देह समाई पंच तत्व में
घाटों पर मन ठहर गया है
चलती जाती रीत जगत की
जो आता
उसको जाना है
कर्म यहाँ बस रह जाते हैं
रीते हाथों ही
जाना है
काया भोगे रह रह दुर्दिन
स्मृति में आनन ठहर गया है
जीवन के खाली पन्नों पर
स्मृतियाँ रुक रुक
छपती जातीं
अंतस के गह्वर से उठ वह
नैनों से फिर
बहतीं जातीं
भवसागर तो पार किया पर
कर्मों का धन ठहर गया है
कंटक पथ पर हारा गर मन
तो स्मृतियाँ
क्षमता बन जातीं
उनकी दी तदबीरें बढ़कर
परिभव में
साहस उकसातीं
कब हो पाये दूर वह हमसे
आशिष पावन ठहर गया है
सरस दरबारी
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteओह, कितनी भाव पूर्ण । बहुत से दृश्य आंखों के सामने से गुज़र गए ।।
ReplyDeleteThank you! badi hi sunder line hai, Free me Download krein: Mahadev Photo
ReplyDeleteकहने को रहा क्या
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