आज सवेरे की ही
बात है , पापा
नौकरानी से बात
कर रहे थे
," हमने तुम्हे कल शाम
को देखा था
. वहीँ खुसरो बाग़ में अपने
पति के साथ
टहल रही थीं
".
" हाँ
पापाजी गए थे
...कभी कभी समय
निकालकर चले जाते
हैं "
बात बहुत साधारण
थी . शायद मैं
भी सुनकर अनसुना
कर देती , लेकिन
सुशीला (नौकरानी) के लहजे
में अपराध बोध
मुझे कचोट गया.
अरे घूम रही
थी ...तो क्या
हुआ.... अपने पति
के साथ अपनी
व्यस्त दिनचर्या में से
कुछ समय निकालकर
घूम रही थी
...उस में शर्म
कैसी ....और अपराध
बोध कैसा मानो
कोई चोरी पकड़ी
गयी हो..!
हम लोगों में कितने
लोग ऐसे हैं
जो इस बात
को अहमियत देते
हैं, अपनी व्यस्ततताओं
को परे धकेल
एक दूसरे के
लिए समय निकाल
पाते हैं ..?
आंख खुलते ही वही
रोज़ का सिलसिला,
बच्चों का टिफिन
बनाना , स्कूल भेजना, घर
के काम निबटाना,
खाना बनाना, पति
को ऑफिस भेजना,
खुद दौड़ते भागते
ऑफिस जाना - बसों
ट्रेनों में धक्के
खाना (और ज़रा
समृद्ध हुए तो
अपनी कार से
जाना )..
फिर लौटकर वही खट
राग ...बच्चों की पढ़ाई,
शाम के काम...
इस सब में
कहीं "हमें इतना
समय एक दूजे
के साथ गुज़ारना
है " क्या इसका
का भी समावेश
होता है..?
हमारी ज़िन्दगी में वह
'समय' या वह
'स्लॉट' क्या ज़रूरी
नहीं है …?
ज़रा सोचिये, बच्चे बड़े
होकर अपने अपने
जीवन में व्यस्त
हो जाते हैं
...पढ़ाई, यार दोस्त
और फिर शादी
. उसके बाद होता
है उनका अपना
परिवार, पती/पत्नी,
बच्चे ...ऐसे में
जब वे हमारे
लिए समय नहीं
निकाल पाते तब
हम सोचते हैं
'हमने तो सारी
ज़िन्दगी अपने बारे
में कभी नहीं
सोचा...और आज
इनके पास हमारे
लिए समय ही
नहीं'.
उम्र के इस
पड़ाव पर जब
हम सबको 'सेटल'
कर देते हैं
तो पलटकर देखने
पर महसूस होता
है ...हम 'कितने 'अन्सेटलड'
हो
गए हैं. साथ
गुज़ारा हुआ समय
हमारी पूँजी होता
है. यह समय
हमारे रिश्तों को
मज़बूत करता है
, विश्वास बढ़ाता है. यह
समय एक आश्वासन
है की 'कुछ
नहीं बदला'...."आज
भी मुझे तुम्हारी
उतनी ही ज़रुरत
है , जितनी पहले
दिन थी ".
इसलिए ज़रूरी है की
पती पत्नी आपस
में कुछ पल,
कुछ घंटे , कुछ
समय साथ साथ
बिताएं - वरना आप
कैसे जान पाएंगे
की रिश्तों में
अब भी वही
संवेदनाएं ..वही एहसास...एक दूसरे
के लिए वही
ललक बाकी है
...!
पति पत्नी दोनों को यह बात समझने की जरुरत है कि अंतिम समय तक वही एक दुसरे के साथ दे सकते है और कोई नहीं.
ReplyDeletelatest postअनुभूति : वर्षा ऋतु
latest दिल के टुकड़े
पति पत्नी दोनों एक दुसरे के पूरक है
ReplyDeleteबहुत अच्छी सुंदर अभिव्यक्ति,,,
RECENT POST: एक दिन
बात तो सच है पर ये बात दोनों की समझ में आये तब न ....एक उम्र के बाद तो साथ बैठते ही झगडा सुरु हो जाता है ... पर इसमें भी एक मजा होता है शायद यही जिन्दगी है
ReplyDeleteमेरी पत्नी की इच्छा होती है कि शाम को खाने के बाद थोड़ी तफरीह करें लेकिन घर में संकोच होता है अजीब स्थिति है अब भी २१ वीं सदी में भी
ReplyDeleteपति और पत्नी दोनों ही एक गाड़ी के दो पहिए होते है..
ReplyDeleteएक दूसरे का साथ एक अनकहा विश्वास बनाता है ।
ReplyDeleteरिश्तों के लिए समय निकलना बहुत ज़रूरी है ।
ReplyDeleteपिछले बहुत दिनों से मैं भी इसी झुंझलाहट में थी... पर ये लेख पढकर उन्दर से अच्छा महसूस हुआ... नयी ऊर्जा मिली है। धन्यवाद
ReplyDeleteआज के समयानुसार तो ये और भी ज्यादा जरूरी है .. क्योंकि जीवन की अधिकाँश संध्या वेला आपस में ही गुजारनी है ... ऐसा न हो की विषय खत्म हो जाएं ...
ReplyDeleteपति पत्नी एक गाड़ी के दो पहिए होते हैं...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,,
ReplyDeletekhubsurat bhaavo ki post....
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति आदरणीया -
ReplyDeleteशुभकामनायें -
सच कहा आपने गुज़रे हुए पल कभी नहीं आते, लेकिन साथ गुज़ारे पल को खूबसूरत यादों के रूप में हम जीवन भर जीते हैं ...
ReplyDeleteसहमत हूँ आपकी बातों से दीदी ....पर आज इस भाग दौड़ वाली जिंदगी में किसके पास इतना वक्त है कि वो साथ रहें ....खास कर नौकरी-पेशा जोड़े तो हमेशा ही अलग अलग देखे जा सकते हैं ||
ReplyDeleteआज 29/07/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत सही ...भागमभाग के बीच कम से कम पति-पत्नी जितनी देर साथ रहते हैं, प्यार से रहे तो प्यार में दरार नहीं पड़ती वर्ना खटपट चली तो आखिरी दम तक चलता रहता है ...
ReplyDeletei agree with u sarasjee... nice post..
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