उन्ही के शब्दों में ...अब आगे .......
ऐसे ही कुछ प्रश्न रावण के विषय में भी उठे थे जो वेदों का ज्ञाता और एक शिव भक्त होने के साथ साथ एक दुष्ट और दुरात्मा के रूप में हमारे सम्मुख रखा गया है . सीता का हरण करने के अतिरिक्त रावण ने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसके कारण उसे दोषी या नीच समझा जाये .
एक व्यक्ति दो सुन्दर नारियों का आलिंगन करता है . उसमें से एक उसकी प्रेमिका है और दूसरी बहन ; दोनों आलिंगन एक से हैं , दृश्य भी एक सा है , पर उसके पीछे जो विचार हैं, जो भावना है वो दोनों कृत्यों को एक दूसरे से पूर्णतया भिन्न कर देती है .किसी भी व्यक्ति के अच्छे बुरे होने का निर्णय उसके कृत्य नहीं बल्कि उसके पीछे निहित भावना पर निर्भर होता है .
अब प्रश्न यह उठता है कि रावण कि सबसे बड़ी भूल के पीछे , जो उसके सर्वनाश का कारण बनी , क्या भावना थी..क्या उसने सीता का हरण, राम और लक्ष्मण से , अपनी बहन शूर्पनखा के अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए किया था ; या वह सीता पर मोहित हो गया था और उसे अपनी रानी बनाना चाहता था अथवा किसी और कारणवश ...
रावण को समझने के लिए अनेक राम कथाओं का अध्ययन आवश्यक है . इनमें सबसे अधिक लोकप्रिय है तुलसीदास कृत रामचरितमानस, जिसमें लिखा है :
१) सीता स्वयंवर में रावण ने शिव धनुष को स्पर्श तक नहीं किया था.
रावण वान छुआ नहिं चापा I
(बालकाण्ड २५५:२)
अब प्रश्न यह उठता है कि जब रावण भी वहां और दूसरे राजाओं कि भाँती सीता से विवाह करने के विचार से गया था तो उसने शिव धनुष को क्यों नहीं स्पर्श किया ?
२) सीता का हरण करने से पूर्व रावण सीता को अपनी रानी बनाने का आग्रह करता है . प्रतिउत्तर में सीता के कठोर वचन सुनकर रावण क्रोधित होता है मगर मन ही मन सीता के चरणों को वंदन कर अत्यंत प्रसन्न होता है .
सुनत वचन दससीस रिसाना I
मन महूँ चरन बंदि सुख माना II
(उत्तरकाण्ड २७:८ )
यह बात बड़ी असंगत प्रतीत होती है कि एक कामातुर राक्षस जो एक नारी का हरण करने आया है, उससे अपमानित होकर मन ही मन प्रसन्न होता है और उसके चरणों की वंदना करता है .
३) लंकाकाण्ड में मंदोदरी जब अपने पति रावण से पूछती है, कि जब राम ने धनुष तोड़कर सीता से विवाह किया तब आपने राम से युद्ध कर सीता से क्यों नहीं विवाह कर लिया (यदि आप उसे इतना ही चाहते थे)
भांजी धनुष जानकी बिआही I
तब संग्राम जितेहूँ किन ताहिं II
(लंकाकाण्ड: ३५: ६)
रावण ने इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया
४) सीता हरण के पश्चात जब जटायु ने रावण पर आक्रमण किया तो रावण ने केवल उसके पंख काटकर उसे घायल कर जीवित छोड़ दिया . कोई भी समझदार व्यक्ति जो एक नारी का अपहरण कर रहा है, अपने पीछे कोई प्रमाण या संकेत छोड़ कर नहीं जायेगा, जिससे उसके सम्बन्धियों को उसके अपहरणकर्ता का नाम पता ज्ञात हो सके. पर हुआ ऐसा ही. रावण ने जटायु को जीवित छोड़ दिया और उसने राम को बता दिया कि सीता को बलपूर्वक ले जानेवाला लंकापति रावण ही था.
५) रामायण और तुलसीदास दोनों कि ही रामायण में रावण सीता को उठाकर अपने पवन रथ पर ले जा रहा था , जहाँ सीता विलाप करती हुई अपने आभूषण फ़ेंक रहीं थीं जिससे लोगों का ध्यान उनकी ओर आकर्षित हो रहा था . वह चाहता तो हलके से प्रहार से उन्हें अचेत भी कर सकता था जिससे लोगों को फेंके गए आभूषणों से मार्ग का पता न चले, किन्तु रावण ने ऐसा नहीं किया. उन्ही को पहचानकर राम ने जाना कि रावण सीता को लंका की और ले गया गया है.
जटायु को जीवित छोड़ देना और सीता को यूँ विलापकर अपने आभूषण फेंकने का अवसर देना , यह स्पष्ट करता है की रावण स्वयं चाहता था की राम उसका पीछा करते हुए लंका तक पहुंचें.
६) लंका में रावण चाहता तो सीता को अपने किसी भी विशाल भवन में, जिसे देख कोई भी नारी प्रभावित हो जाती, रख सकता था, पर उसने ऐसा नही किया ..क्यों?
रावण जानता था की सीता ने भी चौदह वर्ष के लिए वन में रहने का व्रत लिया है . संभवत: वह सीता के उस व्रत को भंग नहीं करना चाहता था ...और इसीलिए उसे भवन में न रखकर अशोक वाटिका में रखा .
७) रामायण के सभी रचयीता इस बात से सहमत हैं की रावण ने लंका में सीता का स्पर्श नहीं किया था . वाल्मीकि रामायण के दक्षिणात्य पाठ में ( जो अत्यंत प्रचलित और व्यापक है ), यह माना गया है की रावण ने सीता को लंका ले जाकर एक माता के सामान उसकी रक्षा की थी .
लंकामानीय यत्नेन मातेव परिरक्षिता
( सर्ग ५:५४ I रामकथा : ४८८ )
८) मानस के अरण्यकाण्ड में, सीता हरण से बहुत पहले , रावण सोचता है की खर दूषण भी उसके ही सामान बलवान थे ...उन्हें भगवान के सिवा और कौन मार सकता है.
खर दूषण मोहि सम बलवंता I
तिन्ही को मारै बिन भगवंता II
( अरण्यकाण्ड २२: १ )
ततपश्चात् रावण विचार करता है यदि भगवान स्वयं अवतरित हुए हैं तो , " मैं जाकर उनसे हठपूर्वक बैर लूँगा, और प्रभु के बाणों के आघात से प्राण त्यागकर भवसागर को तर जाऊंगा ".
सुर रंजन भंजन महि मारा I
जो भगवंत लीन्ह अवतारा ई
तो मैं जाई वैर हठ करऊँ I
प्रभु सर प्रान ताजे भाव तरऊँ II
( अरण्यकाण्ड ३: २२ : २ )
मानस के अतिरिक्त और भी निम्नलिखित रामायणों में यह माना गया है कि रावण ने मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से ही सीता का हरण किया था .
१) आध्यात्म रामायण (३ I ५ I ६० II ७ I ३ I ४० II ७ I ४ I १० II )
२) आनंद रामायण (१I ११I २४४ II १I १३I १२०-१२६ )
३) पद्म पूरण ( ६ I २५५ I २६९ I ) एवं
४) भावार्थ रामायण ( ६ I २३ I )
९) यद्यपि वाल्मीकि , तुलसीदास और कम्ब कि रामायण में इसका उल्लेख नहीं है पर ऐसा माना जाता है कि रावण ने राम का निमंत्रण स्वीकार कर रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना की थी . रावण ने राम से पूछा था, " इस पूजा का प्रयोजन क्या है ?" राम ने कहा था " लंका विजय " और रावण ने आशीर्वाद दिया था "विजयी भव ".
यह सब जानने के पश्चात् यह स्पष्ट हो जाता है कि रावण ने सीता का हरण किसी काम वासना से प्रेरित होकर नहीं वरन राम के हाथों वध किये जाने के उद्देश्य से से किया था .
रावण ने इतनी प्रलयंकारी शक्तियां उत्पन्न कर दी थीं कि जो उसकी मृत्यु के पश्चात् निरंकुश होकर मानवता के लिए अभिशाप बन जातीं ...... और रावण यह जान गया था !
( क्रमश: )
गजब का विश्लेषण .... कहीं मैंने पढ़ा थ कि सीता जी रावण कि ही पुत्री थीं ..... क्या यह सच है ? शिव का धनुष तो शायद रावण ने इस लिए नहीं छुआ होगा क्यों कि वो उसके आराध्य थे ...
ReplyDeleteसंभावनाओं की कमी नहीं है ...हिन्दुतत्व में यही तो खासियत है ...हर व्यक्ति को अपनी तरह से विश्लेषण करने की छूट है .....हाँ यह मैंने भी सुना था की सीता रावण की पुत्री हैं ...और यह भी संभव है की रावण ने शिव धनुष्य इसीलिए न उठाया हो की शिव उनके आराध्य थे .....
Deleteप्रश्न अभी भी अनुत्तरित ही है,और इनको सुलझाना मुश्किल भी है,,,
ReplyDeleteबढ़िया श्रंखला,,,,
RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,
बढ़िया स्पष्टीकरण ।
ReplyDeleteआभार ।।
सार्थकता लिए उत्कृष्ट लेखन ... आभार
ReplyDeleteकल 27/06/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
''आज कुछ बातें कर लें''
पोस्ट को चुनने के लिए ..आपका बहुत बहुत आभार सदाजी
Deleteबहुत बारीकी के साथ अध्ययन किया है आपके पिताजी ने ।
ReplyDeleteपूरे १० साल तक इस विषय पर अध्ययन किया है
Deleteइतनी बारीकी से अध्यन करने के बाद ही ऐसे प्रश्न मन में उठ सकते हैं ... और जब ये प्रश्न उठे हैं उनके मन में तो जरूर इसका उत्तर भी उन्होंने इन्ही पुरानों के अध्यन से निकाला होगा ... क्रमश: का इंतज़ार है ...
ReplyDeleteजी हाँ ..उन्होंने पूरे १० साल लगा दिए रावण को समझने में ....
DeleteInteresting Series...pita jee ke paas gan ka bhandar hai.
ReplyDeleteJee haan Gopalji...he was very well read..!
Deleteनवीन दृष्टिकोण
ReplyDeleteदिलचस्प भी
तज कर जग अब चलूँ विचारा। रावण रचि निज कर आधारा॥
ReplyDeleteप्रश्न उठा मन करउ न ढीला। पुर्व रचित जानहु सब लीला॥
सादर।
शत प्रतिशत ..सब कुछ पूर्व नियोजित है .....परिस्तिथियाँ उसी को कारगर करने के लिए बनती जाती हैं...और हम माध्यम बन उसे कारगर करते जाते हाँ.......
Deleteविद्या ददाति विनयम , विनयात याति पात्रताम ,
ReplyDeleteपात्रत्वात धन माप्नोति , धनाद धर्मः ततः सुखं ..
इसका सीधा अर्थ विद्या , विनय ,पात्र, और अंत में सुख
समझें .किन्तु मूलतः अर्थ है सुख के लिए विद्या ,
बाकि सभी सीढ़ियाँ हैं .
रावण पुलस्त मुनि के नाती है ,त्रिकालग्य ,परम पंडित .वेद ज्ञाता .
शिव जी के भक्त उनके कृत्य पर संदेह क्यों ?
हमारी समझ वहां तक नहीं पहुची .त्रेता और आज का सन्दर्भ ही उनके कार्यों की प्रासंगिकता को भिन्न
कर देती है .ऐसा मेरा मत है बाकि हरी जाने .सुन्दर पोस्ट के लिए बधाई जरुरी नहीं
आपका कथन बिलकुल उचित है .....हम अक्सर अपनी सहूलितियों को सच से ज्यादा अहमियत देते हैं...तभी तो आज सुयोधन, सु:साशन, को हम दुर्योधन और दु:शासन के नाम से जानते हैं ....
Deleteरावण शिव भक्त था और राम शिव रूप .... सीता पार्वती का रूप - कथनानुसार . तो भक्त को गुरु के धनुष स्पर्श की प्रतियोगिता में बैठना ही नहीं चाहिए था , क्योंकि शिव स्वयं स्वयं के लिए थे . प्रयोजन रावण की मति का जाना और उसकी बुद्धिमता के लिए स्वर्ग - राम के द्वारा मृत्यु . यानि शिव द्वारा सज़ा .
ReplyDeleteबुद्धि , विवेक के साथ यदि क्रोधयुक्त ज़िद हो तो .... होनी कहू बिधि ना टरै
रावण ने सिर्फ अपने लिए ही नहीं ...अपितु अपने पूरे कुल के लिए यही उचित समझा ...तभी श्री राम को लंका पर आक्रमण करने के लिए उकसाया .......ताकि सभी को इस राक्षस योनिसे मुक्ति मिल जाये .....
Deleteशतप्रतिशत सहमत हु आप से
Deleteदीदी ..
नवीन दृष्टिकोण... क्रमश: का इंतज़ार है ...... आभार
ReplyDeleteबहुत बारीकी से अध्ययन किया गया है और हर प्रश्न का उत्तर हमारे धर्मग्रंथो मे ही समाया है बस समझने की जरूरत है ……………बहुत सुन्दर चल रहा है प्रसंग्।
ReplyDeleteमेरी एक बहुत पुरानी पुरस्कृत कविता है 'एकादशानन'
ReplyDeleteयहाँ डाल रही हूँ..
देखिएगा..
हमारे विचार काफ़ी मिलते हैं, इसलिए ऐसा कर रही हूँ..आप अन्यथा नहीं लेंगी ऐसी आशा है..
अक्सर मेरे विचार, बार बार जनक के खेत तक जाते हैं
परन्तु हर बार मेरे विचार, कुछ और उलझ से जाते हैं
जनक अगर सदेह थे, तो विदेह क्योँ कहाते हैं ?
क्योँ हमेशा हर बात पर हम रावण को दोषी पाते हैं ?
मेरे विचार, फिर बार बार जनक के खेत तक जाते हैं
क्योँ दशानन रक्तपूरित कलश जनक के खेत में दबाता है ?
क्योँ जनक के हल का फल उस घड़े से ही जा टकराता है ?
कैसे रावण के पाप का घड़ा कन्या का स्वरुप पाता है ?
क्योँ उस कन्या को जनकपुर सिंहासन बेटी स्वरुप अपनाता है ?
किस रिश्ते से उस बालिका को जनकपुत्री बताते हैं ?
मेरे विचार, फिर बार बार जनक के खेत तक जाते हैं
क्योँ रावण सीता स्वयंवर में बिना बुलाये जाता है ?
क्योँ उस सभा में होकर भी वह स्पर्धा से कतराता है ?
क्योँ उसको ललकार कर प्रतिद्वन्दी बनाया जाता है ?
क्योँ लंकापति शिवभक्त, शिव धनुष तोड़ नहीं पता है ?
क्योँ रावण की अल्पशक्ति पर शंकर स्वयम् चकराते हैं ?
मेरे विचार, फिर बार बार जनक के खेत तक जाते हैं
क्योँ इतना तिरस्कृत होकर भी, वह दंडकवन को जाता है ?
किस प्रेम के वश में वह, सीता को हर ले जाता है ?
कितना पराक्रमी, बलशाली, पर सिया से मुंहकी खाता है ?
क्योँ जानकी को राजभवन नहीं, अशोकवन में ठहराता है ?
क्या छल-छद्म पर चलने वाले इतनी जल्दी झुक जाते हैं ?
मेरे विचार, फिर बार बार जनक के खेत तक जाते हैं
क्योँ इतिहास दशानन को इतना नीच बताता है ?
फिर भी लंकापति मृत्युशैया पर रघुवर को पाठ पढ़ाता है
वह कौन सा ज्ञान था जिसे सुन कर राम नतमस्तक हो जाते हैं ?
चरित्रहीन का वध करके भी रघुवर क्यों पछताते हैं ?
रक्तकलश से कन्या तक का रहस्य समझ नहीं पाते हैं
इसीलिए तो मेरे विचार जनक के खेत तक जाते हैं
अदा जी बहुत उत्तम बहुत प्रभावशाली
Deleteमें पूर्णतः सहमत हु आप के सत्यकविता से
अद्भुद
बहुत सुन्दर ...भाव विभोर कर दिया आपने ......वाकई ऐसे कई सवाल हैं ...जो अनुतरित ही रह जाते हैं...क्योंकि परिस्तिथियों के वश में रहकर ......हम अक्सर सच को छिपाते हैं .....इतिहास गवाह है इस सच का ......जो जीता वही सयाना है .......इसीलिए तो कई तर्क अनबूझे ही रह जाते हैं .....और हम.....
ReplyDeleteरक्तकलश से कन्या तक का रहस्य समझ नहीं पाते हैं
इसीलिए तो मेरे विचार जनक के खेत तक जाते हैं
अभी तक इस बात पर चर्चा सुनी थी! पढ़कर अच्छा लगा!
ReplyDeleteअंकल को ये श्रद्धांजलि अर्पित कर के आपने बहुत अच्छा किया !
जैसा लिखा उस स्तर की टिप्पणी करने लायक ज्ञान तो नहीं....
ReplyDeleteमगर पढ़ कर आपकी आभारी अवश्य हूँ.....
अनु
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ReplyDeleteएक धर्म-कथा की भांति रामायण और राम चरित मानस को न तो मैंने पढा़ है और ना ही इसके कथाक्रम पर कोई चिंतन और मंथन किया है पर यह राम कथा मुझे जीवन संवारने के लिए बहुत सारे आदर्श संकेत देती रही है। कथा की मीमांसा करने का इसलिए मैं पात्र नहीं हूं। मुझे आपके पिता और आपकी विद्वता ने बहुत प्राभवित किया है। आप दोनों को नमन इस प्रसंग की व्याख्या कर एक प्रेरक मानसिकता तय्यार करने के लिए। हम में राम और रावण दोनों ही विद्यमान है - यदि हम अंतर्प्रेक्षा करें दोनों के कर्मों का सही औचित्य स्वयं उभर आयेगा।
ReplyDeleteसिक्के का दूसरा पहलू जानना हमेशा अत्यधिक रोचक और रोमांचक होता है . हमें जो दीखता है, वही सत्य लगता है...किन्तु सत्य की कितनी तो परतें होती हैं ... कौन उसकी थाह पा सकता है !! आभार इतने सुन्दर लेख के लिए सरस जी .
ReplyDeleteयह सब जानने के पश्चात् यह स्पष्ट हो जाता है कि रावण ने सीता का हरण किसी काम वासना से प्रेरित होकर नहीं वरन राम के हाथों वध किये जाने के उद्देश्य से से किया था .ramayan ke anusaar yah sahi hain ...
ReplyDeleteReally nice blog post aapki lekhni ki taarif kabile taarif hai
ReplyDeleteरावन बान छुआ नहिं चापा ...
ReplyDeleteइसका अर्थ यह नहीं कि उसने शिव-धनुष स्पर्श नहीं किया क्योंकि वह स्वयंवर में भाग लेने न आया था
बल्कि इसका अर्थ तो यह है कि रावण धनुष में प्रत्यंचा चढा कर अपने बाण को नहीं
छुआ सकता था इसलिए नहीं छुआ पाया और दबे पांव भाग गया ....
रावण स्वयम्वर में धनुष उठाने में असमर्थ था और चुपके से भाग गया इसके प्रमाण -
नृप भुजबल बिधु सिवधनु राहू। गरुअ कठोर बिदित सब काहू॥
रावनु बानु महाभट भारे। देखि सरासन गवँहिं सिधारे॥1॥ दोहा स. २४९
भावार्थ:-राजाओं की भुजाओं का बल चन्द्रमा है, शिवजी का धनुष राहु है, वह भारी है, कठोर है, यह सबको विदित है। बड़े भारी योद्धा रावण और बाणासुर भी इस धनुष को देखकर गौं से (चुपके से) चलते बने (उसे उठाना तो दूर रहा, छूने तक की हिम्मत न हुई)॥1॥
Great write-up! Latest startup news news updates Startup Bazzar
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