लफ्ज़ तनहा नहीं होते
किसी न किसी एहसास से जुड़े रहते हैं हरदम
कभी छिपी होतीं हैं सरगोशियाँ
कुछ पाक़ लम्हों की
कभी वाबस्ता होती हैं यादें
मौसमी फुहारों की,
जब भीगे थे तन मन तेज़ बौछारों में
और एहसासों की जुम्बिश से
सिहर उठे थे लफ्ज़..!!
लफ्ज़ थिरके भी थे ...
जब ऊँची ऊँची पींगों के साथ
झरते थे गीत सावन के -
और लफ़्ज़ों ने ओढ़ ली थी मायूसी
जब बेवजह पलटकर तुम चले गए थे
उन एहसासों को रौंद .....
आज भी सहमे से लफ्ज़ ताकते हैं
अपने खोहों से -
शायद कोई ख़ुशी इस राह से फिर गुज़रे
और उन्हें अपनी खोई आवाज़ मिल जाये !!!
न लफ्ज़ तनहा रहते हैं... न रहने देते हैं, ख़ुशी को आवाज़ भी मिलेगी!
ReplyDeleteआपकी यह रचना कल बुधवार (07
ReplyDelete-08-2013) को ब्लॉग प्रसारण : 78 पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
हार्दिक आभार सरिताजी ...:)
Deleteसही है, लफ्ज़ का डोर किसी भाव से जुडा रहता है
ReplyDeletelatest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!
latest post,नेताजी कहीन है।
.
आज भी सहमे से लफ्ज़ ताकते हैं
ReplyDeleteअपने खोहों से -
शायद कोई ख़ुशी इस राह से फिर गुज़रे
और उन्हें अपनी खोई आवाज़ मिल जाये !!!
Aapne mano mere moogse alfaaz chheen liye!
क्षमाजी ....:)
Deleteबढिया, बहुत सुंदर
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा लफ़्ज़ों में जज़्बात छुपे होते हैं |
ReplyDeleteबहुत बढ़िया..सुन्दर रचना..
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दी...
लफ़्ज़ों को खोयी आवाज़ मिलने की उम्मीद सदा बनी रहती है...सच!!!
सादर
अनु
लफ़्ज़ों की खोई आजादी की तलाश ही उन्हें जिन्दा भी रखती है !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया !
बहुत खूब ... वैसे तो फफ्ज़ खुद ही एक गूँज होते हैं ... तन्हा नहीं रहते ... पर साथी की तलाश में जरूर रहते हैं ... शायद तभी तो संवाद भी होता है ...
ReplyDeleteभावमय रचना ...
चाहे कुछ भी हो, लफ्ज हमेशा अपनी ताकत के साथ मौजूद रहते हैं। . …. बेहतरीन सरसजी
ReplyDeleteलफ्ज सहमें तो हो सकते हैं पर उनकी आवाज़ कभी नहीं खोती .... बहुत प्यारी नज़्म है ।
ReplyDeleteरचना चुनने के लिए ह्रदय से आभार ...!!!
ReplyDeleteवाह बहुत लाजबाब रचना ,,,
ReplyDeleteRECENT POST : तस्वीर नही बदली
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteलफ्ज़ थिरके भी थे ...
ReplyDeleteजब ऊँची ऊँची पींगों के साथ
झरते थे गीत सावन के -
और लफ़्ज़ों ने ओढ़ ली थी मायूसी
जब बेवजह पलटकर तुम चले गए थे
उन एहसासों को रौंद .....
शब्द ही एहसास को अभिव्यक्त कर स्थापित या अमान्य कर जाते हैं अतः आपने सच ही कहा
शायद कोई ख़ुशी इस राह से फिर गुज़रे
और उन्हें अपनी खोई आवाज़ मिल जाये !!!
बहुत खूब !
ReplyDeleteशायद कोई ख़ुशी इस राह से फिर गुज़रे
ReplyDeleteऔर उन्हें अपनी खोई आवाज़ मिल जाये !!!
शब्द अपनी अभिव्यक्ति चाहते हैं ....सरस सावन झरने दीजिये सरस जी ...!!सुंदर रचना ...!!
wah!awaz jaroor milegi...sundar...
ReplyDeleteलफ्ज़-लफ्ज़
ReplyDeleteकभी प्यार
कभी क्रोध
कभी सुगंध
कभी बूंद-बूंद
ऐसा ही मधुर सा
है ये संसार ||
सरस जी बहुत ही खूबसूरत रचना है । लफ्जों को बहुत ही खूबसूरती से बयां किया है आपने। आप ऐसी ही सुन्दर रचनाओं को शब्दनगरी पर भी लिख सकते हैं जो की पूर्णतयः हिंदी में है । वहां पर भी हैं पथ्थर के लफ्ज़ मिटा ना पाओगे जैसी रचनाएं पढ़ व् लिख सकते हैं।
ReplyDelete