मोहल्ले की झोपड़ पट्टी में कोहराम मचा था.....
रामू रिक्शेवाले के बेटे ने खुदखुशी कर ली
अरे वही होनहार बालक न ...जो पढाई में अव्वल था
पुरे मोहल्ले की शान था ...
हाँ वही ...दाखिले के लिए गया ...
मगर उसका हक ...किसी रईस को मिल गया ..
उसकी मेहनत ने हिम्मत छोड़ दी
और जिजीविषा ने जीवन की बागडोर तोड़ दी ....
मृत बेटे के हाथ में एक पुर्जा था ...
"वह कोमल स्पर्श याद है,
जब मेरी चोट को सहलाकर,
दोबारा खड़े होने का साहस दिया था आपने !
मेरे पिता...मेरे परम ईश
उन्ही हाथों के छालों पर ..मरहम लगाने की ..अब मेरी बारी है....."
बहुत ही मार्मिक सच।
ReplyDeleteसादर
उफ़ बेहद मार्मिक अभिव्यक्ति.....शानदार।
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति की मार्मिक रचना,,,,, ,
ReplyDeleteMY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: ब्याह रचाने के लिये,,,,,
atyant maarmik ....
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक रचना,,,,, एक दुखदाई सच..
ReplyDeleteअंतस को छू गयी ............एक दुखद सत्य है
ReplyDeleteकोई हल नहीं देता दिखाई ...सब बेबस हैं व्यवस्थ के आगे
मौत या कहूँ ख़ुदकुशी किसी भी स्थिति में किसी भी समस्या का समाधान नहीं ,यह एक नपुसकता की निशानी है .पलायन वह भी इश्वर की अनुपम कृति मानव जीवन से कभी नहीं होना चाहिए .जीवन है तो सब कुछ पाया जा सकता है और जीवन ही नहीं तो क्या खोना क्या पाना ? मरहम एक खुबसूरत रचना जो जीवन की उपयोगिता
ReplyDeleteइश्वर के प्रति आस्था और आशा का संचार कराती है ?
अंतस को छूती मार्मिक अंतर्कथा
ReplyDeleteyatharth ka marmsparchi chitran.....
ReplyDeleteबहुत मार्मिक ! दिल को छूती पंक्तियाँ!
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग का link - www.sushilashivran.blogspot.in
आपका इंतज़ार है मेरे ब्लॉग पर !
samaj ki visangatiyon ko ujagar karti rachana.....
ReplyDeleteपढ़ कर जी कड़वाहट से भर गया.....
ReplyDeleteमगर यही सच्चाई है समाज की,हमारे सड़ते सिस्टम की ...क्या करें!!!
aaj kal aesa hi ho raha hai bahutu sunder bhav
ReplyDeleterachana
निरुत्तर से एहसास कहें तो क्या !
ReplyDeleteउफ़ ..आखिर करें तो क्या करें..
ReplyDeleteभावमय करती प्रस्तुति।
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना.....बेबसी का सजीव चित्रण
ReplyDeleteआभार
मार्मिक .. पर क्या सचमुच वो मरहम लगा सका ... बेबसी में खुदकशी क्या उस पिता परम ईश कों कभी शांति दे पायगी ...
ReplyDeleteमौत किसी भी समस्या का समाधान नहीं .जिंदगी है तो सब कुछ पाने की संभावना बनती है ,लेकिन जिंदगी ख़त्म तो क्या खोना क्या पाना ,जीवन इश्वर की अनुपम और अमूल्य कृति फिर उससे ऐसा बर्ताव क्यों ?
ReplyDeletebehtarin kavita
ReplyDeleteओह...मार्मिक..
ReplyDeleteSpeechless!