नियति के विस्तृत सागर में
कब कौन कहाँ तर पाया है -
जिसको चाहा , रौंदा उसने
और पार किसीको लगाया है .
पेशानी पर जो लिखा है -
बस पेश उसीको आना है
कितना भी तुम लड़ लो भिड़ लो
उसका ही सच अपनाना है .
क्या देव और यह दानव क्या-
कोई भी बच न पाया है -
फिर तुम तो केवल इंसान हो -
सब पर नियति का साया है
होता न ऐसा तो पांडव
क्यों दर दर भटके भेशों में -
महारानी द्रौपदी क्यों बन गयी-
सैरंध्री कीचक के देश में .
क्यों राम ने छोड़ा देस अपना -
और भटके जंगल जंगल में
था राज तिलक होना जिस दिन
वे निकले वन्य प्रदेश में.
बस नियति ही करता धर्ता
उसके आगे सब बेबस हैं
फिर कौन गलत और कौन सही -
सब परिस्थितियों के फेर हैं .
सुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीया-
ईश्वर के द्वारा रची इस दुनियाँ मे हम कठपुतली मात्र ही हैं ...सरस जी ...!!
ReplyDeleteप्रारब्ध के आगे हम सभी निरुत्तर हैं .....
सह जाए प्रारब्ध उसे (मनुष्य को )तो सहना है ...
मंथन कर ढेरों विष ,अमृत ही बहना है ....
एक सोच दे रही है आपकी अभिव्यक्ति ....!!
सुन्दर भाव. सत्य तो यही है. नियति का जो चक्र है वो बस अपने हिसाब से चलता है.
ReplyDeleteसुंदर भाव लिए बेहतरीन रचना !
ReplyDeleteनई रचना : सुधि नहि आवत.( विरह गीत )
बिलकुल सही और सत्य को प्रस्तुत्र करती पोस्ट। ……। नियति अटल है |
ReplyDeleteनियति ने ...
ReplyDeleteपेशानी पर जो लिखा है -
बस पेश उसीको आना है
बिल्कुल सच
प्रभावी एवं सटीक अभिव्यक्ति ..... बहुत सुंदर
ReplyDeleteनियति भी बड़ी अजीब खेल खेलती है
ReplyDeleteकभी किसीकी खुशियों से भर देती है झोली
कभी किसी के साथ कर जाती है क्रूर ठिठोली
सटीक बाते कही है रचना में, बहुत बढ़िया !
बहुत सुन्दर रचना........
ReplyDeleteनियति बहुत ही बलवान होती है ...
ReplyDeleteइस सत्य को बाखूबी लिखा है आपने ...
बहुत सुन्दर रचना है
ReplyDeleteसच .....नियति के आगे कब कौन टिक सका है
ReplyDeleteवाह... आनंद आ गया सच में...
ReplyDeleteनियति के हाथों सब ही कठपुतली बने रहते हैं .... प्रयास तो करते हैं पर होता शायद वही है जो होना होता है ।
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