Monday, June 11, 2012

मरहम


मोहल्ले की झोपड़ पट्टी में कोहराम  मचा था.....
रामू रिक्शेवाले के बेटे ने खुदखुशी कर ली 
अरे वही होनहार बालक न ...जो पढाई में अव्वल था 
पुरे मोहल्ले की शान था ...
हाँ वही ...दाखिले के लिए गया ...
मगर उसका हक ...किसी  रईस को मिल गया ..
उसकी मेहनत ने हिम्मत छोड़ दी 
और जिजीविषा ने जीवन की बागडोर तोड़ दी ....
मृत बेटे के हाथ में एक पुर्जा था ...
"वह कोमल स्पर्श याद है,
जब मेरी चोट को सहलाकर,
दोबारा खड़े होने का साहस दिया था आपने !
मेरे पिता...मेरे परम ईश
उन्ही हाथों के छालों पर ..मरहम लगाने की ..अब मेरी बारी है....."  


21 comments:

  1. बहुत ही मार्मिक सच।


    सादर

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  2. उफ़ बेहद मार्मिक अभिव्यक्ति.....शानदार।

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  3. बहुत ही मार्मिक रचना,,,,, एक दुखदाई सच..

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  4. अंतस को छू गयी ............एक दुखद सत्य है
    कोई हल नहीं देता दिखाई ...सब बेबस हैं व्यवस्थ के आगे

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  5. मौत या कहूँ ख़ुदकुशी किसी भी स्थिति में किसी भी समस्या का समाधान नहीं ,यह एक नपुसकता की निशानी है .पलायन वह भी इश्वर की अनुपम कृति मानव जीवन से कभी नहीं होना चाहिए .जीवन है तो सब कुछ पाया जा सकता है और जीवन ही नहीं तो क्या खोना क्या पाना ? मरहम एक खुबसूरत रचना जो जीवन की उपयोगिता
    इश्वर के प्रति आस्था और आशा का संचार कराती है ?

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  6. अंतस को छूती मार्मिक अंतर्कथा

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  7. बहुत मार्मिक ! दिल को छूती पंक्तियाँ!


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    आपका इंतज़ार है मेरे ब्लॉग पर !

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  8. samaj ki visangatiyon ko ujagar karti rachana.....

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  9. पढ़ कर जी कड़वाहट से भर गया.....
    मगर यही सच्चाई है समाज की,हमारे सड़ते सिस्टम की ...क्या करें!!!

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  10. aaj kal aesa hi ho raha hai bahutu sunder bhav
    rachana

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  11. निरुत्तर से एहसास कहें तो क्या !

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  12. उफ़ ..आखिर करें तो क्या करें..

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  13. भावमय करती प्रस्‍तुति।

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  14. मर्मस्पर्शी रचना.....बेबसी का सजीव चित्रण
    आभार

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  15. मार्मिक .. पर क्या सचमुच वो मरहम लगा सका ... बेबसी में खुदकशी क्या उस पिता परम ईश कों कभी शांति दे पायगी ...

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  16. मौत किसी भी समस्या का समाधान नहीं .जिंदगी है तो सब कुछ पाने की संभावना बनती है ,लेकिन जिंदगी ख़त्म तो क्या खोना क्या पाना ,जीवन इश्वर की अनुपम और अमूल्य कृति फिर उससे ऐसा बर्ताव क्यों ?

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  17. ओह...मार्मिक..
    Speechless!

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