश चतुर्थी कीआप को बहुत बहुत शुभकामनाएं!

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  10. अभी पुरी जाना हुआ... सुबह-सुबह समंदर के किनारे धीमी सी मलय समीर के बीच एक महिला को हमने देखा,,, माँ ने हमे दिखाया, वो महिला कविता लिख रही थी, वह समंदर की लहरों को झांकती, फिर डूब जाती अपनी लेखन में, फिर झांकती...
    कविता लिखना भी एक जादू जगाता है और जब समंदर सामने हो तो और भी


    मुझे लगा कि मैं पास जाऊँ और उनकी कविता देख लूँ लेकिन कविकर्म के क्षणों में उन्हें डिस्टर्ब करना अच्छा नहीं लगा।


    जो कविता उन्होंने लिखी होगी, वो मेरे लिए अब तक रहस्य थी।


    आपकी कविता को पढ़ा तो संतोष हुआ, वो कविता बिल्कुल भी ऐसी ही होगी, समंदर की तरह गहन उतार-चढ़ाव लिए।

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  11. सचमुच अथाह-अगम होते हैं समुद्र -लेकिन बहुत आकर्षण होता है उनमें -अभिव्यक्ति सुन्दर है !

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  12. समंदर सी गहराई,बहुत सुन्दर.

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  13. गहन ,गंभीर बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करगइ सरस जी आपकी यह रचना....

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  14. बेहद गहनता लिये अनुपम अभिव्‍यक्ति

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  15. वाह शानदार प्रस्तुति सरस जी बहुत बहुत बधाई |

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  16. मधुर और सरल अभिव्यक्ति ..

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