Tuesday, July 24, 2012

.........आज कुछ बातें कर लें ..( ७ )





रावण:    बैठ गए राम सिंहासन पर
             हो गया उनका राज्याभिषेक;
             तो रघुवंश के
             अन्य राजाओं की भाँती
             वह भी राज्य करके
             चले जायेंगे स्वर्ग,
             लुप्त हो जायेंगे
             इतिहास की धूल में;
             और शेष रह जायेगा वह महान कार्य
             जिसके लिए जन्म हुआ है
             दशरथ पुत्र रामका .
कैकेयीकौनसा महान कार्य ?
             किसलिए जन्म हुआ है
             मेरे प्रिय पुत्र राम का?

अब आगे  .......

रावण  :  धर्म की रक्षा के लिए
            पापियों के विनाश के लिए.
            देवी मैं मांग रहा  हूँ
            राम का वनवास
            लोक कल्याण के लिए.
            जो नहीं हो पायेगा
            यदि संपन्न हो गया
            राम का राज्याभिषेक .

कैकेयी : कुछ समझ में नहीं रहा .
            जाने क्या कह रहे हो तुम .

रावण  : इससे अधिक समझाने का
             अवसर है अभी
             समझा सकता हूँ मैं.
            बस पूछना चाहता हूँ
            केवल एक प्रश्न .
            मुझे दान मिलेगा या नहीं,
            रघुकुल की रानी कैकेयी
      अपना वचन पूरा करेंगी
            अथवा नहीं ?

कैकेयी : मेरा वचन अवश्य पूरा होगा .
            मिलेगा तुम्हे वही दान
            जो तुमने माँगा है .
            रखकर अपने ह्रदय पर पत्थर
             मैं दिलाऊंगी वनवास
             अपने परम प्रिय पुत्र राम को .

             राम के मस्तक पर
             राजा का तिलक नहीं
             कैकेयी के माथेपर
             लगेगा कलंक का टीका ;
             नहीं दिखा सकेगी वह
             किसी को अपना मुख .

     (यह कहकर कैकेयी जाने लगती है पर रावण की आवाज़ सुनकर रुक जाती है . उसकी पीठ रावण  की ओर है

रावण  : महारानी कैकेयी ,
            आज किया है आपने
            बहुत बड़ा उपकार
            राम पर, मानवता पर
            आने वाले युगों पर .
            कौन जान पायेगा
            आपका योगदान
            विश्वकल्याण  में?
            कौन समझ पायेगा
            महानता  आपकी 
            और मेरा उद्देश्य
            इस सबके पीछे ?   

      ( रावण के अधरों पर एक भेदभरी मुस्कान है. वह बोले जा रहा है )

रावणगुप्त है वह महादान
             जो दिया है आपने .
             राम वनवास का कारण
             गुप्त ही रहना चाहिए,
             गुप्त ही रहेगा सदा .
             पूजनीया हैं आप.

        ( रावण कैकेयी को हाथ जोड़कर प्रणाम करता है . भेदभरी मुस्कान अब भी उसके चेहरे पर है.   ऊपर से पुष्पों की वर्षा हो रही है

यह दृश्य और इसी प्रकार कई और संवाद, रावण -मारीचि के बीच, रावण- विभीषण के बीच, नाटककार ने, सूत्रधार द्वारा, और  नट और नटी के बीच संवादों के माध्यम से   दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत किये हैं .....यह संवाद दर्शकों के मन में उठ रहे सवाल हैं जिनका धीरे धीरे हर दृश्य के बाद समाधान होता जाता है ....

ऐसा ही एक दृश्य रावण और विभीषण के बीच है ....
विभीषण रावण को सीता को लौटाकर राम से संधि करने की सलाह  देता है तो रावण विभीषण के सीने पर लात मारकर उसे भरी सभा में अपमानित करता है

उसके पश्चात रावण विभीषण के घर जाकर उससे मिलता है ......

रावण को देखकर विभीषण रोष में खड़ा हो जाता है और कहता है :

विभीषणशेष रह गया है क्या
                करना कुछ और अपमान
                जो यहाँ चले आये?
                या वध करना चाहते हो मेरा ?
                कर लो, वह भी कर लो .
                खड़ा हूँ तुम्हारे सम्मुख
                किसी को पता नहीं लगेगा .

रावण  :     नहीं आया हूँ यहाँ
               करने तुम्हारा वध
               या तुम्हारा अपमान .
               बस आया हूँ बांटने तुमसे
               जो नहीं बाँट सकता
               किसी और के साथ .

विभीषण : बाँटने?
              क्या बाँटने ?

रावण :    अपना एक दुःख
              अपना एक सुख

विभीषण : कौनसा दुःख?
               कौनसा सुख ?

रावण :    अपने शुभचिंतक
              अपने प्रिय भाई का
              भरी सभा में
              अपमान करने का दुःख .
              उसके  लिए हाथ जोड़कर
              मांगता हूँ क्षमा तुमसे .

विभीषण : सबके सामने करना अपमान
               अकेले में माँगना क्षमा
               यह कैसी नीति है तुम्हारी ?

रावण :    यह नीति नहीं विभीषण
              यह राजनीति है .
              जो करनी पड़ती है .
              किसी किसी रूप में
              हर राजा को.
              राज चलाने के लिए
              चाहिए ह्रदय देवता का
              और मस्तिष्क दानव का .
              तुम भी सीख लो सब
              काम आयेगा तुम्हारे .

              ( विभीषण उसकी बात अनसुनी कर , जैसे अभी भी रुष्ट हो, रावण से पूछता है   )

विभीषण : दुःख तो बता दिया
                सुख भी बता दीजिये .

रावण :     लंका दहन का सुख .

विभीषण : क्या कहा आपने ?

रावण :     क्या कहा आपने
               लंका दहन का सुख ?
               लंका जल गयी
               और आप सुखी हैं ?

रावण :   रावण को जानना
              बहुत कठिन  है विभीषण.
              संभवत: आने वाले युग भी
              नहीं समझ सकेंगे उसे .
              क्योंकि वह करता कुछ और है
              और दिखाता कुछ और .
              कभी कभी तो मेरा ह्रदय भी
              नहीं जान पाता
              क्या है मेरी योजना ,
              क्या सोचा है मेरे मस्तिष्क ने .
              चाहे वह राम का वनवास हो
              सीता का हरण हो
              अथवा तुम्हारा अपमान;
              यह सब कड़ियाँ हैं मेरी गुप्त योजना की .

( क्रमश:)


 



24 comments:

  1. बहुत सुन्दर....
    आपसे बातें करना बहुत भा रहा है....
    सस्नेह
    अनु

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    1. ख़ुशी हुई ..यह जानकार कि आपको भा रहा है ...सच मानिये हमें लिखने में भी उतना ही मज़ा आ रहा है ...आभार !

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  2. अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी .
    आभार .

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  3. अनूठा प्रयोग है ... नया दृष्टिकोण दिया है इस कथा को ...
    रोचकता बरकरार है ... आगे की प्रतीक्षा रहेगी ...

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    1. ख़ुशी हुई जानकार कि यह प्रयोग आपको पसंद आया .....यह बहुत रिसर्च और मेहनत की उपलब्धि है

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  4. इन बातों में कितनी सार्थकता है ... आभार

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    1. इस में लिखे हर तथ्य का साक्ष्य शुरू में ही लिखा था ...यह कई भाषाओँ में लिखे रामायण के ग्रंथों से उठाये हुए तथ्य हैं...और उसमें नाटककार कि अपनी कल्पना कि उड़ान

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  5. रावण एक बहुत बड़ा विद्वान था, ऐसा अक्सर सुना करता था ...
    आज पढ़ भी रहा हूँ ...
    और कैकयी और रावण संवाद से कैकयी का जो रूप सामने आता है, वह भी
    फिर से सोचने को विवश करता है ...

    आपका बहुत बहुत शुक्रिया !!
    अगले भाग का इंतजार रहेगा ....

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    1. आपका इतने ध्यान और रूचि से लेख को पढना अच्छा लगा ...आभार !

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  6. एक नए दृष्टिकोण से रामायण कि समीक्षा..... बहुत रोचक लगी...... आगे भी प्रतीक्षा रहेगी.

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  7. अगली कड़ी का इंतजार हर हर महादेव

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  8. sahi bat hai ravan ko janna itna aasan kahan tha ......

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    1. हम जितना ही रावण के विषय में पढ़ते हैं ...जिज्ञासा बढ़ती जाती है

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  9. मेरा वचन अवश्य पूरा होगा .
    मिलेगा तुम्हे वही दान
    जो तुमने माँगा है .
    रखकर अपने ह्रदय पर पत्थर
    मैं दिलाऊंगी वनवास
    अपने परम प्रिय पुत्र राम को .

    राम के मस्तक पर
    राजा का तिलक नहीं
    कैकेयी के माथेपर
    लगेगा कलंक का टीका ;
    नहीं दिखा सकेगी वह
    किसी को अपना मुख ... सच में स्तब्ध हूँ , इस प्रसंग से सर्वथा अनभिज्ञ थी

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    1. हाँ रश्मिजी प्रसंग ही स्तब्ध कर देने वाला है ...दरअसल हम वही जानते हैं जो हमें बताया जाता है ...और जो बताया जाता है ...वह ज़रूरी नहीं सच हो ...बहुत कुछ परिस्तिथियों के तहत होता है .....वरना आप स्वयं सोचिये ..सुयोधन आर सु:शासन ..दुर्योधन और दू:शासन कैसे हुए ...यह तो केवल एक छोटीसी बानगी है ....

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  10. Saras ji pehle to bauhat bauhat abhar mere blog par aane ke liye...jo taarefein aur hausla afzaai aapne ki hain...they actually MADE MY DAY....thanks a tonne for that :) :)

    Now coming to your writing....bauhat sunder vartalap likha hai aapne...saral aur sashakt...sab upar waale ki hi leela hai...ramayan ho ya mahabharat...sab usi ke khel hain :) :)

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  11. सुन्दर....कुछ अलग सा पढने को मिल रहा है।

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  12. राम कथा एक अलग रूप में रावण के दृष्टिकोण से. बहुत अच्छी लगी, बधाई.

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  13. बिल्कुल ही अलग अंदाज़ में आपने व्याख्या की है पौराणिक कथा की।
    सब राजनीति और कूटनीति की बाते हैं। देखें आगे होता है क्या?

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  14. अद्भुत ....!!

    सही कहा आपने हमें जो बताया जाता है ..वह ज़रूरी नहीं सच हो ....!!

    एक अलग दृष्टिकोण सामने रखने के लिए बधाई...!!

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  15. रामायण कि समीक्षा...एक अलग दृष्टिकोण के साथ सुन्दर और रोचक पोस्ट..आभार

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  16. ek alag soch aur prastutikaran.....

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