बे वजूद रिश्ते
न जाने कितने रिश्ते
अनाम रह जाते हैं
जीते हैं...बिना वजूद के
यादों में-
टंगे रहते हैं दीवारों पर , तस्वीरों की भीड़ में -
मरते नहीं कभी
न कभी ख़त्म होते हैं
बस , कभी कभी
किसी आह....
किसी सिसकी.....
या कोरों में ठिठकी
नमी में सांस ले लेते हैं
यदा कदा ..!!!!
किरचें
अभी अभी कुछ दरका
पर आवाज़ नहीं हुई
मैंने टुकड़े बुहार दिए
लेकिन कुछ किरचें
दरारों..
अनदेखे कोनों में छिपी रह गयीं -
जो अचक्के में भेदकर
लहू लुहान कर गयीं
भीतर तक..!!!!
रिश्ते और किरचे से हमेशा सावधानी रखने की जरुरत है
ReplyDeletelatest post नेता उवाच !!!
latest post नेताजी सुनिए !!!
बहुत ही उम्दा क्षणिकाए ,,,बधाई
ReplyDeleteRECENT POST : जिन्दगी.
खूबसूरत क्षणिकाएं ... बधाई !!
ReplyDeleteरिश्ता है तो कोई तो नाम भी होगा .... ...यादों में हैं ,तो वजूद तो है ही .....हाँ यादें ज़रूर आँख नाम कर जातीं हैं यदा कदा......ये जीवन है .....बहुत सुंदर लिखा है सरस जी ...........!!
ReplyDeleteकिरचों का दर्द जैसे महसूस हो रहा है ........बहुत गहन अभिव्यक्ति ...!!
bahut hi shandaar baat.............kircho sy dard to hota hi hai............
ReplyDeleteयादें रहती हैं आसपास ... रिश्ते सांस लेते हैं ...
ReplyDeleteऔर किरचें लहुलुहान करने पर भी चुभी रहती हैं उम्र भर ....
umda post
ReplyDeleteबहुत सुन्दर क्षणिकाएँ है !
ReplyDeletewaah bahut baehtreen !!
ReplyDeleteवाह बहुत बढ़िया । गहन, सुन्दर , शानदार |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteमन की गहरी सतहों में क्या-क्या छिपा है कौन जाने !
ReplyDeleteआह....चुभा कुछ..मगर अच्छा लगा
ReplyDeleteबेवजूद रिश्ते और किरचे सदा कसकते हैं आपने ज़िन्दगी को करीब से महसूस किया है
ReplyDeleteरिश्तों और किरचो की चुबन ....भावुक अहसास !
ReplyDeleteबेहतरीन रचना ...
ReplyDeleteबुहारने के बाद भी रह ही जाती हैं किरचें ... बहुत भावप्रवण क्षणिका ...
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