स्टेशन के उस पीपल के नीचे -
एक छोटीसी गृहस्थी बसा
रहती आई है वह-a
पिछले पच्चीस वर्षों से -
हर सवेरा एक जीने की उम्मीद बनकर आता
और हर रात मौत का सदक़ा बन जाती !
जीने मरने का यह क्रम -
अविरल..अविरत... चलता हुआ-
आनेवाली हर ट्रेन से बंधती आस -
लौट आती ...
सूनी पटरियों से खुद को बटोरती हुई .....
और यह क्रम यूहीं चलता रहता ....
कौन था वह ...
जो कर गया
यह लम्बा विरह उसके नाम !!!
बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको
ReplyDeleteकौन था वह ...
ReplyDeleteजो कर गया
यह लम्बा विरह उसके नाम !!!
hmm...aisee chand aurton ko dekha hai mili bhi hoon magar kabhi himmat nahin hui unke virah ko mahsoos kar likhane ki aaj aapki kavita padhii kuchh chehare yaad aa gaye aur ansoo bhi .
कौन था वह ...
ReplyDeleteजो कर गया
यह लम्बा विरह उसके नाम,,,,बढ़िया प्रस्तुति,,,
दीपक करने आ गए,धरती पर उजियार
आलोकित संसार है, भाग रहा अंधियार.,,,,,
RECENT POST:..........सागर
वाह बहुत ही शानदार ।
ReplyDeleteविरह की रात ...और रेल की पटरी...कब खत्म होगी ..और कहाँ???
ReplyDeleteदिवाली की शुभकामनायें!
bahut marmik.............
ReplyDeleteऔर यह क्रम यूहीं चलता रहता ....
ReplyDeleteकौन था वह ...
जो कर गया
यह लम्बा विरह उसके नाम !!!
यह भी ज़िन्दगी का एक हिस्सा बन जाता है जब कोई दर्द दे जाता है . शायद इंतजार भी कहीं सुकून दे जाता है .
बहुत मार्मिक..दिवाली की शुभकामनायें!
ReplyDeleteवाह!!! बहुत ही शानदार ।
ReplyDeletehappy diwali.
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
माँ नहीं है वो मेरी, पर माँ से कम नहीं है !!!
जीने मरने का यह क्रम -
ReplyDeleteअविरल..अविरत... चलता हुआ-
आनेवाली हर ट्रेन से बंधती आस -
लौट आती ...
यही आशा हमें जीवंत रखती है . धड़कने चलती रहनी चाहिए.
हर कूक पर पांव उठते हैं,विरह कथा बुनते हैं
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआपका ब्लाग बहुत सुंदर लगता है,खासतौर पर बैकग्राउंड
सुंदर कविता के साथ दीपावली की भी शुभकामनायें |ज्योति पर्व मंगलमय हो |
ReplyDeleteकौन था वह ...
जो कर गया
यह लम्बा विरह उसके नाम !!!
वाकई मर्मस्पर्शी रचना !
आभार सुंदर लेखन के लिए
ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
♥~*~दीपावली की मंगलकामनाएं !~*~♥
ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
सरस्वती आशीष दें , गणपति दें वरदान
लक्ष्मी बरसाएं कृपा, मिले स्नेह सम्मान
**♥**♥**♥**●राजेन्द्र स्वर्णकार●**♥**♥**♥**
ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
kuch jakhm dukhte se ...bahut sundr bhav..priya kavita
ReplyDeleteबहुत लंबा इंतज़ार ... आज भी झुलस रही है विरह में... सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteकौन था वह ...
ReplyDeleteजो कर गया
यह लम्बा विरह उसके नाम !!!
वाह ... बहुत खूब।
कौन था वह ...
ReplyDeleteजो कर गया
यह लम्बा विरह उसके नाम !!!
....बहुत मर्मस्पर्शी रचना...हरेक शब्द अंतस को छू गया॥
कौन था वह ...
ReplyDeleteजो कर गया
यह लम्बा विरह उसके नाम !!!
मर्मस्पर्शी ...गहन अभिव्यक्ति ....!!
बहुत बहुत आभार यशवंत....:)
ReplyDeleteह्रदय स्पर्श कर गयी आपकी यह रचना.
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