Friday, November 30, 2012

स्मृतियाँ




कभी कभी स्मृतियाँ-
दबे पाँव आकार -
एक पत्थर फ़ेंक जाती हैं
उस शांत नीरवता में -
जिसे हम सबकी नज़रसे-
अपनी नज़रसे -
ओझल कर -
इस मुग़ालते में जीते हैं -
की हम भूल गए उन्हें .
लेकिन सच तो यह है -
कि उस छिड़ी सतह पर उभरा मैल -
पुन: जिला देता है
उन कड़वाहटओं   को-
जिन्हें उन्हीं स्मृतियों में लपेट
दफना आए थे हम !
और फिर झेलना होता है
एक लम्बा दौर
उस मैल के साफ़ होने का -
रिश्तों के स्थिर होने का ......


13 comments:

  1. कभी कभी स्मृतियाँ-
    दबे पाँव आकार -
    एक पत्थर फ़ेंक जाती हैं
    एक सच स्‍मृतियों का आपकी कलम से ये भी है ... अनुपम
    सादर

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  2. बेहद प्रभावी प्रस्तुति
    अरुन शर्मा
    www.arunsblog.in

    कभी कभी स्मृतियाँ-
    दबे पाँव आकार -
    एक पत्थर फ़ेंक जाती हैं
    उस शांत नीरवता में -
    जिसे हम सबकी नज़रसे-
    अपनी नज़रसे -
    ओझल कर -
    इस मुग़ालते में जीते हैं -

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  3. स्मृतियाँ.... कहाँ चुप बैठती हैं.., कहाँ खोतीं हैं... कहाँ भुलाई जातीं हैं...???
    ~ ये तो मन के ऐसे कोने में रहतीं हैं... जहाँ हर वक़्त अपने होने के एहसास दिलाता हुआ एक दीया जलता रहता है, अपने तले कई अंधेरे समेटे हुए....
    ~सुंदर रचना भाभी ! :-)

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  4. और फिर झेलना होता है
    एक लम्बा दौर
    उस मैल के साफ़ होने का -
    रिश्तों के स्थिर होने का ......

    beautiful lines with emotions and feelings

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  5. रिश्तों के स्थिर होने का इंतजार तो करना ही होगा...
    सुंदर अभिव्यक्ति....
    मेरी एक योजना है. आपकी रचनाएं बहुत अच्छी हैं...
    आप ब्लॉग पर जरूर आएं...

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  6. प्रभावी अनुपम प्रस्तुति ,,,

    recent post : तड़प,,,

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  7. रिश्तों की जटिलताओं और उनसे जुड़ी कड़वी यादों की कुशल अभिव्यक्ति हुई है आपकी रचना में । बधाई सरस जी।

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  8. यादों का एक अनोखा संसार ...इस मन में बसता है ...

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  9. पल पल घेरती हैं स्मृतियाँ ...कभी हंसातीं कभी रुलतीं .....जीवन का अभिन्न अंग होती हैं ये ...
    गहन भाव ...

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  10. कभी कभी स्मृतियाँ-
    दबे पाँव आकार -
    एक पत्थर फ़ेंक जाती हैं
    उस शांत नीरवता में -

    depth of life and feelings

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  11. सच कहा है ... स्मृतियाँ खत्म नहीं होतीं ...रिश्ते बहुत मुश्किल से खत्म होते हैं ... जीवन को गहरे देखा है फिर लिखा है ... बहुत खूब ..

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