कभी कभी स्मृतियाँ-
दबे पाँव आकार -
एक पत्थर फ़ेंक जाती हैं
उस शांत नीरवता में -
जिसे हम सबकी नज़रसे-
अपनी नज़रसे -
ओझल कर -
इस मुग़ालते में जीते हैं -
की हम भूल गए उन्हें .
लेकिन सच तो यह है -
कि उस छिड़ी सतह पर उभरा मैल -
पुन: जिला देता है
उन कड़वाहटओं को-
जिन्हें उन्हीं स्मृतियों में लपेट
दफना आए थे हम !
और फिर झेलना होता है
एक लम्बा दौर
उस मैल के साफ़ होने का -
रिश्तों के स्थिर होने का ......
कभी कभी स्मृतियाँ-
ReplyDeleteदबे पाँव आकार -
एक पत्थर फ़ेंक जाती हैं
एक सच स्मृतियों का आपकी कलम से ये भी है ... अनुपम
सादर
बेहद प्रभावी प्रस्तुति
ReplyDeleteअरुन शर्मा
www.arunsblog.in
कभी कभी स्मृतियाँ-
दबे पाँव आकार -
एक पत्थर फ़ेंक जाती हैं
उस शांत नीरवता में -
जिसे हम सबकी नज़रसे-
अपनी नज़रसे -
ओझल कर -
इस मुग़ालते में जीते हैं -
स्मृतियाँ.... कहाँ चुप बैठती हैं.., कहाँ खोतीं हैं... कहाँ भुलाई जातीं हैं...???
ReplyDelete~ ये तो मन के ऐसे कोने में रहतीं हैं... जहाँ हर वक़्त अपने होने के एहसास दिलाता हुआ एक दीया जलता रहता है, अपने तले कई अंधेरे समेटे हुए....
~सुंदर रचना भाभी ! :-)
और फिर झेलना होता है
ReplyDeleteएक लम्बा दौर
उस मैल के साफ़ होने का -
रिश्तों के स्थिर होने का ......
beautiful lines with emotions and feelings
badhiya lagin panktiyan...
ReplyDeleteरिश्तों के स्थिर होने का इंतजार तो करना ही होगा...
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति....
मेरी एक योजना है. आपकी रचनाएं बहुत अच्छी हैं...
आप ब्लॉग पर जरूर आएं...
प्रभावी अनुपम प्रस्तुति ,,,
ReplyDeleterecent post : तड़प,,,
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteरिश्तों की जटिलताओं और उनसे जुड़ी कड़वी यादों की कुशल अभिव्यक्ति हुई है आपकी रचना में । बधाई सरस जी।
ReplyDeleteयादों का एक अनोखा संसार ...इस मन में बसता है ...
ReplyDeleteपल पल घेरती हैं स्मृतियाँ ...कभी हंसातीं कभी रुलतीं .....जीवन का अभिन्न अंग होती हैं ये ...
ReplyDeleteगहन भाव ...
कभी कभी स्मृतियाँ-
ReplyDeleteदबे पाँव आकार -
एक पत्थर फ़ेंक जाती हैं
उस शांत नीरवता में -
depth of life and feelings
सच कहा है ... स्मृतियाँ खत्म नहीं होतीं ...रिश्ते बहुत मुश्किल से खत्म होते हैं ... जीवन को गहरे देखा है फिर लिखा है ... बहुत खूब ..
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