देखे हैं कई समंदर
यादों के -
प्यार के -
दुखों के -
रेत के -
और सामने दहाड़ता-
यह लहरों का समंदर !
हर लहर दूसरे पर हावी
पहले के अस्तित्व को मिटाती हुई...
इन समन्दरों से डर लगता है मुझे .
जो अथाह है
वह डरावना क्यों हो जाता है ?
अथाह प्यार-
अथाह दुःख-
अथाह अपनापन-
अथाह शिकायतें.......
इनमें डूबते ..उतराते -
सांस लेने की कोशिश करते -
सतह पर हाथ पैर मारते
रह जाते हैं हम -
और यह सारे समंदर
जैसे लीलने को तैयार
हावी होते रहते हैं .
और हम बेबस, थके हुए लाचार से
छोड़ देते हैं हर कोशिश
उबरने की
और तै करने देते हैं
समन्दरों को ही
हमारा हश्र.....!!
ये असल के समुंदर तो ललकारते हैं हमारे पौरुष को .... चुनौती देते हैं पार करने की ... लोहा लेने की ... पर यादों के समुंदर के आगे सब हार जाते हैं ...
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [09.09.2013]
ReplyDeleteचर्चामंच 1363 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया
जो अथाह है
ReplyDeleteवह डरावना क्यों हो जाता है ?
सच में ये कितना बड़ा सवाल है ? ये पोस्ट मुझे काफी अपने करीब लगा ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - सोमवार - 09/09/2013 को
ReplyDeleteजाग उठा है हिन्दुस्तान ... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः15 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
खुबसूरत एहसास ,गहरे भाव .....
ReplyDeleteसचमुच बहुत गहरे होते हैं ये समंदर , बहुत कठिन है इनसे पार पाना ...
ReplyDeleteसुन्दर रचना
वाह .....गहरे भाव.........
ReplyDeleteसमंदर सी गहराई लिए गहन भाव
ReplyDeleteगहन अनुभूति.. गणेश चतुर्थी कीआप को बहुत बहुत शुभकामनाएं!
ReplyDeleteअभी पुरी जाना हुआ... सुबह-सुबह समंदर के किनारे धीमी सी मलय समीर के बीच एक महिला को हमने देखा,,, माँ ने हमे दिखाया, वो महिला कविता लिख रही थी, वह समंदर की लहरों को झांकती, फिर डूब जाती अपनी लेखन में, फिर झांकती...
ReplyDeleteकविता लिखना भी एक जादू जगाता है और जब समंदर सामने हो तो और भी
मुझे लगा कि मैं पास जाऊँ और उनकी कविता देख लूँ लेकिन कविकर्म के क्षणों में उन्हें डिस्टर्ब करना अच्छा नहीं लगा।
जो कविता उन्होंने लिखी होगी, वो मेरे लिए अब तक रहस्य थी।
आपकी कविता को पढ़ा तो संतोष हुआ, वो कविता बिल्कुल भी ऐसी ही होगी, समंदर की तरह गहन उतार-चढ़ाव लिए।
बहुत सुन्दर और गहन |
ReplyDeletebahut sundar aur samandar see gaharai liye abhivyakti.
ReplyDeleteसचमुच अथाह-अगम होते हैं समुद्र -लेकिन बहुत आकर्षण होता है उनमें -अभिव्यक्ति सुन्दर है !
ReplyDeleteसमंदर सी गहराई,बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteगहन ,गंभीर बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करगइ सरस जी आपकी यह रचना....
ReplyDeleteबेहद गहनता लिये अनुपम अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह शानदार प्रस्तुति सरस जी बहुत बहुत बधाई |
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति...
ReplyDeleteसुन्दर रचना...
ReplyDeleteWah! Aur kya kahun....?
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteमधुर और सरल अभिव्यक्ति ..
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