आज से ६ दशक पहले , प्रसिद्द विचारक सार्तरे न कहा था की स्त्री शक्तिरूप है -उसके अन्दर आत्मविश्वास और शक्ति का ऐसा स्त्रोत है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती . वह क्या नहीं कर सकती - उसके अन्दर एक ऐसा सुप्त ज्वालामुखी है जो समय आने पर कहर बनकर फट सकता है . वह मुश्किल से मुश्किल कार्य को सहजता से कर लेती है जबकि पुरुष हार मान लेता है .
हमारे शास्त्रों में स्त्री को शक्ति और दुर्गा का रूप माना गया है , लेकिन जब उसे कदम कदम पर प्रताड़ित होता देखते हैः तो अनायास ही यह प्रश्न फन फैलाकर खड़ा हो जाता है की नारी की इस दशा के लिए कौन दोषी है !!!!
इसकी जड़ तक पहुँचने में पर्त दर पर्त खुलती जाती है और दृष्टिगोचर होता है वह सामाजिक ढांचा जिसे हमने रुढियों का जामा पहना रखा है. स्त्री ने हर कदम पर प्रताड़ना सही ...स्त्री पुरुष के बीच का भेदभाव उसके जन्म से पहले ही निश्चित हो जाता है .....तभी तो गर्भ में ही उससे जीने का अधिकार छीन लिया जाता है ...जो पैदा हो जाती हैं...कूड़े के ढेर पर अध् खाई, अध् नुची पाई जाती हैं..और जो बच जाती हैं उन्हें बचपन से ही सहनशीलता की घुट्टी पिलाई जाती है ...छोटे छोटे सुखों से कदम कदम पर वंचित रखा जाता है .....वह खेलना चाहती है , तो छोटे बहाई बहनों का भार उसपर थोप दिया जाता है ...पढ़ना चाहती है तो भाई की पढाई को प्राथमिकता दी जाती है ...पढ़कर क्या करना है ...चूल्हा देखो ..घर संभालो...और वह इच्छाओं को उसी कच्ची उम्र से तिलांजलि देना सीख जाती है
वह देखती है की घर के सारे निर्णय घर के पुरुष लेते हैं ...घर की स्त्रियों से सलाह करना अपना अपमान समझते हैं ...उसके साथ पल रहा उसका भाई भी यही देखता है और अनजाने ही घर की स्त्रियों के प्रति एक हीन भावना ...बचपन के कच्चे मन पर अंकित हो जाती है ....और वह बड़ा होकर अपने बड़ों का अनुसरण करता है .....
पुरानी मान्यताएं जैसे बेटा ही मुंह में पानी डालेगा उसे एक 'पीठिका' पर रख देते हैं और वह अपने को ऊंचा और घर की स्त्रियों को गौण समझने लगता है ...और इसके विपरीत उस बालिका को असंख्य बार समझाया जाता है की अपनी इच्छाओं को दबाना सीखो ...दूसरे घर जाना है ....
सहसा ही वह बच्ची दूसरे घर जाकर एकदम से बड़ी हो जाती है ....भाई और पिता के संरक्षण से निकलकर पति और श्वसुर के संरक्षण में पहुँच जाती है ...वहां वही सब फिर दोहराया जाता है .....इसमें सास और नन्द की जलन और डाह का भी समावेश होता है ....वह कुंठित होकर रह जाती है
इस कुंठा की सबसे बड़ी वजह है , साक्षरता की कमी अपने अधिकारों के प्रति अनभिज्ञता ,और अपने प्रति सम्मान की कमी.
औरत जब तक अपना सम्मान स्वयं नहीं करेगी कोई और उसे वह मान नहीं देगा ..यह दुनिया की रीत है ...जब तक उसके अन्दर, समाज के अन्दर उसके अधिकारों के प्रति जागरूकता नहीं आयेगी उसका यही हश्र होगा .पुरुष को यह समझना होगा की वह अकेला कुछ नहीं कर सकता ..उसे कदम कदम पर स्त्री की आवशयकता है - वह उसकी अर्धांगिनी है ...उसकी शक्ति है ...उसकी हमदर्द है ..उसकी माँ, सखा ,प्रेमिका, पुत्री, उसके जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है ...और यह भावना तभी आ सकती है जब स्त्री अपना सम्मान करना स्वयं सीखे .....अगर वह अपने आपको पावदान बनाकर रखेगी तो आजीवन पावदान ही बनी रहेगी ..उसे अपना स्थान खुद चुनना होगा ...लेकिन यह तभी मुमकिन है जब वह खुद साक्षर हो...अपने अधिकारों को पहचाने...तभी वह अपनी बेटी को सम्मान से जीना सिखा पायेगी ...अपने बच्चों को सही संस्कार दे पायेगी ...तभी अपने बेटे को बता पायेगी की यह तुम्हारी बड़ी बहन है ...इसका आदर करना सीखो.
औरत सिर्फ पालना ही नहीं झुला सकती वह देश को चला सकती है , वह अंतरिक्ष में उड़ान भार सकती है , वह पर्वतारोहण कर सकती है , वह आकाश में उड़ान भार सकती है , समुन्दर की गहरायी नाप सकती है , वह शातिर से शातिर बदमाशों को काबू कर सकती है , वह विषम से विषम परिस्तिथियों से डटकर मुकाबला कर सकती है ......
तभी वह श्रीमती गाँधी, बछेंद्री पाल, कल्पना चावला, किरण बेदी , बरखा दत्त बन सकती है....वह पुरुष के वर्चस्व में सेंध लगा चुकी है .
इतनी कार्य क्षमता होते हुए भी वह प्रताड़ित है , दहेज़ के नाम पर आज भी जलाई जाती है , क्योंकि आज भी पुरुष के नज़र में उसके लिए सम्मान की कमी है ...उसे यह समझना होगा की उसकी भी इच्छाएं है, सपने हैं, आकांक्षाएं हैं , कुछ करने की ललक है ...समझना होगा की वह एक संगिनी है , खूंटे से बंधी गाय नहीं ..कदम कदम पर साथ देने वाली बैसाखी है .
फिर सम्मान के साथ आयेगी समता, हर जगह बराबरी का हिस्सा देकर ही उसे उसकी सही ताक़त का, उसके अनुभव उसके योगदान का आस्वाद पुरुष वर्ग को मिलेगा और तब उसे अहसास होगा उसकी क्षमता का .
फिर आती है स्वाबलंबन की बारी .जब तक स्त्रियों के अन्दर यह भावना तीव्र नहीं होगी तब तक वह घर की दहलीज़ पार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाएंगी ...उस गुंजलक को तोडना ज़रूरी है जो परम्पराओं ने हमारे इर्द गिर्द बना रखा है ...उस कुंडली को तोड़कर ही हम शोषण के विषैले पाश से स्वयं को मुक्त कर सकते हैं.
और हमारी आज की नारी ...इस बंधन से मुक्त होनेमें सफल भी हुई है . वह निकली है घरोंसे, गलियोंसे, शहरोंसे, देशों से ..लेकिन कुछ महत्वाकांक्षी स्त्रियों ने अपनी कामना की पूर्ति के लिए कुछ ऐसे सामाजिक बन्धनों को तोडा है , जो उसकी सुरक्षा के लिए बने थे . बन्धनों से मुक्त होने की जल्दबाजी में उन्हने मान्यताओं को ताक पर रख दिया है ...उचित अनुचित की पहचान खो दी है . महत्त्व पाने की कामना और त्वरित लाभके उद्देश्य से आज औरत ही औरत का शोषण करने लगी है इसलिए आवश्यक है जागरूकता और संगठित होना .
नारी ब्लॉग वह संगठन है जहाँ हम सब मिलकर अपनी योग्यता को पहचाने .....एक दूसरे को सही रास्ता दिखाएं...अपने मौलिक अधकारों से रूबरू हों . परिस्तिथियाँ बदल गयीं हैं
आज नारी को हाशिये पर नहीं रखा जा सकता ...वह ज़माने गए जब उसकी अपनी कोई आवाज़ नहीं थी ..अपने विचार नहीं थे ...जहाँ उसे बोलने की , अपने विचार व्यक्त करने की स्वंत्रता नहीं थी ..आज वह सशक्त है , आज उसकी अपनी अस्मिता है ...उसकी अपनी आवाज़ है ...एक सोच है ....जो वर्षों के अनुभवों का निचोड़ है ..और आज तो पुरुष भी उसके योगदान को पहचानने लगा है ...मान्यता देता है ..उसकी सोच को इज्ज़त देता है ...उसके विचारों का मान रखता है ...आज वह उसकी बैसाखी है ...जिसके सहारे के बगैर ....वह आगे नहीं बढ़ सकता .....कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय नहीं ले सकता ....
आज वह उस अनुकूलन , उस कंडिशनिंग से मुक्त हो गयी है ....जो उसे बचपन से घुट्टी बनाकर पिलाई जाती थी ...उसीके फलस्वरूप वह एक सहचारिणी , एक मित्र, एक सखा बन गयी है ...केवल एक अनुगामिनी नहीं .
maine apni dadi ji se suna tha hamesha aisa nahin tha pahle stri ke bina kuchh bhi nahin hota tha ,striyan sar nahin dhakti thi ,ve mantr ,granth aadi jaane kya kya racha karti thi .unka bahut samman hota tha sab barabr the.pata nahin jaane kab kyun kaise stri ne apne saare adhikaar sammaan poorooshon ko de diye :(
ReplyDeleteयह शायद विदेशी आक्रमणों के बाद ही हुआ ..जब औरत को परदे में धकेल ...पुरुष वर्ग ने अपना वर्चस्व जमा लिया ....हो सकता है यह उस वक़्त किसी अच्छे उद्देश्य से किया गया हो ...लेकिन उसके दुष्परिणाम ही उभर कर आये ...और आज तक कायम हैं
Deleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 08 - 11 -2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....
सच ही तो है .... खूँटे से बंधी आज़ादी ..... नयी - पुरानी हलचल .... .
पोस्ट को चुनने के लिए बहुत बहुत आभार संगीताजी
Deleteस्त्री समाज के लिए एक सकारात्मक सन्देश... पुरुष समाज भी पढ़े और सीख ले.
ReplyDeleteअगर आप ही की तरह और लोग भी इस बात के मर्म को समझ लें ....तो कितना अच्छा हो ...बहुत बहुत आभार आपका
Deleteआज वह उस अनुकूलन , उस कंडिशनिंग से मुक्त हो गयी है ....जो उसे बचपन से घुट्टी बनाकर पिलाई जाती थी ...उसीके फलस्वरूप वह एक सहचारिणी , एक मित्र, एक सखा बन गयी है ...केवल एक अनुगामिनी नहीं .
ReplyDeleteसकारात्मक सन्देश
हाँ किसी हद तक तो सुधार हुआ है ...लेकिन सिर्फ मुट्ठी भर जागरूक लोगों में ही...गाँव कस्बों की तो अभी तक वही कहानी है .
Delete....आभार वंदनाजी
nari ke prati nazariya shehron me to kafi had tak badla hai lekin hamare grameen pradhan desh ke gaanvo me sthiti abhi bhi shochneey hai....jarurat gaanvo ki mahilaaon me jaagrukta lane ki hai. shehron me jaagrukta hote hue bhi istri jaagruk nahi he to yah istri ki khud ki kami hai...use apne hak k liye khud aage badhna hoga...lekin jahan gaanv ki naari ko pata hi nahi to aage badhna to door ki baat hai.
ReplyDeletejagruk karta lekh.
..हमारी भी यही सोच है ...बहुत बहुत आभार अनामिकाजी
Delete....जो उसे बचपन से घुट्टी बनाकर पिलाई जाती थी ...उसीके फलस्वरूप वह एक सहचारिणी , एक मित्र, एक सखा बन गयी है ...
ReplyDeleteसार्थकता लिये सशक्त लेखन आभार
लेकिन कुछ तपकों में ..जागरूकता आना बाकी है ....आभार सदाजी
Delete्सार्थक आलेख
ReplyDeleteसमाज की असल सच्चाई से रुबरू कराती बढिया पोस्ट
ReplyDeleteबहुत सुंदर
सार्थक पोस्ट ...
ReplyDeleteवो सुबह कभी तो आएगी सरस जी !!!
ReplyDeleteस्त्री हो या पुरुष... दूसरों का सम्मान करना व अपने आत्मसम्मान की रक्षा करना...दोनों ही बातें ज़रूरी हैं ! आजकल के हालातों में कुछ सुधार आना शुरू हो गया है...हम अपनी बेटियों को बराबर का दर्जा देने लगे हैं, उन्हें उँची शिक्षा देते हैं, जिससे वो किसी पर निर्भर न हों...और अपना भला बुरा समझने में सक्षम हों, साथ ही साथ बेटों को भी नारियों का सम्मान करने की शिक्षा देते हैं !
ReplyDeleteसबसे पहले खुद स्त्रियों को अपने आप पर विश्वास होना चाहिए !
बदलाव होना शुरू हो गया है..! काफ़ी हद तक हुआ भी है..और आने वाले समय में पूरी उम्मीद है... नारी को उसका उचित स्थान ज़रूर मिलेगा !
~सादर !
1**औरत जब तक अपना सम्मान स्वयं नहीं करेगी कोई और उसे वह मान नहीं देगा ..यह दुनिया की रीत है ...जब तक उसके अन्दर, समाज के अन्दर उसके अधिकारों के प्रति जागरूकता नहीं आयेगी उसका यही हश्र होगा
ReplyDelete2***बन्धनों से मुक्त होने की जल्दबाजी में उन्हने मान्यताओं को ताक पर रख दिया है ...उचित अनुचित की पहचान खो दी है . महत्त्व पाने की कामना और त्वरित लाभके उद्देश्य से आज औरत ही औरत का शोषण करने लगी है इसलिए आवश्यक है जागरूकता और संगठित होना
आपने एक मौलिक हल स्वयं प्रस्तुत किया है . इससे भी बेहतर का प्रयास करें . * यत्र नार्यस्त पूज्यन्ते , रमन्ते तत्र देवताः * लेकिन बहुत कठिन हो जाता है कथनी और करनी में सामंजस्य स्थापित कर पाना . फिर भी शुभ की अपेक्षा में सदैव आँखें बिछाए ...
हमारे देश में इतनी विषम स्थिति है कि इस विषय पर समग्रता से विचार करना ज़रूरी है .... जहां एक ओर लड़कियों को समान दर्जा दिया जाता है वहीं ऐसा भी है कि उनको जन्म से पहले मार दिया जाता है ... बेटियों को समान शिक्षा और समान वातावरण मिलता है लेकिन लड़की हो यह भी एहसास कराया जाता है ... लड़कियां आज अपने पैरों पर खड़ी हैं फिर भी उनकी स्थिति बहुत सहज नहीं है ... स्वयं का सम्मान करने की स्थिति में अक्सर परिवार में सामंजस्य नहीं रहता .... आज नारी अपनी बात रखती तो है पर मानी कितनी जाती है यह विचारणीय है ...
ReplyDeleteजागरूक करता अच्छा लेख
औरत जब तक अपना सम्मान स्वयं नहीं करेगी कोई और उसे वह मान नहीं देगा ..यह दुनिया की रीत है........बिलकुल सही कहा आपने सहमत हूँ ।
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