कड़वाहटों के बीच
तुमने अक्सर कहा है मुझसे
अपने आप को मेरी जगह रखकर देखो !
और मैंने रक्खा भी -
तुम्हारी वेदना समझी भी !
तुम्हारी उलझनें बांटी भी !
लेकिन क्या तुमने कभी कोशिश की ...
मैं जानती हूँ-
तुम्हारे लिए यह मुश्किल होगा !
क्योंकि उसके लिए चाहिए -
एक नारी ह्रदय -
उसकी संवेदनाएं -
वह दर्द -
कहाँसे लाते वे नर्म अहसास -
जो एक झिड़की से वाष्प बन
उपेक्षा की ठण्ड से बरस पड़ते हैं -
वह इक्षाएं -
जो बड़ी आतुरता से इंतज़ार करतीं
तुम्हारे माथे से सिलवटों के हटने का
और फिर अश्मिभूत हो जाती हैं
तह दर तह दबती ...
वह गदराई खुशियाँ
जो ढूँढतीं अपना अस्तित्व
तुम्हारी हर ख़ुशी में-
वह मन जो मान लेता
हर वह गलती -
जो तुम्हारे अहम् को पोस्ती है -
क्या यह सब है -
तुम्हारे पास!!!
फिर कैसे कहूं तुमसे -
अपने आप को मेरी जगह रखकर देखो ..!!!!
बढ़िया ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति ...
ReplyDeleteआप भी पधारें
ये रिश्ते ...
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति ! परन्तु यह भी जोड़ना चाहूँगा कि हर नारी में कुछ पुरुष के गुण होते हैं और हर पुरुष में कुछ नारी के गुण होते हैं.यही एक दुसरे को समझने में मदत करते है .
ReplyDeletelatest post मोहन कुछ तो बोलो!
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GAHRI BAAT..
ReplyDeleteतुम्हारी जगह ....... कभी तुम मेरी जगह आ सको तो सच शायद साफ़ हो जाये
ReplyDeleteभाव मन ... ये सच है की स्त्री का स्थान पुरुष के इये लेना आसान नहीं ... कोमल भावनाएं ... दर्द को पी लेने की क्षमता नारी मन से ज्यादा कहीं नहीं ... फिर पुरुष उसका स्थान कैसे ले सकता है ...
ReplyDeleteक्या यह सब है -
ReplyDeleteतुम्हारे पास!!!
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इसका कोई जवाब किसी के पास न तो पहले था ..और न आज है ...सटीक रचना में उम्दा सवाल
कड़वाहटों के बीच
ReplyDeleteतुमने अक्सर कहा है मुझसे
अपने आप को मेरी जगह रखकर देखो !
और मैंने रक्खा भी -
तुम्हारी वेदना समझी भी !
तुम्हारी उलझनें बांटी भी !
लेकिन क्या तुमने कभी कोशिश की ...
क्या यह सब है -
तुम्हारे पास!!!
फिर कैसे कहूं तुमसे -
अपने आप को मेरी जगह रखकर देखो ..!!!!
अहम् नहीं शायद हम सब स्व को छोड़कर जी नहीं पाते . किसी भी शब्द को छोड़कर अर्थों को पूरा कर पाना संभव नहीं बहुत ही सुदर मनोभावों को प्रदर्शित करने वाली गहरी अर्थ पूर्ण रचना के लिए अभिवादन स्वीकारें
वह इक्षाएं -
ReplyDeleteजो बड़ी आतुरता से इंतज़ार करतीं
तुम्हारे माथे से सिलवटों के हटने का
और फिर अश्मिभूत हो जाती हैं.
कितनी सहजता से दिल के भाव उकेरे हैं .
सच तो है, हम नहीं कह सकते कि अपने आप को मेरी जगह रखकर देखो.
बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति | भावनाओं का सटीक चिर्त्रण | आभार और बधाई |
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बहुत गहराई से स्त्री मन की पीड़ा को शब्द दिये हैं .....स्वयं की पीड़ा कोई और कहाँ समझ पता है .....तभी तो कभी कभी जीवन एकाकी सा लगता है ...!!
ReplyDeleteसशक्त अभिव्यक्ति ....
कब किसने रखा है स्वयं को किसी की जगह पर ।
ReplyDeleteसटीक और अर्थपूर्ण भाव.....
ReplyDeleteहर शब्द की अपनी एक पहचान बहुत खूब क्या खूब लिखा है आपने आभार
ReplyDeleteये कैसी मोहब्बत है
बहुत बढ़िया ...
ReplyDeleteसहज़ सरल शब्दों में .. जीवन की सच्चाई सी यह अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसादर
बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको .
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या कहने
अर्थपूर्ण कविता. नारी ह्रदय से संवेदनशील कोई ह्रदय नहीं. ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी-
ReplyDeleteमैं जानती हूँ-
तुम्हारे लिए यह मुश्किल होगा !
क्योंकि उसके लिए चाहिए -
एक नारी ह्रदय -
उसकी संवेदनाएं -
वह दर्द -
कहाँसे लाते वे नर्म अहसास -
जो एक झिड़की से वाष्प बन
उपेक्षा की ठण्ड से बरस पड़ते हैं -
अपनी अपनी जगह हम अपने अपने हिस्से का दुःख उठाते हैं........
ReplyDeleteनारी ह्रदय को जानना और जीना इतना सरल नहीं. मुमकिन ही नहीं ऐसा कहना ...
ReplyDeleteक्या यह सब है -
तुम्हारे पास!!!
फिर कैसे कहूं तुमसे -
अपने आप को मेरी जगह रखकर देखो ..!!!!
बहुत भावपूर्ण रचना, बधाई.
कुछ बातें 'असंभव ' की श्रेणी में आती हैं..अति सुन्दर रचना..
ReplyDeleteजीवन के यथार्थ की बहुत सटीक व प्रभावी अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteबहुत गहन अभिव्यक्ति .... हर बात संभव नहीं होती ॥
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