Wednesday, June 20, 2012

सखी बरखा













ग्रीष्म की भीषण गर्मी में जब मन क्लांत हो जाता है
जब तृषित धरती तुम्हारी प्रतीक्षा में पलक पावडे बिछाये बैठी रहती है
तब याद आ जाते  हैं -
जीवन के विभिन्न पड़ावों पर -
तुम्हारे साथ बिताये वे पल ....
और भीग जाता है तन मन ....

याद आते हैं बचपन के वे दिन -
जब कागज़ की कश्तियों की रेस में -
तुम मुस्कुराकर आश्वस्त करतीं ...
घबराओ नहीं ...तुम्हारी कश्ती नहीं डूबने दूँगी ...

या वे शामें ..
जब घर से काफी दूर -
सहेली की छत पर
बौछारों की सुइयों से आँख मूंह भींचे
घंटों बाहें फेलाए भीगते रहते -
और पूरी तरह तर- बतर
डांट के डर से फिंगर्स- क्रोस्स्ड ...
घर पहुँचते ...
पड़नी तो थी ...पर ज़रा कम पड़े .....
माँ डांटती जातीं
और हम सर झुकाए
उन पलों को मन ही मन दोहराते ...
एक स्मितहास चेहरे पर उभर आती-
तभी मौके की नजाकत को भांप -
एक अवसाद ओढ़ लेते चेहरे पर !
माँ भी जानती थी ...
कल फिर यही होगा ....

फिर समय बीता-
अहसास बदल गए-
मायने बदल गए -
पर रहीं तब भी तुम
मेरी अन्तरंग !!!!!
अब मेघों में "उनकी" सूरत दिखाई देती
कभी मेघों को ...कभी चाँद को अपना दूत बनाती...
और "वे" मेरा सन्देश पा चले आते !

फिर समुन्दर के किनारे वह बारिश में भीगना-
ठण्ड में ठिठुरते कांपते चाय की चुस्कियां लेना -
ओपन एयर रेस्तरां में पनीर के गर्म पकौड़े -
और वह शोर!
समुन्दर का ...
हमारे अहसासों का ....
और उनके जाने के बाद हफ़्तों उस सूख चुकी साड़ी को निहारना -
और फिर भीग भीग जाना .....

तुमने तो मेरा साथ कभी नहीं छोड़ा -
मन जब भी दुख से कातर हुआ है -
तुम मेरे साथ बरसी हो ...
तन भीगता जाता ..
और तुम मेरे आंसुओं को धोती जातीं ...
तब लगता घुल कर बह जाऊं तुम्हारे साथ ...

कुछ ऐसा ही आज भी लग रहा है -
ग्रीष्म की इस भीषण गर्मी में .....    

17 comments:

  1. वाह!!!
    हमारे सुख दुःख की साथी बरखा पर बहुत सुन्दर एहसास.............

    सरस जी आपके टेम्पलेट और टेक्स्ट के रंग की वजह से रचना पढ़ने में दिक्कत हो रही है...ऊपर स्क्रोल करना पड़ रहा है...सूरज की किरणों में शब्द चमक रहे हैं :-)
    सस्नेह
    अनु

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  2. तुमने तो मेरा साथ कभी नहीं छोड़ा -
    मन जब भी दुख से कातर हुआ है -
    तुम मेरे साथ बरसी हो ...
    तन भीगता जाता ..
    और तुम मेरे आंसुओं को धोती जातीं ...
    तब लगता घुल कर बह जाऊं तुम्हारे साथ ...
    दर्द बह चला है बारिश की बूंदों के साथ... यादें कभी साथ नहीं छोड़तीं...

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  3. बहुत सुन्दर भाव |
    बधाई ||

    भीषण गर्मी से थका, मन-चंचल तन-तेज |
    भीग पसीने से रही, मानसून अब भेज |
    मानसून अब भेज, धरा धारे जल-धारा |
    जीव-जंतु अकुलान, सरस कर सहज सहारा |
    पद के सुन्दर भाव, दिखाओ प्रभु जी नरमी |
    यह तीखी सी धूप, थामिए भीषण गरमी ||

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  4. याद आते हैं बचपन के वे दिन -
    जब कागज़ की कश्तियों की रेस में -
    तुम मुस्कुराकर आश्वस्त करतीं ...
    घबराओ नहीं ...तुम्हारी कश्ती नहीं डूबने दूँगी ... आज भी यह कश्ती नहीं डूबेगी , क्योंकि तुम्हारी वह मुस्कुराहट साथ जो है

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  5. वो जो भी हो ... सखी, माँ, बहन ... कभी कभी इस तरह से जुड जाता है अन्तरंग से की हर तरह ले पल में उसका चेहरा सामने आ जाता है और मुस्कान ले आता है होठों पे .... अतीत की गहराइयों से लिखी सुन्दर रचना ...

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  6. सुन्दर लम्हों की यादें भूलाए नही भूलती...बहुत खुबसूरत भाव.....सारस जी..

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  7. guzre huye pal to laut kar nahi ate,par man ko ,palko ko bhigo jati hain baarish har bar.......

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  8. फिर समय बीता-
    अहसास बदल गए-
    मायने बदल गए -
    पर रहीं तब भी तुम
    मेरी अन्तरंग !!!!

    कभी कभी शब्द नहीं मिल पाते भावनाओं को व्यक्त करने के लिए ,निः शब्द बहुत ही सुन्दर यादों की लड़ियाँ जिन्हें बार बार जीने को मन करता है . सदा भांति खुबसूरत ही नहीं अति खुबसूरत ............

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  9. बहुत ही सुन्दर भावो से सजी ये पोस्ट लाजवाब है।

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  10. कोमल अहसास लिए..
    सुन्दर भावभरी रचना..
    :-)

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  11. मनोभावों का सहज सम्प्रेषण ....!

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  12. माँ भी जानती थी ...
    कल फिर यही होगा ....
    शब्‍दश: जी लिया हर पल ... आभार उत्‍कृष्‍ट लेखन के लिए

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  13. बारिश का हर पल सजीव हो गया जैसे...
    सुन्दर कविता

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  14. शीतल बयारों सी बहुत खूबसूरत रचना....
    सादर

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  15. sundar bhavon se saji rachna ............

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  16. बहुत सुन्दर
    मनोभावों को भिगो दिया

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  17. पावस तो है धरती का पारस, कुछ मेरे मन का भी!
    कुछ तो उससे संबंध प्राण का, कुछ मेरे तन का भी!

    अप्रतिम भाव माधुर्य को उकेरती कविता!

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