कितना खूबसूरत खेल,
सबकी परिधि तय-
सबकी चालें परिभाषित-
ऊंट टेढ़ा चलता है-
हाथी सीधा-
घोड़ा ढाई घर
और प्यादे की छलांग बहुत छोटी
सिर्फ एक खाने भर की
और शातिर दिमाग इन्ही चालों से
तय करते हैं
अंजाम खेल का ..!
काश ! यह खेल तक ही सीमित रहता ..
लेकिन अब
यह जीवन शैली बन गया है -
और जीते जागते इंसान
बन गए हैं मोहरें -
सत्ता करती है सुनिश्चित
किसे हाथी बनाना है
और किसे ऊंट या घोडा...
और आम आदमी
उनकी चालों से बेखबर
उनकी बिछायी बिसात पर
उनकी शै और मात का बायस बन जाता है ...!!!!
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,आभार।
ReplyDeleteबढ़िया कविता
ReplyDeleteबहुत प्रभावी ... आज का सार्थक चित्रण शतरंज के बिम्ब के साथ ...
ReplyDeleteलाजवाब रचना ...
शतरंज के बिम्ब के साथ बहुत ही सुन्दर और प्रभावी प्रस्तुति,
ReplyDeleteसटीक विश्लेषण!
ReplyDeleteकाश! स्थिति बदले!
शंतरज हमेशा से राजनीति को परिभाषित करता है बहुत सुन्दरता से पिरोया है आपने सभी प्यादों को |
ReplyDeleteआपने लिखा....
ReplyDeleteहमने पढ़ा....और लोग भी पढ़ें;
इसलिए बुधवार 07/08/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in ....पर लिंक की जाएगी.
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है .
धन्यवाद!
सत्य ही। ईश्वर के हाथ के मोहरे होने से इनकार करे , मगर इंसान खुद बैठे है सारी चाले हाथ लिए !
ReplyDeleteसरस दरबारी जी आपने आज के जीवन में रच बस गए राजनैतिक खेल को बहुत ही सीधे सादे सरल और सहज तरीके से शतरंज के शह और मात से समझा दिया गजब का बांकपन लिए अनुभूति
ReplyDeleteसुन्दर ,सटीक और प्रभाबशाली रचना। कभी यहाँ भी पधारें।
ReplyDeleteसादर मदन
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
आम आदमी
ReplyDeleteउनकी चालों से बेखबर
उनकी बिछायी बिसात पर
उनकी शै और मात का बायस बन जाता है ...!!!!
सार्थकता लिये सटीक अभिव्यक्ति
सटीक और मौजू
ReplyDeleteसत्ता करती है सुनिश्चित
ReplyDeleteकिसे हाथी बनाना है
और किसे ऊंट या घोडा...
और आम आदमी
शतरंज के माध्यम से राजनीति का सुंदर विश्लेषण ... यथार्थ को कहती सटीक रचना ।