Friday, November 6, 2020

औरत तुम भी कमाल हो


कब समझोगी कि

पुरुषों की नज़र में

तुम्हारी अच्छाइयाँ 

तुम्हारी कमजोरियाँ

ही रहेंगी…


हर रूप में हारी हो

बेटी होने के नाते

प्राथमिकताओं से

जो भाई के पक्ष में रहीं…

बीवी होने के नाते 

कर्तव्यों से

जो सिर्फ तुम्हारे हिस्से में रहे…

माँ होने के नाते

त्यागसे जो सदा तुम्हारा

फ़र्ज़ रहा…

बेटे और पति की अनबन में 

 तारतम्य की लचीली 

डोर पर,

बिना बाँस चलती रहीं

बार बार गिर

टूटतीं रहीं…

तुम्हारा समर्पण 

उछाला जाता रहा

फुटबॉल सा

पाले बदलते रहे

कभी एक की ताकत बनीं

तो दूसरे की… 

बिखरतीं रहीं

बार बार सिमटती रहीं 

पारे सी…

अनुभव सिखाता है

पर तुम रहीं मूर्ख की मूर्ख

अनुभवों से भी न सीखा...

छीजती रहीं

मिटाती रहीं 

अपना अस्तित्व

ओस की बूँद सम...

बिछी रही कदमों में 

हरसिंगार सी

बिखेरती रहीं खुशबू 

शीतलता, स्नेह ...

तुम्हारे हिस्से क्या आया ? 


सरस दरबारी 


10 comments:

  1. सुन्दर रचना

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  2. जय मां हाटेशवरी.......

    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    08/11/2020 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......


    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    https://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

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  3. बिछी रही कदमों में
    हरसिंगार सी
    बिखेरती रहीं खुशबू
    शीतलता, स्नेह ...
    तुम्हारे हिस्से क्या आया ?

    बेहतरीन पंक्तियां
    साधुवाद 🙏🍁🙏
    सस्नेह,
    डॉ. वर्षा सिंह

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    1. सादर आभार आदo वर्षा जी

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  4. Replies
    1. सादर आभार आदरणीय ...!

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  5. जी सादर आभार अनीता जी ...:)

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  6. सच । क्या आया तुम्हारे हिस्से । मर्मस्पर्शी रचना ।

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