देख आइने में
अक्स अपना सोचता
हूँ मैं
बदला है हालातों
ने कितना इस
सियासत में .
देखे थे फूल
झड़ते सदा जिनकी
बोली से
हाथों में उनके
संग देखे इस
सियासत में
दिलों में कौनसे
ये पौधे उठ
खड़े हैं आज
रिसता है हर
एक फूल जिसका
इस सियासत में
भीड़ों में उठते
हाथों की बंद
मुट्ठियों को देख
ज़ुल्मों की इन्तहा
को जाना इस
सियासत में
परिंदों को दर
बदर उड़ता देखते
रहे
उजड़े न जाने
कितने चमन इस
सियासत में
बहुत सरस रचना | भावपूर्ण अभिव्यक्ति | आभार
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
भीड़ों में उठते हाथों की बंद मुट्ठियों को देख
ReplyDeleteज़ुल्मों की इन्तहा को जाना इस सियासत में ...
बहुत खूब ... पर लगता है अब इन मुट्ठियों को चलाने का वक़्त भी आने ही वाला है ... लाजवाब भाव ...
बहुत शानदार उम्दा गजल ,,
ReplyDeleterecent post: बसंती रंग छा गया
भीड़ों में उठते हाथों की बंद मुट्ठियों को देख
ReplyDeleteज़ुल्मों की इन्तहा को जाना इस सियासत में
बहुत बढ़िया आंटी!
सादर
गहन और उत्कृष्ट रचना ....
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी ...
शुभकामनायें सरस जी ...
बहुत सुन्दर |
ReplyDeleteदेखे थे फूल झड़ते सदा जिनकी बोली से
ReplyDeleteहाथों में उनके संग देखे इस सियासत में
वाह! खूबसूरत भाव.
सुन्दर प्रस्तुति आदरेया -
ReplyDeleteशुभकामनायें ||
खूबसूरत भाव!
ReplyDeletelatest postअनुभूति : प्रेम,विरह,ईर्षा
atest post हे माँ वीणा वादिनी शारदे !
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♥बसंत-पंचमी की हार्दिक बधाइयां एवं शुभकामनाएं !♥
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देख आइने में अक्स अपना सोचता हूँ मैं
बदला है हालातों ने कितना इस सियासत में
वाकई इस सियासत ने बहुत नुकसान पाहुंचाया है ...
आदरणीया सरस जी
विचारणीय सुंदर नज़्म के लिए आभार और साधुवाद !!
संपूर्ण बसंत ऋतु सहित
सभी उत्सवों-मंगलदिवसों के लिए
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
राजेन्द्र स्वर्णकार
वाह..
ReplyDeleteबहुत अच्छी ग़ज़ल सरस जी....
सादर
अनु
परिंदों को दर बदर उड़ता देखते रहे
ReplyDeleteउजड़े न जाने कितने चमन इस सियासत म
बहुत ही खुबसूरत भाव पूर्ण रचना मन को छूती
सच्ची...सार्थक रचना भाभी! बहुत अच्छी!
ReplyDelete~सादर!!!
बहुत सुन्दर.......वक़्त मिले तो जज़्बात पर भी आएं ।
ReplyDeleteजो न हो कम है इस सियासत में..
ReplyDeleteसार्थक रचना सरस जी
ReplyDeleteपरिंदों को दर बदर उड़ता देखते रहे
उजड़े न जाने कितने चमन इस सियासत में ...
देखते रहे ... वक्त गुजरता रहा
बहुत खूब सरस जी ... नजाने क्या क्या गुल खिलाये इस सियासत ने...न जाने कितने चमन उजाड़े इस सियासत ने!
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