यह दुनिया शिशुपालों से भरी पड़ी है -
किस किस के पापों का हिसाब रखूँ..?
हाँ ....मैं कृष्ण नहीं हूँ -
मै हूँ एक आम आदमी-
जो ऐसे ही लोगों द्वारा -
हर कदम पर शोषित-
इसी आस में जी रहा है कि -
"वह" तो हिसाब रख ही रहा होगा इनके कुकर्मों का ....
लेकिन फिर.....
मेरी तरह अनेकों होंगे ......!!!!
किस किस का हिसाब रखे ....
मैं इतना तो कर ही सकता हूँ -
उनका कुछ तो हाथ बंटा ही सकता हूँ .....
बस इसीलिए -
गुनाह गिने जा रहा हूँ मैं -
और इंतज़ार कर रहा हूँ
उस दिनका -
जब शीषों के ढेर से भयभीत हो -
गुनाहों कि यह फेहरिस्त -
कुछ कम हो !!!!!!!!
गुनाह तो जनसंख्या की तरह बढ़ते हैं और सुकर्म बेटियों की तरह कभी भी कहीं भी ख़त्म कर दिए जाते हैं .... क्या हिसाब !
ReplyDeleteगुनाहो का कोई अंत नहीं.. गहन अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteगुनाह को देख ..गुनाह पनपता है ...
ReplyDeleteगुनाह का अंत कैसे हो ???
आपकी अच्छी सोच को...
शुभकामनाएँ!
जब शीषों के ढेर से भयभीत हो -
ReplyDeleteगुनाहों कि यह फेहरिस्त -
कुछ कम हो !!!!!
गहन भाव ... इनका हिसाब रखने में हांथ बटाना एक नेक ख्याल ... आभार
यह दुनिया शिशुपालों से भरी पड़ी है -
ReplyDeleteकिस किस के पापों का हिसाब रखूँ..?
सच...मन बहुत व्यथित होता है...गहरी अभिव्यक्ति
गिनने से अब कुछ नहीं होने वाला सरस जी , शिशुपाल के साथ रक्तबीज भी दीखते है अब .
ReplyDeleteएक सार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteकहाँ तक गिनेंगे.एक से चार पनपते दिखते हैं.
ReplyDeleteआज की दुनिया में कृष्ण बनना तो बहुत मुश्किल है ... पर दिन गिनना भी ठीक नहीं ... इस बेबसी से खुस ही उभारना होता है ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना।
ReplyDeleteवाह,,,, बहुत सुंदर बेहतरीन गहन रचना,,,,,के लिये बधाई
ReplyDeleteMY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: विचार,,,,
बहुत ही बढ़िया आंटी !
ReplyDeleteसादर
यह भी अपना अंदाज़ है
ReplyDeleteसिर्फ शुभकामनायें दे सकता हूँ ...
ReplyDeleteआभार अच्छी रचना के लिए !
बस इसीलिए -
ReplyDeleteगुनाह गिने जा रहा हूँ मैं -
और इंतज़ार कर रहा हूँ
उस दिनका -
जब शीषों के ढेर से भयभीत हो -
गुनाहों कि यह फेहरिस्त -
कुछ कम हो !!!!!!!!
नए अंदाज़ में कहने की बारीकी कोई आप से सीखे तो क्या कहने .....
कहने का अनूठा तरीका बहुत भाया . कह दूँ बहुत खूब ........
काश के कम हों गुनाह................
ReplyDeleteआशावान रहें....
सस्नेह
बस इसीलिए -
ReplyDeleteगुनाह गिने जा रहा हूँ मैं -
और इंतज़ार कर रहा हूँ
उस दिनका -
जब शीषों के ढेर से भयभीत हो -
गुनाहों कि यह फेहरिस्त -
कुछ कम हो !!!!!!!!
सौ गुनाह करके शिशुपाल को तो मुक्ति मिल गयी .... पर आज के शिशुपालों के गुनाह का कोई हिसाब नहीं ... सार्थक प्रस्तुति
सार्थक प्रस्तुति.........
ReplyDeleteकोई तो रखता है हिसाब ...गालियों की गिनते सौ पूरी होने तक !
ReplyDeleteशानदार!!!!
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