टूटकर चाहा था तुमने
सभी रिश्तों
उनसे जुड़ी संवेदनाओं
और उपजते प्रश्नचिन्हों
को ताक पे रखकर ...
सबसे परे
सिर्फ एक रिश्ता था
हमारा अपना
जिसमें अच्छा बुरा
सही ग़लत
हम तै करते थे
उसी सच को सर्वस्व मान
पूरी ज़िन्दगी गुज़ार दी हमने
आज जब तुम नहीं हो
तो तुम्हारे इस टूटकर चाहने ने
पूरी तरह से
तोड़ दिया है मुझे ....!!!
सरस
ओह...उसी को संबल बना कर जीना होगा ...प्रभावी पंक्तियाँ
ReplyDeleteयादें ... जब लगता है, हम टूट गए - तब कोई सिरा जुड़ता है धीरे से
ReplyDeleteबेहतरीन पंक्तियाँ ...
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 2 अगस्त 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
बहुत सुन्दर ! भावनाओं का सही तालमेल शब्दों के साथ आभार ''एकलव्य"
ReplyDeletetutan ubrane nhi deti kbhi kbhi ..aur kbhi ..
ReplyDeletetutan ubrane nhi deti kbhi kbhi ..aur kbhi ..
ReplyDeleteजिंदगी जीना सिखा देती हैं अपनों का प्यार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर