Sunday, October 6, 2019

यक्ष प्रश्



सन 2040
राहुल स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहा था।
“अरे बेटा अपनी नरिशमेंट पिल्स रख लीं।”
“हाँ माँ”
“और मास्क...!”
“हाँ माँ रोज़ वही सवाल। घर से बाहर जा रहा हूँ। साँस इतनी फूलती है, उसके बिना एक कदम नहीं चल पाऊँगा।”
“जानती हूँ बेटा, इसका महताव जानती हूँ इसीलिए तो एहतियातन पूछ लेती हूँ”, माँ ने मायूसी से जवाब दिया।  
राहुल अपनी उड़न तश्तरी के आकार के शटल में स्कूल पहुँच गया।
“सुनो बच्चों आज तुम्हें कुछ दिखाना है,” कहकर उनकी मैम ने एक तीन आयामी चित्र प्रक्षेपित किया।  
एक अचंभित स्वर क्लास में गूँज गया। बच्चे फटी आँखों से उस खूबसूरत दृश्य को देख रहे थे। चारों तरफ हरियाली, मंद मंद बयार से पवन चक्कियों के विशाल पर घूम रहे थे। सुंदर हरे भरे स्वस्थ पेड़, क्यारियों में करीने से सजे रंगीन फूल, मीलों फैली हरियाली। शुभ्र चमकते स्वच्छ मकान और आकाश की आभा तो देखते ही बनती थी। धुला हुआ नीला आसमान जहाँ बादल रुई के फायों से हल्के हो चहलकदमी कर रहे थे।
मैम ने मुस्कुराकर देखा, बच्चे खुले मुँह और फटी आँखों से यह तस्वीर देख रहे थे । तभी राहुल बोला,
यह क्या है मैम, इतनी खूबसूरत ...! पहले कभी नहीं देखी...!”
“यह वही धरती है, जहाँ हम रहते हैं।”
 “क्या...! मैम, पर यहाँ तो ऊँची ऊँची चिमनियाँ हैं, जहाँ से मैले , बदबूदार धुएँ के बादल निकलते हैं। और आसमान में इस कदर छाए रहते हैं,कि सूरज की रोशनी भी हम तक नहीं पहुँच पाती। इस माहौल में दम घुटता है। खुलकर साँस तो लेने की तो सोच ही नहीं सकते। हम मान ही नहीं सकते , यह खूबसूरत दृश्य हमारी इसी पृथ्वी का है। क्या वाकई मैम....!”
“हाँ बच्चों हमारी शस्य श्यामला धरती ही है यह, जहाँ हम सब रहते हैं। धरती के पास इतनी धरोहर थी, कि सभी संतुष्ट होकर रह सकते थे । पर हमारे लालच का पेट वह नहीं भर सकी। मानव स्वार्थी हो गया। और, और के लालच में, पृथ्वी के प्रकृतिक संसाधनों का दोहन करता रहा। वायु, जल, आकाश सब कुछ दूषित कर दिया। आज अपनी आनेवाली पीढ़ियों को विरासत में यह धरती दे दी , जिसपर हम रहते हैं। पूरी तरह नष्ट करके।
बच्चे सभी उदास थे।
“मैम क्या यह अब पहले जैसी नहीं हो सकती”
मैम ने पहले उस सुंदर पृथ्वी की ओर नज़र भर कर देखा और फिर खिड़की के बाहर झाँकने लगीं। कल कारखानों की ऊँची चिमनियों से निकलते काले घने धुएँ के बादल, नालों में बहता रसायन, कंक्रीट का फैला अथाह जंगल, रंग विहीन दुनिया, जहाँ नाम को भी हरियाली नहीं थी। क्लास में बच्चों के आगे रखे उनके गॅस मास्क। मैम चुप थीं।
हवा में राहुल का प्रश्न लहरा रहा था।

सरस दरबारी  



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