विस्फोट यूँहीं नही हुआ करते..
सब्र का ईंधन
भावनाओं का ताप
आक्रोश का ऑक्सीजन
जब मिलते हैं
सब्र गड़गड़ाता है
भावनाएँ खदबदाती हैं
आक्रोश धूल, गारे की शक्ल में
आसमान स्याह कर देता है
तब होता है विस्फोट..
जब भूख मुँह चिढ़ाती है
मक्कारी
हर दौड़ जीत जाती है
और सच
बैसाखियाँ साधता रह जाता है
तब होता है विस्फोट…
जब बिलबिलाती जनता को
महलों से रानी फरमान सुनाती है
रोटी नही तो केक खा लो
राजा की बग्घी तले मासूम
दौड़ाकर कुचले जाते हैं
तब होता है विस्फोट…
तब होती है क्रांति
झुलस जाता है ऐशो आराम
झूल जाती है बादशाहत..
फाँसी के फन्दों पर
बुनाई करते हुए
गिनती जाती है
सताई हुई जनता
कटते हुए सिर
बच्चों, बूढ़ों, स्त्रियों के…
वहशियत नमूदार होती है फिरसे
अलग रूप में
अलग पलड़े पर
होता है एक और विस्फ़ोट
तबाह करता हुआ
नसलें
इंसानियत
और
खुदा का खौफ...!
सरस दरबारी
i really like it this is amazing post keep it upgoogle-analytic-hindi
ReplyDeleteThanks a ton...:)
Deleteबहुत विचारपूर्ण रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया जेनी जी ...:)
Deleteवाह। बेहतरीन।
ReplyDeleteशुक्रिया शिवम जी
Deleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर आभार ...!
Deleteबेहतरीन रचना !!!
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया शरद जी ...:)
Deleteबहुत खूब!! विस्फोट का सटीक विश्लेषण करती रचना, शुभकामनाएं सरस जी.
ReplyDeleteहार्दिक आभार रेणु जी ...:)
Deleteबेहतरीन सृजन ।
ReplyDeleteसादर
सादर आभार अनीता जी
Deleteबहुत भूत शुक्रिया दिव्या जी ...:)
ReplyDeleteआपका सादर आभार आद रवीद्र यादव जी
ReplyDeletevasim khan
ReplyDeletegreat post
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