अब जब रावण को लेकर वस्तुत: सभी जिज्ञासाएं शांत हो गयीं हैं तो एक अंतिम प्रश्न रह जाता है कि इस शोध का औचित्य क्या था . मेरे एक ब्लॉगर मित्र ने इसी प्रश्न को उठाया था , उनका कहना था कि "मैं ये नहीं समझ पाया की इसका प्रयोजन क्या है आखिर.....अगर ये भी सिद्ध हो गया की रावण को इसका ज्ञान था तो क्या फर्क पड़ेगा इतने पौराणिक ग्रन्थ पर जो वैसे ही लोगों को रटा हुआ है ".उनका कहना बिलकुल सही है ...हो सकता है कुछ और मित्रों के मन में भी यह प्रश्न कुनमुनाया हो.
रामायण में 'रावण' और महाभारत में ' श्री कृष्ण', यह दो पात्र हमेशा से ही पापा के लिए कौतुहल का विषय रहे. कृष्ण के विषय में तो सारी जानकारी सहजता से मिल गयी, लेकिन रावण को और गहरायी से समझने के लिए उन्होंने गहन अध्ययन किया, अनेक भाषाओँ में लिखी गयीं रामायणों को पढ़ा, और अथक परिश्रम और शोधकार्य के बाद, उन्हें रावण के विषय में बहुत सी ऐसी बातें ज्ञात हुईं, जो अब तक कि उसकी छवि से सर्वथा भिन्न थीं. पापा का लेखक मन कुलबुलाने लगा. वे चाहते थे रावण का यह अज्ञात रूप लोगों तक पहुंचे और फिर 'अज्ञात रावण' का सर्जन हुआ एक काव्यनाट्य के रूप में.
'अज्ञात रावण' के विषय में, बहुचर्चित उपन्यास 'आवाँ' के लिए 'व्यास सम्मान' से पुरुस्कृत , हिंदी की प्रसिद्ध लेखिका श्रीमती चित्रा मुद्गल का कहना है -
अभिभूत हूँ शब्द कुमारजी की काव्यनाट्य कृति, 'अज्ञात रावण ' पढ़कर. सर्जना के शीर्ष की स्पंदित, गहन तरल अनुभूतियों की अभिव्यक्ति है 'अज्ञात रावण' जिसे पढ़ते हुए कालजयी नाट्य कृति 'अँधा युग' की सघन संवेदनात्मक और विश्लेषात्मक कालभेदी दृष्टि स्मरण हो आती है, जो काल के काले पन्नों के रक्तवर्णी अर्थ संवेगों का अनुसन्धान करती पाठक दर्शक के मर्म को कटघरे में दाखिल होने के लिए विवश कर देती है . 'अज्ञात रावण ' का नाट्य काव्य सन्दर्भ 'अँधा युग 'से अलग है , लेकिन शिल्प सौष्ठव उसके बहुत निकट. इधर समकालीन नाट्य परिदृश्य में काव्य नाट्य लेखन की परंपरा कुछ क्षीणकाय हो रही है. 'अज्ञात रावण' उस रिक्तता को पूरता है. उसका पाठ पृष्ठ दर पृष्ठ अपनी समर्थ मंचीय दृश्यात्मकता की गतिमयता में, पढ़ने वाले को कब कैसे मंच के समक्ष बैठे तन्मय दर्शक के रूप में कायाकल्प कर देता है - कह पाना मुश्किल है .
एक नहीं अनेकों बार 'अज्ञात रावण' के सर्वथा अनूठे पाठ ने फिर फिर अपने पास बुलाया है और स्वयं में आकंठ डुबोया है . प्रश्नाकुलता का ज्वार अनुत्तरित सा जब अपने अंतिम चरण के चौखटों की अर्गलायें खोलता है तो वहां मौजूद मिलता है अपराजेय रावण का अब तक का वह अपरिचित रूप , जिसकी अंतर्व्यथा कथा और उसका चरम द्वंध वह सत्य है जो प्रचलित प्रचारित असत्य की कभी न खुलने वाली सीपी की मानिंद है जो सहसा ' उदघटित हो हमें भीतर क़ैद मोती की आबसे चमत्कृत कर देता है और परिचित करवाता है महान शिवभक्त वेद शास्त्र ज्ञाता उस तपस्वी रावण से , जिसने राम के रूप में भगवान विष्णु को पहचानकर उनके हाथों मृत्यु के वरण की कामना की, ताकि वह जन्म मरण के दुष्चक्र से मुक्ति पा सके . यानि सत्य की प्रतिष्ठा के लिए रावण ने स्वयं असत्य की काया धारण कर दुराचार की लीला रची और भगवान रामके हाथों पराजित होने का उपक्रम किया.
रावण का यह रूप संभवत: इससे पहले न कभी अन्वेषित हुआ न रचा गया .हुआ भी हो तो मेरी जानकारी में वह दर्ज नहीं है .
'अज्ञात रावण' काव्यनाट्य की सर्जना बहुमुखी प्रतिभा के धनी, शब्द कुमार जी की दीर्घ साधना का सुफल है .
अंग्रेजी और हिंदी के सुपरिचित पत्रकार, फिल्मों के सफल पटकथाकार एवं संवादलेखक शब्द कुमार जी जिनके खाते में अविस्मर्णीय फिल्मोंकी लम्बी फेहरिस्त है और जिनकी विचारोत्तेजक सुपर हिट फिल्म 'इन्साफ का तराजू ' आज भी उतनी ही प्रासंगिक है और जब भी प्रदर्शित होती है , दर्शकों के स्मृति पटल पर अपनी अमिट छाप छोड़े बिना नहीं रहती.
शब्द कुमारजी ने 'अज्ञात रावण ' लिखने की परिकल्पना बहुत पहले कर ली थी .विषय के शोधकार्य के तहत उन्होंने अनेक भाषाओंकी रामायणों को खंगाला, टटोला और तार्किकता की नींव पर जिस सत्य को अन्वेषित कर उसका नाटक स्वरुप रचा ....निश्चय ही वह हिंदी रंगकर्म में मील का पत्थर साबित होगी ....ऐसा मेरा ढृढ़ विश्वास है.
छह दशक पूर्व १९४९ में शब्द कुमारजी की प्रथम गद्यगीत काव्य संग्रह 'पूजा 'की भूमिका में मूर्धन्य साहित्यकार , नाटककार डॉ राम कुमार वर्मा ने उनकी अति संवेदनशील भावप्रण भाषा सामर्थ्य पर टिप्पणी की थी "शब्द कुमार शब्दों की ध्वनि पहचानते हैं और उसका उचित प्रयोग करने में समर्थ हुए हैं ". 'अज्ञात रावण' के सन्दर्भ में आज भी उनकी टिप्पणी उतनी ही सटीक है जितनी की तब थी .
शब्द कुमार ज़रूरतमंदों और आत्मीयजनों के निष्ठ मित्र ही नहीं हैं....उनके व्यापक मानवीय सरोकार उनके संवेदी व्यक्तित्व की प्रबल परिभाषा हैं .काव्यनाटक ' अज्ञात रावण'के लिए उन्हें मेरी शत -शत बधाई.
चित्रा मुद्गल
रंगमंच की सुप्रसिद्ध अदाकारा और निर्देशिका , श्रीमती नादिरा बब्बर 'अज्ञात रावण' के विषय में कहती हैं ....
( क्रमश:)
आपकी इस चर्चा पर आज मेरी नज़र गई है. इसे रुची लेकर पढ़ रहा हूँ. पिछली पोस्ट्स भी देखी हैं. विषय गहन है.
ReplyDeleteआपका पोस्ट पर आना अच्छा लगा...बहुत बहत आभार सर
Deleteगहन पांडित्य का विषय है रावण की अंतर्मेधा! आपके पिता के श्रम और शोधात्मक विवेचन पर अनुपम मीमांसाएं यहां परिलक्षित हैं जो आदर योग्य हैं। फिर भी कुछ तो ऐसा है कि रावण के बारे में अभूतपूर्व जान कर भी श्रद्धा नहीं बढ़्ती और राम के बारे में लौकिक सीमाएं जान कर भी श्रद्धा नहीं घटती। लोकाचारण जीवन की धर्म-धुरि है और यही शाश्वत अनुपालना हमारे लिए श्रेष्ठतम है।
ReplyDeleteशब्द कुमार जी की इस संग्रहणीय कृति 'अज्ञात रावण ' से परिचित करवाने का बहुत बहुत आभार.
ReplyDeleteअगले पोस्ट की प्रतीक्षा
बहुत बहुत आभार |
ReplyDeleteयह तो बाहुत अच्छी जानकारी है ... अज्ञात रावण के विषय में कुछ संक्षेप में भी बताएं ॥
ReplyDeleteतत्व और ब्रह्म ज्ञानी रावन का जीवन चरित अनुकरणीय रहा है
ReplyDeleteतब ही तो श्री राम ने ज्ञान प्राप्ति के लिए लक्ष्मण को भेजा था ......
bahut sahiiiiiiiiiiiiiiiii
Delete'अज्ञात रावण' के बारे में और पढने जानने की उत्सुकता है।
ReplyDeleteआपका ह्रदय से आभार.....वैसे यह किताब बहुत जल्दी हम फ्लिप्कार्ट पर उपलब्ध कराने का प्रयास कर रहे हैं...लेकिन कुछ अंश इसके हम अपने ब्लॉग पर ज़रूर प्रस्तुत करेंगे
Deleteयह पढ़ कर बहुत अच्छा लगा मैंने भी अपने खंड-काव्य''उत्तर-कथा' में ,प्राचीन ग्रंथों के आधार पर रावण को बिलकुल अलग रूप में प्रस्तुत किया है .
ReplyDeleteउपरोक्त जानकारी से मेरी मान्यता की पुष्टि हुई
ांग्यात रावण? कुछ और इस विष्षय पर प्रकाश डालें। धन्यवाद।
ReplyDeleteजी यह एक नाट्य कृति है जो श्री शब्द कुमारजी , यानी मेरे पापा ने लिखी है ...इस में रावण पर गहन शोध करके उन्होंने कुछ ऐसी बातें जानी जिनसे हम अनभिज्ञ थे .....यह नाट्य कृति मैं फ्लिप्कार्ट पर उपलब्ध कराने का प्रयत्न कर रही हूँ ....वैसे थोड़ी बहुत जानकारी उस किताब के विषय में मैं अपने ब्लॉग के माध्यम से देने का प्रयास करूंगी ...आभार !
Deleteअज्ञात रावण के बारे में और अधिक जानने की उत्सुकता हो गयी है !
ReplyDeleteसच पूछिए तो वाणीजी यही मेरी मंशा थी यह किश्तें लिखने के पीछे ....!
Deleteबहुत अच्छी जानकारी है..आभार सरस जी.. अज्ञात रावण के विषय में जानने को उत्सुक्त हूँ..
ReplyDeleteअच्छा लगा जानकार ....मेरी कोशिश रहेगी यथा संभव इस विषय पर लिख सकूं महेश्वरीजी
Deleteअज्ञात रावण एक गहन अध्यन के बाद जन्मी कालजयी पुस्तक होने वाली है जो कई दृष्टिकोण रखती है ... पुस्तक क्या प्रिंट में उपलब्ध है और कहां से मिल सकती है कृपया इस विषय पे भी कुछ प्रकाश डालें ...
ReplyDeleteजी मैं प्रयास कर रही हूँ की इस नाट्य कृति को फ्लिप्कार्ट पर उपलब्ध करा सकूं.....जैसे ही यह संभव होगा मैं तुरंत सूचित करूंगी ...आभार !
Deleteजानकारी के लिए आभार,लेकिन अज्ञात रावण की उत्सुकता बाकी है,,,,,
ReplyDeleteMY RECENT POST...:चाय....
बहुत ही उम्दा प्रस्तुति ..
ReplyDeletebahut badhiya....sundar post ...
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उम्दा प्रस्तुति के लिए आभा
प्रवरसेन की नगरी प्रवरपुर की कथा
♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥
♥ आपकी पोस्ट की चर्चा वार्ता पर" ♥
♥शुभकामनाएं♥
ब्लॉ.ललित शर्मा
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शुक्रिया सरस जी की आपने हमारी बात को इतनी तवज्जो दी....आपने अज्ञात रावण का ज़िक्र किया तब बात समझ आई की आपके पिता जी ने पुस्तक किए लिए इतना श्रम किया जो सार्थक रहा.....अँधा युग मैंने पढ़ा है धर्मवीर जी ने उसमे जो नया दृष्टिकोण दिया है वो बहुत पसंद आया था मुझे....अंत में कृष्ण का ये कहना की जो मरा था वो भी मैं ही था और जिसने मारा वो भी मैं ही था.....फिर से शुक्रिया एक निष्पक्ष दृष्टिकोण का ।
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी मिली ............धन्यवाद
ReplyDeleteक्या हमे यह पुस्तक मिल सकती है
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