सूरज उससे अनभिज्ञ है
किरणें अनजान !
ख़ौफ़ज़दा रहती है वह
शाम के धुंधलके से -
और रात लाती है फरमान !
चल तेरे मरना का वक़्त आ गया
बंद कर देती है सारी
ख्वाइशें , सपने , यादें
और रख देती है वह संदूकची
उसी आले पर .....
जड़ लेती है चेहरे पर हंसी -
पोत लेती है रंग रोगन -
और बन जाती है नुमाइश ...
हसरतों पर कोई पाबंदी नहीं
जितना चाहे चुग्गा डाल दे
घेरे रहती हैं उसे -
पर पालती नहीं उन्हें
लहू लुहान होने के डर से
और नामुराद आंसू-
मूँह छिपाये फिरते हैं
हंसी उसका वस्त्र है
और उपहास उसकी नियति
और रिश्ते....!
एक मृगमरीचिका -
जिसमें केवल आस है
यहाँ लोग रिश्ते कायम तो करते हैं
निभाते नहीं
सदियों से ब्रह्मकमल सी खिलती आयी है
सुबह होते ही ...मुरझा जाने के लिए ....
हंसी उसका वस्त्र है
ReplyDeleteऔर उपहास उसकी नियति
और रिश्ते....!
एक मृगमरीचिका -
जिसमें केवल आस है
यहाँ लोग रिश्ते कायम तो करते हैं
निभाते नहीं
सदियों से ब्रह्मकमल सी खिलती आयी है
सुबह होते ही ...मुरझा जाने के लिए ...
bahut khoob
rachana
जड़ लेती है चेहरे पर हंसी -
ReplyDeleteपोत लेती है रंग रोगन -
और बन जाती है नुमाइश ...
aapne baut umda likha sarasji...
हसरतों का खत्म होना .. जीवन की भी शाम है ... आंसू तो आते जाते हैं ...
ReplyDeleteहसरतों पर कोई पाबंदी नहीं
ReplyDeleteजितना चाहे चुग्गा डाल दे
घेरे रहती हैं उसे -
पर पालती नहीं उन्हें
लहू लुहान होने के डर से
और नामुराद आंसू-
मूँह छिपाये फिरते हैं...
बहुत सुन्दर दी...बहुत कोमल...
सादर
अनु
बहुत ही सुन्दर एवं भावपूर्ण
ReplyDeleteKAVYASUDHA ( काव्यसुधा )
एक औरत के दर्द को समेटे बोलती सी पोस्ट |
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार
ReplyDeleteहसरतों पर कोई पाबंदी नहीं
ReplyDeleteजितना चाहे चुग्गा डाल दे
घेरे रहती हैं उसे -
पर पालती नहीं उन्हें
लहू लुहान होने के डर से
और नामुराद आंसू-
मूँह छिपाये फिरते हैं...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
एक कड़वे सच को बहुत ही सुंदरता से शब्द रूप देकर लिख दिया आपने दी ...बहुत ही सुंदर एवं सार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसादर
उसका सच , उसकी हंसी का सच और उसके आंसू का सच ...सब सच सच ...
ReplyDeleteप्रभावकारी प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।
ReplyDeleteप्रभावकारी प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।
ReplyDeleteहमारे समाज की यह भी एक कड़वी सच्चाई है
ReplyDeleteजब की आज हम महिला दिवस मना रहे है !
सटीक रचना है !
फिर भी कमल की अपनी जिद है ...
ReplyDeleteनारी जीवन को शब्दों में तराशने की बेहतरीन कोशिश.................बधाई.........................
ReplyDeleteयहाँ लोग रिश्ते कायम तो करते हैं
ReplyDeleteनिभाते नहीं
सदियों से ब्रह्मकमल सी खिलती आयी है
सुबह होते ही ...मुरझा जाने के लिए ....
...मन को छूते गहन अहसास...बहुत प्रभावी और मर्मस्पर्शी रचना...
हसरतों पर कोई पाबंदी नहीं
ReplyDeleteजितना चाहे चुग्गा डाल दे
घेरे रहती हैं उसे -
पर पालती नहीं उन्हें
लहू लुहान होने के डर से
और नामुराद आंसू-
मूँह छिपाये फिरते हैं.......बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति !
उस शापित से ही शायद कभी शापमुक्त हो पाओ जिससे रिश्ते तो बनाते हो पर निभाते नहीं .... गहन अभिव्यक्ति
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