Friday, November 27, 2020

देह समाई पंच तत्व में

 











देह समाई पंच तत्व में

घाटों पर मन ठहर गया है 


चलती जाती रीत जगत की 

जो आता 

उसको जाना है 

कर्म यहाँ बस रह जाते हैं 

रीते हाथों ही 

जाना है 


काया भोगे रह रह दुर्दिन 

स्मृति में आनन ठहर गया है 


जीवन के खाली पन्नों पर 

स्मृतियाँ रुक रुक  

छपती जातीं 

अंतस के गह्वर से उठ वह  

नैनों से फिर 

बहतीं जातीं 

भवसागर तो पार किया पर

कर्मों का धन ठहर गया है 


कंटक पथ पर हारा गर मन  

तो स्मृतियाँ

क्षमता बन जातीं

उनकी दी तदबीरें बढ़कर  

परिभव में 

साहस उकसातीं 


कब हो पाये दूर वह हमसे 

आशिष पावन ठहर गया है 


सरस दरबारी  



4 comments:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  2. ओह, कितनी भाव पूर्ण । बहुत से दृश्य आंखों के सामने से गुज़र गए ।।

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  3. Thank you! badi hi sunder line hai, Free me Download krein: Mahadev Photo

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  4. कहने को रहा क्या

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